आइल शरद बहार रे,आइल शरद बहार। पहरा बीति गइल पावस के,लोग भइल खुशहाल। ताल ताल पर कलरव उतरल,धरती भइलि निहाल।। झलकलि पूरब ओर,भोर के गोरिया, दमकल भाल। चमकलि पांव पखारल मोती,गमकल मलल गुलाल।। हंसा चलल विदेसे,अइली ढेंकी बान्हि कतार रे।आइल शरद—-।। झिर-झिर बहल जोमाइल नारा,लवटल नदी बिसास। सिहरल सून अरार,निछाने फूलल गह गह कास।। गुलगुल पलिहर पर तरनाइलि,आइलि फफनलि घास। हंसि-हंसि हंसुआ चले गुजरिया,बतरस भरल लहास।। झूमि उठल मद भींनल बजरा,खंजन नयन निहार रे।आइल—-।। चम-चम किरिनि सरग से उतरलि,उज्जर दिन पुरवार। निरमल रइनि अंजोरिया उमड़लि,बिटिया बनल कुंआर।। उझिलल अमृत बुझाइल…
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