मतदान त अधिकार हउवे

भइया जगला के हवे दरकार मतदान त अधिकार हउवै॥2॥   अफवाहन के दूर हटा के आपन बुद्दि विवेक जगा के तहरा वोटS बनाई सरकार , मतदान त अधिकार हउवै॥ 2॥  भइया…   छोड़ के सगरे काम चलS के लोकतंत्र के धाम चलS के जइते होखी परब गुलजार, मतदान त अधिकार हउवै॥ 2॥ भइया…   हित-मीत सबसे बतिया के आस-पड़ोस सभै गोलिया के देखिहा वोटवा न हो बैपार, मतदान त अधिकार हउवै॥ 2॥ भइया…   जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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मातृभाषा दिवस (२१ .२. २०२४)के अवसर पर एगो सारस्वत समारोह के आयोजन

विश्व भोजपुरी सम्मेलन, प्रांतीय इकाई (उ.प्र.) के तत्वावधान में मातृभाषा दिवस (२१ .२. २०२४)के अवसर पर एगो सारस्वत समारोह क आयोजन जीवनदीप एकेडमी, बड़ा लालपुर ,वाराणसी में साहित्य अकादमी के भाषा सम्मान से सम्मानित वरिष्ठ साहित्यकार आ पाती पत्रिका के संपादक डॉ अशोक द्विवेदी क अध्यक्षता में भइल। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के महामंत्री प्रो जयकांत सिंह आ विशिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ गुरुचरण सिंह, डॉ पी राज सिंह, ई राजेश्वर सिंह, वि. भो. स. के केंद्रीय कार्यालय प्रभारी…

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सरस्वती पूजा के आयोजन भइल

बलिया। बांसडीह रोड  थाना क्षेत्र के तिखमपुर गांव स्थित एक कालोनी में अपरिमिता- साहित्यिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थान द्वारा वसंत पंचमी के अवसर पर एगो सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजन कइल गइल।एह मौका पर माई सरस्वती के चित्र के समीप विधिवत पूजा अर्चना क के कार्यक्रम के शुभारम्भ कइल गइल। उहाँ गायिका सुनीता पाठक सरस्वती वन्दना ‘वर दे वीणावादिनी वर दे’गीत गा के  माहौल के भक्तिमय बना दीहली। उहें श्रोता लोगन के मांग पर होली गीत ‘सिया चलली अवधवा की ओर, गाकर ताली बजाने को विवश क  दिहनी। उहाँ के कहनी…

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अइसन गारी के गारी जनि जानी के बहाने लोक के बतकही

भोजपुरी भाषा के मधुरता आ मिठास से सभे सुपरिचित बाटे। भोजपुरिया लोक के विशिष्ट पहिचानो बाटे। कहल जाला कि  विविधता जहां के पहिचान आ परिभाषा होखे,अइसन लोक के बाति बरबस मन के मोह लेवेले। लोक जवन अपने संगे अपने संस्कृति के संवारत आ संइहारत आगु बढ़ेला। ओकर बढ़न्ति ओकरे जीवंतता के पहिचान होले।ओह पहिचान के जोगावे क श्रमसाध्य काम भोजपुरिया समाज के मेहरारू लोगन के कान्ही दर कान्ही चलत चलल आ रहल बा। अपने सुघरई आ मिठास के जोगवले सनकिरवा लेखा जुगजुगा रहल बा। भोजपुरिया समाज के समुझे आ जाने…

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आदत से लचार आ मानसिक बेमार

का जमाना आ गयो भाया,साँच के साँच कहे भा माने में नटई से ना त बोलS फूटता, आ ना त बुद्धिये संग-साथ देत देखात बा। ऐरा-गैरा,नथ्थू-खैरा सभे गियान बघारे में लाग गइल बा।गियान के सोता चहुंओर से फूट-फूट के बहि रहल बा।अजब-गज़ब गियान, न ओर ना छोर बस बहि रहल फ़फा-फ़फा के। मने कतों आ कुछो। लागता कि सगरे जहान के गियानी लोग मय गियान के संगे इहवें कवनों सुनामी में बहत-बिलात आ गइल बा आ ओह लोगन के गियानों में एह घरी सुनामी आ गइल बा। खाली गियाने तक…

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सामाजिक संबन्धन के सघनता से जनमल साहित्य के सिरिजना करेवाला साधक द्विवेदी जी

