हम ई पहिलहीं स्वीकार कर लेत बानीं कि हमरा कुछ ना बुझाला, एह से हम जवन कहबि ओकर कवनो माने-मतलब मत निकालब स। ई त बस आजु एकदमे कुछ बुझात ना रहुए त कुछ बुझाए खातिर कुछ बूझ कह देत बानीं, बाकिर हमरा निअर आदमी से ई आशा मत करब कि हमरा कबो कुछ बुझाई। भोजपुरी में(अउरियो जगे कम-बेसी इहे होत होई। ओइसे अउरी जगह वाली बात हम अंदाजने कहलीं हँ, आपन अनुभव कुछ खास नइखे।) एह घरी तीन तरह के रचनाकार पावल जा रहल बाड़े– तप्ततन अइँठल:एह कटगरी के…
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अउवल दरजे वाली बकलोली
का जमाना आ गयो भाया,इहवाँ त बेगार नीति आ बाउर नियत वाला लो सबहरे ‘अँधेर नगरी’ का ओर धकियावे खातिर बेकल बुझात बा। का घरे का दुअरे , का गाँवे का बहरे सभे कुछ ‘टका सेर’ बेंचे आ कीने क हाँक लगावे में प्रान-पन से जुट गइल बा। अइसन लोगन का पाछे गवें-गवें ढेर लोग घुरिया रहल बा। अपना सोवारथ का चलते ओह लोगन के सुर में आपन सुरो मिला रहल बा। मने ‘मिले सुर मेरा- तुम्हारा’ क धुन खूब बज रहल बा। अउर त अउर धुन उहो लो टेर…
Read Moreबिलारी के भागे क सिकहर
का जमाना आ गयो भाया,अजबे खुसुर-फुसुर ससर ससर के कान के भीरी आ रहल बा आ कान बा कि अपना के बचावत फिरत बा। एह घरी के खुसुर-फुसुर सुनला पर ओठ चुपे ना रह पावेलन स। ढेर थोर उकेरही लागेलन स। एह घरी के ई उकेरलका कब गर के फांस बन जाई, एह पर एह घरी कुछो कहल मोसकिल बा। रउवा सभे जानते होखब कि इहवाँ जेकर जेकर कतरनी ढेर चलत रहल ह, सभे एह घरी मौन बरती हो गइल बा। अब काहें, ई बाति हमरा से मति पूछीं, खुदही…
Read Moreहमार भउजी !
हमार भउजी शहर से आइल रही, गांव के रीत-रिवाज ना जानत रही. सब कुछ उनका खातिर नया रहे. एक से एक सवाल करटी रही. गांव के लइकी उनका के पटनहिया भउजी कहत रही सन. भउजी खाये-पीये के बड़ी सवखीन रही. भोजपुरी में अइसन अदिमी के खबूचड कहल जाला. भउजी ना जानत रही कि अनाज कइसे उपजे ला. फागुन के महीना रहे, होरहा-कचरी के दिन. आजी कहली की कनेऊआं के कचरी खियाव लोग, का जाने खइले बिया कि ना ! बनिहार एक पंजा कचरी लेया के अंगना में पटक देलस . भउजी देखली त चिहा के कहली कि के त चना के फेंड उखाड़ के…
Read Moreआदत से लचार आ मानसिक बेमार
का जमाना आ गयो भाया,साँच के साँच कहे भा माने में नटई से ना त बोलS फूटता, आ ना त बुद्धिये संग-साथ देत देखात बा। ऐरा-गैरा,नथ्थू-खैरा सभे गियान बघारे में लाग गइल बा।गियान के सोता चहुंओर से फूट-फूट के बहि रहल बा।अजब-गज़ब गियान, न ओर ना छोर बस बहि रहल फ़फा-फ़फा के। मने कतों आ कुछो। लागता कि सगरे जहान के गियानी लोग मय गियान के संगे इहवें कवनों सुनामी में बहत-बिलात आ गइल बा आ ओह लोगन के गियानों में एह घरी सुनामी आ गइल बा। खाली गियाने तक…
Read Moreपितर पख आ सराध
