दू बून लोर बा आ हम बानी

‘सजग शब्द के रंग’  हरेराम त्रिपाठी ‘चेतन’ के 94 गो कविता आ गीत-ग़ज़ल के संग्रह हs । एह संग्रह के पढ़त-गावत-गुनगुनावत हमनी के देख सकीला जा कि एकरा में जीवन, समाज, प्रकृति-संस्कृति के विविधवर्णी छवि के उरेहल गइल बा । चेतन जी के कविताई के अगर असली हुनर आ कमाल देखे के होखे तs एह कृति के ज़रूर पढ़े के चाहीं । सांच कहल जाय त ऊ एह कृति में आपन करेज काढ़ि के राखि देले बाड़न । उन्हुकर काव्य साधना आ सिद्धि के सबरंग के एह एगुड़े शाहकार कृति में देखल जा सकेला । चेतन जी के शब्द सांचो सजग बाड़े स आ एह संग्रह के पन्ना -पन्ना पs इंद्रधनुषी रंग बिखेर रहल बाड़े स । कवि हर तरह से आपना काव्य विवेक के ले के सजग-सचेत बा । ओकर नज़र अपना आसपास पs त  बड़ले बा, ऊ सवंसे समाज,गांव-नगर आ समकालीन समय के बदलावो से जुड़ल बा ।  ऊ आपन एगो कवित्त ‘अब ऊ बा गाँव कहाँ”  में लिखत बाँड़े –“अब बा ऊ गांव कहाँ,भाव आ सुभाव कहाँ,चाव अपनइती,मोटाव बा घरे-घरे ।

………… ………… ………… ……

अछरंग लावे खाती सभ पs तेयार सभे

ताके सभे सभके कुठाँव बा घरे -घरे ।।”

एगो दोसर कवित्त ‘खोजत फिरे अँजोर’ में लिखत बाँड़े —

“सूखल इनार रोवे,नदी के किनार रोवे,

आम-फुलवार, बँसवार बा बाँचल थोर ।

बर, बड़हर,कटहर साँस गिने तोंत,

कहाँ बैठे कोइलआ सुग्गा कहाँ मारे ठोर ।।

फुदगुदी, तितर बटेर सपना के बात,

माथ पीटि रोवे चुहचुहिया के बिना भोर ।

प्रकृति सिंगार के उजारि नर बेशरम,

बोइके अन्हार सठ खोजत फिरे अँजोर ।।”

 

कवि चेतन गाँव में आइल नकारात्मक बदलाव से बहुते व्यथित  दिखायी दे रहल बाड़न । लोग अन्हार बो के अँजोर खोजत फिर रहल बा । ई एगो एह समय के गहिरारे समस्या बा जेवना पs कवि रोशनी डाल रहल बा । कवि एह अन्हार से व्यथित ज़रूर बा बाकी इचिको घबराइल नइखे । ऊ आपन समाज के राह देखावत आ ओकरा में जीवटता पएदा करे खाती आपन एगो रचना -‘रउरा चले के चाह बा’ में लिखत बा —

“रउरा चले के चाह बा,पसरल अन्हार का करी ?

रउरा भीतर उछाह बा,बे-पर के हार का करी ?

राउर लुफुति बा लोर पोंछे के गरीब के,

हिम्मत बा करेजा में तs नफरत गरार का करी ?

बेचैन समइयो में जब साहस उड़े के बा,

भू के गर् हू खिंचाव आ चुबकीय घार का करी ?

सेंकनी जे कँपकँपात किरिन पूष-माघ के,

बा ध्येय दिढ़ तs दक्षिणी ध्रुवो के ठार का करी ?

राउर जो डेग खुद तूफान बनि के बढ़ि चली,

त छोट बवंडर ई चक्करदार का करी ?”

 

कवि चेतन के हर कविता में चाहे ऊ केवनो पारंपरिक -जातीय छंद में होखे भा छंद के बंधन से मुक्त होखे ओकरा में एगो भाषिक सौष्ठव आ सुघराई उन्हुका शब्द के प्रति सजगता के दरसा रहल बा । शब्द आ अर्थ के संगत देखत बनत बा । ऊ आपन भूमिका ‘झाँझर गेंड़ुआ गंगाजल पानी’ में लिखले बाँड़न — “रचना करत खा विचार ई रहल बा कि समय के तबाही,दुविधा,हतासा,निराशा आ टूटत-बिखरत गाँव, मनुष्यता आ नैतिक पतन के चित्र उरेहे खातिर शब्दन के काया में अर्थ के दीपदिपात आत्मा के रहल बहुत ज़रूरी बा । ई बोध हमरा रचनाकार के हमेसा सजग करत रहल बा कि अर्थ शब्द के फूल आ फल दूनो होला । फूल फल के वर्तमान हs त फल फूल के भविष्य । ”

 

कवि चेतन जी के कविता के संप्रेषणीयता के मूल वजह बा ओकरा में शब्द आ अर्थ के “गिरा-अरथ जल बीचि सम” भइल । अक्सर देखल गइल बा कि पंडित आ विद्वान के कविताई में “कठिन काव्य के प्रेत” प्रवेश करि गइल बा बाकिर पंडिताई आ आचार्यत्व के बख़ूबी निरबाह के बादो चेतन जी काव्य कला के भोजपुरी भाषा में  ओह उत्कर्ष प ले गइल बाँड़े जेहवाँ से काव्याकाश के सरलता  हर पाठक आ स्रोता के मन मोह रहल बा । कहीं से केवनो अझुराह प्रतीक आ बिम्ब से भरसक बचल गइल बा ।

एह संग्रह में लगभग हर रचना उद्धरण जोग बा । अगर हमरा प भरोसा ना होखे त केहू भोजपुरी के कविता के शैदाई भा रसिया  खुद एकरा के मँगा के पढ़ो त ज़रूर पतियाई ।

 

चेतन जी कविताई के हद में खाली हमार-तोहार के बात नइखे भइल बलुक ओकरा में पशु-पक्षी,गोचर-अगोचर,महामारी-बीमारी, समय के सियासत आ ओकर झूठ-साँच  सभके समेटल गइल बा । कवि के नज़र गिलहरी प बा त कोरोना काल के अकेलापन-चुभन,चुप्पी आ सनसनाहटो प बा । ऊ एह कराल कालो प  आपन इयादन के फाइल के सहारा बना के जीत हासिल करत बा  — “भूलल बिसरल इयारन के इयादन के फाइल ।

खुलल बा, सामने दुख-दरद बा, आ हम बानी ।।

कसक बा,कशमशाहट भूल कइला के,दुखाता ।

धीरज के आह, दू बून लोर बा आ हम बानी ।।”

कवि चेतन जी के ई भोजपुरी काव्यकृति ‘सजग शब्द के रंग’ उन्हुकर सजग-सचेत कवि कर्म के खुल के गवाही दे रहल बा ।

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पुस्तक का नाम- सजग शब्द के रंग

विधा — कविता

भाषा -भोजपुरी

लेखक — हरेराम त्रिपाठी ‘चेतन’

प्रकाशन वर्ष — 2021

सर्वभाषा ट्रस्ट,नयी दिल्ली

सज़िल्द मूल्य- 250 ₹

पृष्ठ संख्या — 116

 

 

  • चंद्रेश्वर

लखनऊ, उ0प्र0

 

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