चइत क घाम में साईकिल चलावत शिखा स्कूल से घरे चहुँपल त, पियास क मारे मुँह झुरा गइल रहे। तेज हवा रहे त बाकिर लूह लेखा गरम ना रहे, लेकिन हवा के बिपरीत साईकिल खिंचल एतना आसान न होखे। साईकिल दुआरी पर ठाड़ा करके जल्दी से घर मे घुसल त दुगो नया परानी के देख ठिठक गईल। तनी देर गौर से देखला क बाद ओकरा जोर के झटका लागल अरे बाप रे, ई त ‘नेपाली आजी’ हई। बाकिर ई सँगवा एगो मुस्टंडा बा, ई के ह? नेपाली आजी से कबो…
Read MoreCategory: कहानी
कहल-सुनल माफ़ करिहा
बंगड़ परेसान हो-हो खटपटिया गुरु के मकान क चक्कर काटत रहलन। कब्बो गेट के लग्गे जाके भित्तर झाँके क कोसिस करें कब्बो खिड़की के बंद पल्ला पर कान रोपें बाकिर कवनों आवाज़-आहट ना। दू तल्ला क बड़-बरियार मकान अइसन सून-सपाट रहे कि लगे बरिसन क उजाड़ ओम्मे वास ले लिहले ह। मानुस त मानुस चिरई-चुरुंग भी ना देखायँ। दू दिन पहिले त अइसन सन्नाटा ना रहल। अब एकाएक कइसे अइसन हो गइल! हरान-परेसान बंगड़ मकान के बंद गेट पर मूड़ी टिकवले अबहीं सोचते रहलन कि आखिर का बात भइल, काहें…
Read Moreमंतोरना फुआ
बुचिया के छुट्टी ना मिलल एहि से मंतोरना फुआ के अकेले जाए के पड़ल।एसे पहिले जब कहीँ जायेके होखे त केहू न केहू उनके संगे रहे।एदा पारी फुआ एकदम अकेले रहलीं बाकी गांवें जाये क एतना खुसी रहे कि उनके तनिको चिंता न रहे। आराम से गोड़ फइलवले पूरा सीट छेंकले रहलीं। “दादी जरा साइड होइए…।” फुआ देखलीं एगो बीस-बाइस साल क लइका उनके सामने खड़ा ह। “ना ई हमार सीट ह।हई देखा टिकस…बुचिया कहले रहलीं कि जबले टेशन ना आई तबले सीट छोरीह जीन।” “हाँ,लेकिन बीच वाली बर्थ मेरी…
Read Moreबेकहला
” ए बचवा हई मोबईलवा पर का दिनवा भर टिपिर-टिपिर करत रहेला।कवनो काम -धंधा ना ह का तोहरे लग्गे आंय।” बेकहला बोलत-बड़बड़ात बचवा के गोड़तारी आके करिहांय धय के निहुर गइलीं। ” तू आपन काम करा न , काहें हमरे फेर में पड़ल रहे लू।अबही जा इँहा से हमार दिमाग जिन खा। ” आछा-आछा हमरे छन भर खड़ा रहले से तोहार दिमाग जर-बर जात ह।अइसन दिमाग के त हम बढ़नी बहारी ला।जा ए बचवा बूढ़ -पुरनिया से जे अइसे बोली ओके भगवान देखिहन।” “काहें, आज सबेरे से केहू भेटायला ना…
Read Moreबोल बचवा – कुछो बोल
कुछ दिन से दादा जी बहुत याद आवत बाड़न। जब भी पुरान बात अतीत के सोचीला, ओकरा में दादा जी जरूर शामिल होखेलन। छुट्टी में जब भी शहर से दादा जी के पास जात रहनी, खूब बतकूचन होखे। हमरा से भर पेट तरह-तरह के बात पूछस। एके बतिया के घुरपेट के आगे बढ़ावत रहीं जा। गर्मी के छुट्टी एक महीना के होत रहे। दादा जी खाली बतिआवे में रहस, त दादी माँ के आपन अलग किस्सा रहत रहे। ऊ खाली खियावे बदे परेशान रहस। बबुआ ई खा ल, हऊ खा…
Read Moreलोक-परलोक के संघतिया
