भोर ले लोर अँखिया के खरचा भइल। रात भर मन ही मन उनके चरचा भइल। जेके रखनीं ए हियरा में आठों पहर, जाने कइसेदो मन ओकर मरिचा भइल। मन परीक्षा में हल खोजते रहि गइल, आँख उनकर सवालन के परचा भइल। कवनो पूरुब – पच्छिम के कमाई बा का, जे रहे हाथ पर खरचा – वरचा भइल। मन के मंदिर में शंकर ना अइले कबो, रात भर गाँव में शिव- चरचा भइल। हाय! ‘ संजय’ के बोलल त काले भइल, कहले नीमन बदे बाकिर मरिचा भइल। संजय मिश्रा ‘संजय’
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युद्ध के भट्ठी पर सिरजना के लेप
विध्वंस आ सिरजन एह सृष्टि रूपी सिक्का के दू गो पहलू लेखा बा। एक के दोसरा अलगा राख़ के देखल मोसकिल ह। मने अलगा-अलगा राखल भा देखल संभव नइखे। अब जवन कुछ संभवे नइखे,ओह पर कवनो बतकही बेमानी बा। बाक़िर एह घरी त पत्थर पर दूब्बा उगावे के पुरजोर परयास हो रहल बा। परयास देखउकी भर के बा भा साँचों ओकर छाया जमीन पर उतर रहल बा, ई त समय के ऊपर छोडल जा सकेला। एह छोड़लको पर लोगन के नजरिया अलग-अलग हो सकेले,बाक़िर दोसर कवनो रासतो त नइखे। दुनिया…
Read Moreकजली मंजू मल्हार
भोजपुरी लोक में तरह-तरह के गीतन के विधा बा। एहि लोक के कंठ में रचल-बसल एगो विधा के नांव बा कजली अथवा कजरी। भोजपुरी लोक जीवन खेती बारी प आधारित बेवस्था ह, आ खेतीबारी के चक्र आधारित बा मौसम बा रितुअन प। सुरूज़ जब उत्तरायन होखला के बाद आपन ताप से एह क्षेत्र के दहकावत रहेले त मानव से ले के हर जीव जन्तु के मन में इहे रहेला कि कब आसाढ़ के महीना आवे आ सुरूज़ के ताप कम होखे। कब बरखा के फुहार से कब धरती सराबोर होखस,…
Read Moreसावन मास पावन आ मनभावन
सावन शिव के मास ह।पूरा लोक शिवमय हो जाला सावन में। चहुंओर बोल-बम, हर-हर महादेव के गूंज वातावरण में गूंजत रहेला। प्रकृति पार्थिव शिव पर जलाभिषेक करे खातिर बारिश के रूप में बरिसत रहेला।सावन चढ़ते हवा आपन रूख बदल देला। धूप आपन ताप प्रभाव कम कर देला। वातावरण में धूल उड़ल बंद हो जाला।सूखल जलाशय पनिया – पनिया हो जाला।धरती के पियास बुझा जाला। चहुंओर हरियरी दिखाई पड़े लागला। जंगल मनोहारी हो जाला। मोर नाचे लागेला।मनई के मन ई देख कइसे नियंत्रित रहित।सावन आवते झूम उठेला। कहीं कजरी सुनाला त…
Read Moreउरुआ के लभ मैरेज
एक बेरी के बात ह कि कैलाश मानसरोवर के एगो हंस के बियाह भइल त ऊ अपना मेहरारू हंसिनी से कहलस कि चले के बिहार घूमे. हंसिनी पुछलस कि ओहिजा देखे जुगुत का बा? तब हंस कहलन कि जवने बा तवने देखल जाई! फेर कहलस कि ओहिजा हिमालय नियन पहाड़ त नइखे, बाकिर कैमूर पहाड़ी बा, रोहतासगढ़ के किला बा. गंगा नदी नइखे त का भइल, दुर्गावती आ करमनासा नदी बाड़ी सन. भगवान भोलेनाथ नइखन त का भइल, उनके रूप गुप्तेश्वर नाथ के गुप्ताधाम बा. हंसिनी खुश हो गइली आ…
