नवके मनराखन के मनकही

का जमाना आ गयो भाया, लागत बा कि जयचंदन के फिरो दिन बहुरे लागल। अपना के फलाना भाषा के साहित्यकार कहवा के लुगरी आ लकड़ी बिटोरे में सरम ना लागे बाक़िर ओह भाषा पर अंगुरी उठावत बेरा अपना के बड़का भाषाविद बुझे लागल बा लोग। साँच के नकारे के फेरा में लोग कुछो लिखे- बोले लागत बा। लोग बुझत बा कि ई भषवा परती सरकारी जमीन ह, ओहपे कुछो करीं, धरीं, केहू कहे सुने वाला नइखे। केहू साँच बतावतो होखे त बतावत रहे, अपना कोरट के जज अपनही नु बानी, मानबे ना करेम। ढीठ लेखा अपने जिद लेके डोलत रहेम, केहू करिये का लेही हमार। उहे महतारी भलहीं हमरा के जनम दीहले होखे, बाक़िर हम ओकरा के महतरिए ना मानेम। कबों लजा डेरा के मानियो लेवे के परी, त ओकरा के अनपढ़ बतायेम, भलहीं उ पढल-लिखल होखे। हमरा से थेथरई में केहू जीत ना सकेला। महतरिया आपन लिखलका-पढ़लका केहू के देखाई-सुनाई त ओकरा के कमजोर कहे में ना हमरा हरज बा ना कवनो ख़रच लागे वाला बा । हमरा ई कुल्हि कहला से दोसरा के मिरची लागत होखे त लागे, हम त नवका मनराखन पाड़ें हई, अपने धुन में रहे वाला, अपना मन के कहे वाला। दोसरकी कोरट लथारत होखे त लथारत रहे, हमरा ओके माने के कब बा। पुरनका मनराखन पाड़ें के त लोग संभारिए ना पवलस, त उ लोग हमरा के का सँभार लेही। ई त सभे जानत बा कि पुरनका मनराखन पाड़ें देस क राजनीति करेलन आ हम राजनीति ना थेथरई करीले आ आगहूँ करते रहब।हमरा हाँ में हाँ मिलावे वालन के कमी नइखे। सहमत सहमत लिखे वाला त भेंड़ बकरी लेखा पाछे-पाछे डोलत फिरत रहेलन।

एह घरी हमरा सिरे भविस बतावे वाला देवता बइठल बाड़ें। एही का चलते भविस के रइता बेरोक टोक के फइला रहल बानी। अइसहूँ आठवीं अनुसूची के बात करे वालन पर उल्टी करे में का दोस। हमरा पहिलहूँ एगो मंच वाला लोग ई कमवा क चुकल बा। चाहे जंतर-मंतर जाये वाला लोग मुँह फुलावे भा सम्मेलन करे वाला, हमरा कवनो फरक नइखे।अखबार में बड़का-बड़का लेख लिखे वालन के हम कुछो ना बुझिले।कविता, गीत, लेख, सुलेख, व्यंग्य लिखे वालन के बातो कइल बेकार बा। आलोचकन के त खूँटी पर टाँग के रखले बानी। अब रहल दोसर बात, त सुनी- भलहीं केहू अपना मन के बात रेडियो भा टीभी पर करत होई, हमरे ला फेसबुकवा ओकरा से कमो नइखे। इहाँ त कापी-पेस्टिया से लेके सेयरियावे वालन के कवनो कमी नइखे। हमरा पोस्टवा पर बुद्धि के भसूर लोग बेगर नेवतले भिनभिनात रहेलन। हमरा एह भविस के फुलझरी से केहू रिसियाय भा खिसियाय,हमार सेहत हरियर के हरियर बनल रही।

नवका मनराखन पाड़ें के नवका रइता के चरचा तिवारी बाबा के दोकान से लेके हर गली-नुक्कड़ पर ज़ोर-सोर से चल रहल बा। तिवारी बाबा के नवका मनराखन पाड़ें मठाधीस लेखा लागत बाड़ें। पान में चुन्ना लगावत तिवारी बाबा कहे लगलन कि इहो बुझाता कवनो मठ खोले के फिराक में बा, एही से आजु कल भविस बानी करि रहल बा । लागता कि इहो देस के बहरा परसिद्ध होखल चाहत बा भा कवनो पाटी-साटी से चुनाव लड़े के फेरा में बा। कतो से धनों जोगाड़े के फेरा हो सकेला । अतना क़हत तिवारी बाबा अपना बाति के बिराम देत मुंह में पान के बीड़ा दबा लेलन। उहाँ उनुका बाति सुनत लोग गवें गवें सरके लागल। रउवो सभे अगिला बेर के भेंट होखला के जोहीं, हमरो चले के बेरा हो गइल बा। जय हो नवके मनराखन पाड़ें की ।

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

संपादक

भोजपुरी साहित्य सरिता

 

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