अबाटी बंटी

बंटी … ना ना अबाटी बंटी

ओह मोहल्ला में अइला के मात्र साते आठ दिन बाद बंटी अपना करतूत से ऐही नांवें जानें जाये लगलन।

केहू के जगला के सीसा चेका बीग के फोर देस, त केहू के दुआर पर पानी से भरल बल्टी में माटी घोर देस, इ आएदिन के बंटी के काम रहे।

केहू पकड़ के मारे चलें त ओकरा मुंह पर खंखार बीग के भाग चलस ।

बंटी के माई ओरहन सुनत-सुनत हरान भ गइल रहली।

एक दिन आफिस जाये से पहिलही अपना साइकिल के दुरदसा देख के महेश चाचा चिचिआत बंटी के माई से कहे लगले

रउरा से कह देत बानी सम्हार लिही अपना पूत के , हमरा साइकिल के हवा निकाल देलस, ओसही आफिस के देरी हो ता अब हम हवा भराइब तब नू आफिस जाइब !!”

बंटी के माई पूछली कि रउरा देखनी ह

त चाचा बोलले कि मय मोहल्ला देखलस ह, रउरा काहे आन्हर बनल रहेनी, गजबे सहका के रखले बानी जा अपना बेटा के। रोकी महाराज ना त कवनो दिन बढ़िया से पिटा जइहे।

बंटी ओह मोहल्ला के कवनो घर ना छोड़ले रहे, जहवा ओकरा बदमासी के बतकही ना होत होखे।

केहू के बगीचा से नेनुआ तूर लेबे , केहू के छत प बहरी से खूंटी दार बांस लगा के चढ़ के लउका तूर लेत रहे। मजेदार बात इ रहे कि उ कवनो चीज चोरा के तूर के घरे ना ले जात रहे , हेने ओने बीग-फेंक देत रहे।

एक बेर मोहल्ला के मय मेहरारू लोग मिल के छोटहने गड़ही खन के छठ के घाट बनावत रहली जा , ओह मंडली में बंटी के माई भी रहली ।

गड़ही लिपा-पोता के सूखत रहे , दू दिन बाद नहाय खाय रहे । 

मोहल्ला के मय लइका सांझि खानि साइकिल चलावत रहुअन सन ओमे बंटी भी रहे।

बंटी अपना सगतियन से हारा बाजी लगवले कि जे हई लिपाइल गड़ही में पेसाब क दी ओकरा के अठ्ठनी के चकलेट दिहल जाइ। मय लइका बरिज देले सन कि गड़ही छठ करे खातिर लीपा ता, आ तू ऐमे पेसाब करबे

 बाकिर मनसरहग बंटी अउरी सहक के काम के अंजाम दे दिहलस।

लइका कुल हाला कइले स कि बंटी गड़ही में पेसाब क देले ह….

बड़ा हो हंगामा भइल । मय मेहरारू बंटी के माई भीरी ओरहन लेके गइली सन…

गुप्ताइन चाची दांत पीसत बोलली “अरे इ अबाटी के गोड़ टूटो रे दादा, इ त धरम-करम से भी डेरात नइखे “

आ हेने गुप्ताइन चाची के मुंह से सराप निकलल आ ओने बंटी के साइकिल एक्का से लड़ गइल आ बंटी के दहिना गोड़ टूट गइल । 

बंटी के माई रोवे लगली , गुप्ताइन चाची के हत्यारी लाग गइल रहे । बाकिर मोहल्ला के बेसी लोग खुश रहले जा कि अब बंटी सुधर जाइ । 

एक महीना तक मोहल्ला मे कवनो हो हंगामा ना भइल । बाकिर एक महीना बाद जब बंटी के प्लाटर कटा गइल त उ दोगुना बदमाशी संगे बहरी आइल । 

ओही सांझि खेल-खेल मे डक्टराइन के बेटी जिनकर अंगुरिया बार रहे भर मुठा ध के भुइया खूब पटकलस । डक्टराइन के सास ओकरा के खूब गारी दिहली ।

पड़ाइन चाची के बेटी सुधा लकठो कीन के घरे जात रहे ओकरा से लकठो के ठोंगा छीन के नौ दू एगारह हो गइल । सुधा गोड़ पटक-पटक के मोहल्ला के गली में खूब रोवे लगली। 

अब उ सांझि खा खेले निकले त हाथ मे एगो आम के चइली ले ले रहे ओही से केहू के चलत इसकूटर मे त केहू के साइकिल के चाका में चइली फंसा देत रहे ।

मय मोहल्ला बंटी के अबाटीपन से हरान परसान रहे। 

ओह महीना एगो घटना घटल , भइल इ कि बंटी के बाबूजी जे कि आर्मी मे सूबेदार रहुअन फगुआ के छुट्टी में घरे आइल रहुअन। उनकरा अइला के अगिला दिन भोरे-भोरे बंटी के रोवे चिचिआए के आवाज मोहल्ला के हर घर मे सुनाइ देले रहे।

बंटी जुमा के मुरगी चोरा के अपना मम्मी के पुरान बकसा मे बन क देले रहले, जुमा से केहू कह दिहल कि मुरगी बंटी ले के भगले ह …उ भागत बंटी के घरे अइले आ मय बात बतवले, बंटी से जब उनकर बाबूजी पूछे लगले त उ साफे मना क दिहले।

 घर में खोजाइ भइल कतहूँ मुरगी ना मिलल, तले आंगन के पीछा वाला कोठारी से कुछ आवाज आवत रहे जब सब केहू ओजुग गइल त कबाड़ में धइल टीना के बकसा में मुरगी छपिटात रहे। बकसा खोल के मुरगी के निकालल गइल आ जुमा के दिहल गइल।

लजइला मुहे बंटी के माई बाबूजी जुमा से क्षमा भी मगले।

जुमा के जाते मय मोहल्ला खदबदा के बंटी के ओरहन ले के उनकरा घरे चहुप गइल। सूबेदार साहेब के लाजे मुढ़ी नेव गइल।

दू दिन तक बंटी घरे में बन रहले। दू दिन बाद उनका घर के सोंझा जीप आ के रूकल । ओमे उनका घर के कुछ खास खास समान लदात रहें। ओकिलाइन चाची पूछली कि कहां के तैयारी हो तात सूबेदार चाचा बतवले कि फगुआ गांवही से मनावल जाइ, आ फेर बारह दिन बाद चइत के नवरात शुरू होखी त पूजा-पाठ भी गांव ही से करें के विचार भइल ह।

बाकिर बंटी के मय असलियत पता चल गइल रहे

उनकर शहर से नांव कटवा दिहल गइल रहे। भर रस्ता बंटी के आपन मरखहवा चाचा इयाद परत रहुअन जिनकरा इसकूल में ओकर नांव लिखाई।

 

बिम्मी कुंवर

चेन्नई

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