Read Moreभोजपुरी साहित्कारन के कुछ कटगरी
हम ई पहिलहीं स्वीकार कर लेत बानीं कि हमरा कुछ ना बुझाला, एह से हम जवन कहबि ओकर कवनो माने-मतलब मत निकालब स। ई त बस आजु एकदमे कुछ बुझात ना रहुए त कुछ बुझाए खातिर कुछ बूझ कह देत बानीं, बाकिर हमरा निअर आदमी से ई आशा मत करब कि हमरा कबो कुछ बुझाई। भोजपुरी में(अउरियो जगे कम-बेसी इहे होत होई। ओइसे अउरी जगह वाली बात हम अंदाजने कहलीं हँ, आपन अनुभव कुछ खास नइखे।) एह घरी तीन तरह के रचनाकार पावल जा रहल बाड़े– तप्ततन अइँठल:एह कटगरी के…
Read Moreअउवल दरजे वाली बकलोली
का जमाना आ गयो भाया,इहवाँ त बेगार नीति आ बाउर नियत वाला लो सबहरे ‘अँधेर नगरी’ का ओर धकियावे खातिर बेकल बुझात बा। का घरे का दुअरे , का गाँवे का बहरे सभे कुछ ‘टका सेर’ बेंचे आ कीने क हाँक लगावे में प्रान-पन से जुट गइल बा। अइसन लोगन का पाछे गवें-गवें ढेर लोग घुरिया रहल बा। अपना सोवारथ का चलते ओह लोगन के सुर में आपन सुरो मिला रहल बा। मने ‘मिले सुर मेरा- तुम्हारा’ क धुन खूब बज रहल बा। अउर त अउर धुन उहो लो टेर…
Read Moreग़ज़ल
चान अब त जहर तकले,निगलि जाता मानि लीं। रोज सूरुज एक रत्ती,पिघलि जाता मानि लीं।। हमरा जिनिगी में केहू के प्यार, शायद ना रहे। हरेक पल सभके मुखौटा,बदलि जाता मानि लीं।। एह शहर के आदिमिन्हि के,चाल कइसन हो गइल? बहिनि-बेटिन्हि के करेजा,दहलि जाता मानि लीं।। जहां हर रिश्ता के एगो,मोल- मरजादा रहे। नेह-नाता ऊ पुरनका,ढहल जाता मानि लीं।। जाति पर,कुछु धरम पर,सभ आपुसे में बंटल बा। राष्ट्र सर्वोपरि के भावे,मिटल जाता मानि लीं।। चाह दिल में रहे हरदम,हम जिहीं,हंसि के जिहीं। अब त मन,बस रोइये के,बहलि जाता मानि लीं।। रोज…
Read Moreमंगरुआ के मौसी
मंगरुआ के मौसी मुँहझौसी ! कतों मुँह खोल गइल। ढेरे कुछ नु बोल गइल। नाड़ा के बाति भाड़ा के बाति उजरकी कोठी आ कलफ लागल कुरता दूनों के तोल गइल। ढेरे कुछ नु बोल गइल। कहाँ, के खोलल टटोलल ! कहाँ कतना मोल भइल। ढेरे कुछ नु बोल गइल। आजु मेजबान फेरु बेजुबान घर घर घरनी के अदला-बदली तक टटोल गइल। ढेरे कुछ नु बोल गइल। कंकरीट के जंगल में लहलहात कैक्टस लेवरन अस साटल मुसुकी से परम्परा के सुनुगत बोरसी तक अचके झकोल गइल। ढेरे…
Read Moreअब ना जगबा, त ओरा जइबा
सिकुरत सिकुरत बचला मुट्ठी भर अब ना जगबा, त ओरा जइबा। पुरबुजन के नाँव हँसा जइबा॥ जे जे कांपत रहल नाँव से ओहन से अब कांपत हउवा। बीपत जब सोझा घहराइल भागत भागत हांफत हउवा॥ कतों बिलइला आ भाग परइला साँच बाति के कब पतिअइबा॥ अब … कवन डर पइसल बा भीतरी जवना से घबराइल हउवा। लालच के लत लागल तहरा बेगर बाति क घाहिल हउवा। जहाँ धरइला आ उहें छंटइला केकरा सोझा दुखड़ा गइबा॥ अब… ईरान क, का हाल छिपल बा अफगानिस्तान पुरा सफाया। दहाई में…
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