               लोक संस्कृति किताब में लिखल बात ना होखे, जिनिगी के ऊंच – खाल राह में अविरल बहत रहेला। अपना परिवेश खातिर बोलल – लिखल – दरद के अनुभव कइल लोक के बात कइल ह। सामाजिक संबन्धन के सघनता के गर्भ से लोकवार्ता के जन्म होला जे अपना में घर, परिवार, समाज, गांव, जनपद, राज्य आ देश समेटले रहेला। व्यष्टि के ना समष्टि के बात करेला। भोजपुरिया समाज ‘ मैं ‘ ना जाने।, हम जानेला, लोक जियला, , समष्टि बुझेला। भगवती प्रसाद द्विवेदी लोक…

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स्मृति में बसल गाँव के कहानी के बहाने लोक-संस्कृति आ जिनिगी के बयान

दो पल अतीत के ( मेरा भी एक गाँव है) हरेराम त्रिपाठी ‘ चेतन ‘ के हिन्दी में सद्य प्रकाशित पुस्तक जब हाथे आइल त ई जान के खुशी भइल कि एह संस्मरणात्मक कथेतर गद्य के माध्यम से एगो विद्वान भोजपुरिया आ उनुकर गाँव के नजदीक से समझे बूझे के मिली।दू दिन में किताब एक लगातार पढ़ गइला के बाद ई देखे के मिलल कि किताब भले ई हिन्दी में बा बाकिर पन्ना – पन्ना में भोजपुरी के सुगंध बिखरल बा।ई किताब अगर भोजपुरी में रहित त भोजपुरी साहित्य खातिर…

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दू बून लोर बा आ हम बानी

‘सजग शब्द के रंग’  हरेराम त्रिपाठी ‘चेतन’ के 94 गो कविता आ गीत-ग़ज़ल के संग्रह हs । एह संग्रह के पढ़त-गावत-गुनगुनावत हमनी के देख सकीला जा कि एकरा में जीवन, समाज, प्रकृति-संस्कृति के विविधवर्णी छवि के उरेहल गइल बा । चेतन जी के कविताई के अगर असली हुनर आ कमाल देखे के होखे तs एह कृति के ज़रूर पढ़े के चाहीं । सांच कहल जाय त ऊ एह कृति में आपन करेज काढ़ि के राखि देले बाड़न । उन्हुकर काव्य साधना आ सिद्धि के सबरंग के एह एगुड़े शाहकार कृति…

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‘आपन आरा’ के बहाने एगो खास दौर के शैक्षिक आ साहित्यिक पड़ताल:

घर परिवार से दूर, शहर के जिनगी में अपना के समायोजित करत कुछ बने के जद्दो-जेहाद आ ओह दौर में संपर्क में आइल साहित्यिक बिभूतियन के परिचय का संगे उनुका से ढेर कुछ सीखे-जाने के अरमान मन में जोगवले एगो युवा मन के दस्तावेज़ ह ‘आपन आरा’।’आपन आरा’ में लेखक अपने  जीवन के एगो महत्वपूर्ण कालखंड जेवन उ आरा कस्बा में विद्यार्थी जीवन के दौरान गुजरले बा — जुलाई १९७७ से जुलाई १९८७ के दौरान क खट-मीठ अनुभवन के बहुत बिस्तार से उकेरे क परयास कइले बाड़ें। ई समय लेखक…

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भोजपुरी के हिरामन गोलोक वासी भइलें

ख्यातिप्राप्त वयोवृद्ध कवि आ साहित्यकार पंडित हरिराम द्विवेदी जी अब हमनी का बीच नइखी । सोमार के उहां के अपना महमूरगंज मोती झील स्थित आवास पर अन्तिम सांस लिहनी। पंडित हरिराम द्विवेदी पिछिला आठ महिना ले गंभीर रूप से अस्वस्थ चलत रही। मूल रूप से मिर्जापुर के शेरवा गांव निवासी पंडित हरिराम द्विवेदी जी के जनम 12 मार्च 1936 के भइल रहे। पंडित हरिराम द्विवेदी आकाशवाणी के लोकप्रिय कवि रहले।उहा के एगो कुशल मंच संचालक भी रही। पंडित हरिराम द्विवेदी जी के साहित्य अकादमी भाषा सम्मान, राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार (उत्तर…

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