कुछ दिन से दादा जी बहुत याद आवत बाड़न। जब भी पुरान बात अतीत के सोचीला, ओकरा में दादा जी जरूर शामिल होखेलन। छुट्टी में जब भी शहर से दादा जी के पास जात रहनी, खूब बतकूचन होखे। हमरा से भर पेट तरह-तरह के बात पूछस। एके बतिया के घुरपेट के आगे बढ़ावत रहीं जा। गर्मी के छुट्टी एक महीना के होत रहे। दादा जी खाली बतिआवे में रहस, त दादी माँ के आपन अलग किस्सा रहत रहे। ऊ खाली खियावे बदे परेशान रहस। बबुआ ई खा ल, हऊ खा…
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