दुलारी देवी के सज्जन सिंह से बिआह भइला 40 बरीस खुल के ना बोल पावत रहली आ ना उनुका से नजर मिला सकत रहली। उनकर खड़ाऊँ के खटर खटर सुनऽते उनकर घूघ नाक तक आ जात रहे। सज्जन सिंह से ऊ कुछुओ बोलऽतो बतिआवत रहली कि ना कहल मुसकिले रहे। सज्जन सिंह बड़ी दम-खम वाला जमींदार के पूत रहलन।जमींदरई त माई-बाप संगही ओरा-बिला गइल रहे बाकिर ओकर असर सज्जनसिंह पर अजुओ खूब रहे। दुआर पर हरदम आसामी आ अंगना में औरतन के खेत खरिहान से आइल सामान के बटोरे-सटोरे के…
Read Moreटीस
“महतारी की कोखि से का जाने का भागि ले के जनमल रहनीं। नइहर में नाहीं ढेर त कुच्छु कम्मों त ना रहे। हमार बाबूजी कवनों चीज के कमी ना होखे देत रहलें। बड़ी देखि सुनि के भरल-पुरल घर में बिअहले रहलें कि हमार बबुनिया सुख से रही, बाकिर भागि के लेखा कि छौ भाइन में बर-बँटवारा के बाद जवन खेती-पाती मिलल ओसे गुजर-बसर भर हो जाउ, ऊहे ढेर!” बुधिया खेते की मेंड़े पर बइठि के घास छोलत मनेमन अपनी भागि के कोसत रहे। “अरी बुधिया!” सुनि के हाथ रुकि गइल…
Read Moreसारधवा
मरछिया अपने त सात गो लइका के मार कै भइल रहै .. जनमते महतारी घुरा पर फेकवा दिहली ..कौदो दे कै किनली ..बड़ा टोटरम पर .मरछिया जिएल ..मरछिया धीरे-धीरे सेयान होखे लागल ..जवानी उफान मारत रहे ..”इजवानी केकरा कस में बा ..मरछिया एकदम गोर भभुका रहे रहे ..आओठ लाल-लाल ..नकिया सुग्गा के ठोर अइसन चोख ..अँखियांमें बुझाए काजर कईल बा ..केसिया टेढ़ टैढ़ घुंघराला बुझाए करिया घाटा ह..माने छाछाते देवी कै मूरत ..देह के उतार चढ़ाव गजब के .. चाल मस तानी ..चोटिया नागिन खनिया अँखिया बुझाए दारु पियले बिया…
Read Moreअन्हरिया में अंजोरिया
केतना दिन जमाना के बाद आज ए पेड़ा से सुरसती के जाए के मउका मिलल बा।बगईचा के झिहिर-झिहिर बेयार बड़ा सोहावन लागत रहे।बरियारी गडि़वान के रोकवाए के मन रहे।बाकिर अन्हार हो जाइत त बाटे ना बुझाईत।लइकाई के सगरी बात मन परे लागल।अमवारी के झुलुआ..भईंस के सवारी..पतहर झोंक के मछरी पकावल..डडे़र पर के दउराई..गड़ही में गरई मछरी के पकडा़ई..पुअरा के पूंज पर के चढ़ाई..फेन धब-धब गिराई.. लरिकाईं के एकह गो बात मन के छापे लागल।उहो का दिन रहे।मन के राजा रहनी सन। जइसही बैलगाड़ी सतरोहन भईया के दुआरी पर चहुंपल रोअना-…
Read Moreएक कप चाह
(हमार मूल fb पोस्ट के भोजपुरी रूपांतरण) —— ‘चाह’ जिनगी ह । ‘चाह’ एगो एहसास ह। ‘चाह’ विरह के तड़प ह । ‘ चाह’ मिलन के मिठास ह । आरा -बलिया -छपरा ह ‘चाह’ । ‘चाह’ भजपुर- रोहतास ह। ऋतु में वसंत आ माह मधुमास ह। तबे त सभका के पेय ई ख़ास ह। एही से केहू चाह के बारे में कहले बा- “तू पूनम हम अमावस, तू कुल्हड़ वाली ‘चाह’ हम बनारस” “अइसन ए गो ‘चाह’ सभका होखे नसीब ,कि हाथ मे होखे कप आ सामने महबूब” ‘चाह’…
Read More