झंखे साँच

झंखे साँच झूठ क जयकारा हौ बाबू

हई देखा आइल हरकारा हौ बाबू ।

 

मंच क पंच तक कारोबार फनले बा

कीमत असूले ला रउबार ठनले बा ।

गीत चोरन क चढ़ गइल पारा हौ बाबू ।

झंखे साँच—

 

पीढ़ा पर बइठ के सबका के कोसल

टुटली कमरिया संगे धरि धरि पोसल

कबों छूटी ना मजगर चारा हौ बाबू।

झंखे साँच—

 

भावेला उनुका त पतुरिया के संगत

मुँह बेगर दाँत क चउचक बाटे रंगत

पानी घाट घाट के त खारा हौ बाबू।

झंखे साँच—

 

गुरुजी आ दद्दा भा भइया कहालें

कारी कमरी ओढ़ि ओढ़ि गंगा नहालें

टह टह चमकउवा ई सितारा हौ बाबू।

झंखे साँच—

 

 

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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