का जमाना आ गयो भाया,इहवाँ त बेगार नीति आ बाउर नियत वाला लो सबहरे ‘अँधेर नगरी’ का ओर धकियावे खातिर बेकल बुझात बा। का घरे का दुअरे , का गाँवे का बहरे सभे कुछ ‘टका सेर’ बेंचे आ कीने क हाँक लगावे में प्रान-पन से जुट गइल बा। अइसन लोगन का पाछे गवें-गवें ढेर लोग घुरिया रहल बा। अपना सोवारथ का चलते ओह लोगन के सुर में आपन सुरो मिला रहल बा। मने ‘मिले सुर मेरा- तुम्हारा’ क धुन खूब बज रहल बा। अउर त अउर धुन उहो लो टेर रहल बा,जेकरा सरगम के स नइखे पता। ओप्पर से मुफुत के लत बाबा लगइये देले बाड़ें, मने चरबियो खूब चढ़ल बा। चुहानी ठसक का संगे गमक रहल बा, बेगर हर्रा-फिटकरी के , रंग चोखे चोखा बा। जे मरत रहल एगो रहिला के , ओकरे घरे-अँगने दाले- दाल छिटाइल बा। केहुओ के बटोरे के फुरसत नइखे। ‘फीरी के चनना घिस मोरे ललना’ वाला हाल चहुंओर पसरल बा।
ओप्पर से तुर्रा ई कि घोड़ा के जगहा गदहा धवरिहें। एकरो ला खूबे धवाठी मचल बा। धरना परदरसनो खूब हो रहल बा। पीला,हरा, लाल, नीला आ न जाने अउर कवना रंग रंग के धजा सड़कियो पर फहर रहल बा। ओह धजा के आगे-पाछे ढेर लोग चिचिया रहल बा। चिचियाये वाला लोगन के इहो पता नइखे कि उ लो काहें चिचिया रहल बा। किराये के लोगन के संगे ई त के सुनाते रहेला, ई मालुमो सभे के बा। बाक़िर का कहल जाव, मौनी बाबा परभाव गियानी–धियानी लोगन के बाचल मोसकिल होला। ई इहवाँ लउकतो बा।जेह लोगन के मनाराखन पांड़े लेखा नेता भेंटा जइहें, ओह लो के इहे हाल होखे के बा। एह में जनता के दोस देहल ठीक ना कहल जाई। अड़ोस- पड़ोस के हाल देखियो-सुन के मनराखन के अकल के मोहल्ला में सरलके गोबर के बास नइखे बुझात त उनुका चेला लोगन के कहाँ से बुझाई। देखे-सुने में त इहों आवता कि मनराखन पाड़ें एह घरी एकमुस्त एक काम जाति जनगणना करावे खातिर लहालोट भइल बाड़ें। उनुका अपना समय में चीलम के धुआं से फुरसत ना रहे। एहर मनराखन पांड़े के दोकान में गंहकिन के आवा जाही कुछ बढ़ गइल बा, त उहाँ के सुल्फा छोड़ के भाँग अंवास लेले हवन। एही से गिनती करावे क ढक पकड़ लेले बाड़न।मनराखन पांड़े के अपना मलिकई में गिनती करावे क होस ना रहल कि नियत ना रहल, ई बाति त मनराखने जाने।
बाक़िर मनराखन बस एक्के धरम के माने वालन के जाति का हिसाब से गिनती करावल चाहत बाड़ें , जवना के ढेर लोग नीमन नइखे क़हत। जाति के गिनती सभे धरम के माने वालन के होखे आ फेर आरक्षण पहाड़ा सुनल-सुनावल जाव । वोट का चक्कर में दोसरा के नटई दबावल कहाँ ले ठीक कहाई। मनराखन के संगे-संगे कुछ अउरो लोग चिचिया रहल बा, मने खुद अपने जात के पता नइखे, दोसरा के जात पूछ रहल बा लो। अइसना में तिवारी बाबा के खोपड़िया त घुमही के बा । उहाँ के पान लगावत कहलें कि खझरन कवना जात में राखल जइहें आ सतमेझरा सभ के कवन जात में गिनल जाई। तिवारी बाबा के बात पर पान खाये ला आपन बारी जोहत सभे मुसुकी छोड़े लागल। तिवारी बाबा फिरो कहलेंकि बुद्धि के भसूर लो चपरासी से डी एम वाला काम करावल चाहता। एहनी के अउवल दरजे वाली बकलोली के जबाब नइखे।
3-3 पीढ़ी से आरक्षण के नदी में गोता लगा रहल लोग अभियो अपना के उहे बूझ रहल बा, जवन तीन पीढ़ी पहिले रहल । मने आगहूँ मलाई चांपल छोड़े के मंसा नइखे।
तिवारी बाबा के पान के दोकान पर अक्सरहाँ अइसन चरचा चलते रहेला।पान के सौखीन लो रस ले लेके पान घुलावत रहेला। इहाँ आरक्षण आरक्षण नरियाए वाला लोगन के पड़ोस लुटाट, पिटात, कटात,फूंकात हिन्दू सभन के हाल पर मुँह में दही जाम गइल। बोले ना फूटल। मनराखन लेखा लोगन के मंसा अइसने कुछ इहों देखे करे के लागत ह, बाक़िर बबवा के बुलडोजर के डरे हिम्मत नइखे हो पावत।एहनी के समाज में जहर के खेती त कइये रहल बाड़न सन, आज नाही त काल फ़सिल लहलहइबे करी। बात ई बा नु कि मनरखना के संगे मंगरु,झगरु,चोरकट, गिरहकट आ एह कुल्हि बिरादरी के सगरी जमात जुट गइल बा आ सभे अउवल दरजे वाली बकलोली फइल-फइल के कर रहल बा। आवे वाला समय में एह देस के परजा के का हाल होखी,जवन ‘चौपट राजा’ पावे ला अउजाइल बा। अब त हमरा के इहे क़हत विदा लेवे के परी कि ‘जेकर खेती तेकर मति’। फेर भेंट होखी।
- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी