“पढ़त -लिखत “: भोजपुरी आलोचना के कशमकश

भोजपुरी आलोचना में डॉ ब्रजभूषण मिश्र,डॉ विष्णुदेव तिवारी,डॉ सदानंद शाही आ डॉ बलभद्र के बाद डॉ सुनील कुमार पाठक एह सदी के तीसरा दशक में उभरत एगो आश्वस्तिदायक हस्ताक्षर बाड़न, हालांकि बहुत कम उमिर में ऊहां के भोजपुरी में एगो उभरत निबंधकार के रूप में आपन पहचान दे देले रहीं जब सन् 1985में”पाण्डेय योगेन्द्र नारायण छात्र निबंध प्रतियोगिता “भोजपुरी कविता के सामाजिक चेतना “विषय पर अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के 9वाँ राँची अधिवेशन में पंडित गणेश चौबे के हाथे प्रथम पुरस्कार ग्रहण कइले रहीं। सरकारी सेवा में गइला के…

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मसान- राग

आगे बाबूजी लगनीं पीछे हम छोटका भाई सबसे आगे जोर-जोर से घड़ीघंट बजावत चिल्लात चलत रहुए- “राम नाम सत है ।” राधामोहन के हाथ में छोटकी टाँगी रहुए कहत रहुअन- “चाचाजी जी एक सव एकवाँ नम्मर पर बानीं सएकड़ा त फागुये राय पर लाग गइल रहे हमार ।” बड़ गजब मनई हउवन राधामोहन ठाकुरो! गाँव के कवनों जाति छोट-बड़ सबका में मसाने दउड़ जालें बोखारो रहेला तबो कवनों बहाना ना बनावस केहू किहाँ मउवत सुनिहें झट दउड़ जइहें । परदूमन भाई बोललें- “अच्छा चलीं नरब चाचा राधामोहन जी बाड़ें त…

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भोजपुरी के किसानी कविता

भोजपुरी के  किसानी कविता पर लिखे के शुरुआत कहाँ से होखी-ई तय कइल बहुत कठिन नइखे।भोजपुरी के आदिकवि जब कबीर के मान लिहल गइल बा त उनकर सबसे प्रचलित पाँति के धेयान राखलो जरूरी बा ।ऊ लिखले बाड़ें-“मसि कागद छूयो नहीं कलम गह्यो नहिं हाथ।” मतलब भोजपुरी के आदिकवि कलमजीवी ना रहलें।ऊ कुदालजीवी रहलें।हसुआ-हथौड़ाजीवी रहलें।झीनी-झीनी  चदरिया बीनेवाला बुनकर रहलें।मेहनत आ श्रमे उनकर पूँजी रहे जेकरा जरिये ऊ आपन जीवन-बसर करत रहलें। भोजपुरी में रोपनी-सोहनी के लोकगीतन से लेके आउरो सब संस्कार गीतन में श्रम के महिमा के बखान बा।रोपनी गीतन…

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