पितर पख में पुरबुज लो के अतमा के शांति खातिर पूरे विधि-विधान से अनुष्ठान कइल जाला। पितर पख में तर्पण आ पिंडदान कइला से पुरबुज लो के असीस मिलेला। घर में सुख-शांति बनल रहेले। वैदिक परम्परा का हिसाब से हिन्दू धरम में ढेर रीति-रेवाज़, बरत, तेवहार मनावल जाला। हिन्दू धरम में जनम से लेके मिरतुक के बादो कई संस्कार मनावल जाला। जवना में अंतेष्टि के अंतिम संस्कार मानल जाला। बाक़िर अंतेष्टि का बादो कुछ कारज अइसन होखेलें जवना के संतान के करे के पड़ेला। पितर पख आ सराध ओकरे में…
Read Moreभुकभुकवा के राग भैरवी
का जमाना आ गयो भाया, लोग-बाग बेगर सोचले-समझले कुछो नाँव राख़ लेत बा आ फेर अपढ़-कुपढ़ लेखा गल थेथरई करे में लाग जात बा।फेर त अइसन-अइसन विद्वान लोग जाम जात बाड़ें कि पुछीं मति। अरथ के अनरथ आ अनरथ के अरथ के घालमेल में असली बतिये बिला जात बिया। अबरी त साँचों में असली मकसदे बिला गइल। रोज नया-नया लोग आवत बाड़ें आ गाल बजा के, राग भैरवी कढ़ा के अपना-अपना खोली में ओलर जात बाड़ें। फेर त ढेर लोग चौपाल सजा-सजा के नून-मरिचा लगा-लगा के परोसे में जीव-जाँगर से…
Read Moreअंगार पड़ गइल
का जमाना आ गयो भाया,आजु कल त सभे के सेस में बिसेस बने के लहोक उठ रहल बा। भलही औकात धेलो भर के ना होखे। सुने में आवता कि एगो नई-नई कवयित्री उपरियाइल बानी आ कुछ लोग का हिसाब से उ ढेर नामचीन हो गइल बानी । मुँह पर लेवरन पोत के मुसुकी मारल उहाँ के सोभाव में बाटे। कुछ लोग त उनुका एगो अउर सोभाव बतावेला। कबों रेघरिया के त कबों लोर ढरका के, कबों जात-धरम के पासा फेंक के एगो-दू गो कार्यक्रम में अतिथिओ बनि के जाये लगल…
Read Moreकवन ठगवा नगरिया लूटलस हो…
नगर निगम चुनाव प कुछ हमार निजी अनुभव, जरूरी नइखे कि रवुआ हमार बात से सहमत होखीं।आरा शहर प पिछिला कुछ दिन से नगर निगम चुनाव के खुमार चढ़ल बा. आज सांझी के 5 बजे जा के भोजपुरी-हिंदी के पैरोडी कानफाडू गीत आ डी जे के हल्ला बंद भईल. कबो शाहाबाद के मुख्यालय इ शहर अब खलिहा भोजपुर जिला के मुख्यालय रह गईल बा तबो आजुवो इ शाहाबाद क्षेत्र के केंद्र में बनल बा. इतिहास का बेर-बेर दोहरावल जाव तबो इतिहास में तनिकी सा झाँकल जरूरी बा. आरा शहर के…
Read Moreभोजपुरी त पहेली बा
साँचो में रउआ सुन के भक फाट जाई। भोजपुरी एगो पहेली बन गइल बा ।नइहरे में बेआबरू भइल बेटी जइसन हाल एह घरी भोजपुरी साहित्य आ साहित्यकार लोगन के बा ।साहित्यकार कइगो मोटकी-मोटकी किताबन में माथा खापावेलन आ रात-दिन एक करके कलम-कागज के साथ मगजमारी (माथापची )करेलन तब जाके एगो रचना तइयार होला ।रचना एकजुट करेलन आ माल-पताई के जोगाड़ करके भोजपुरी साहित्य बनावेलन। ई भोजपुरी साहित्य के परेमवे नु बा । बाकी हद त तब होला कि सउसे छपल साहित्य भेट दे के सधावे के परेला। सउसे मेहनत फोकटे…
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