–भगवती प्रसाद द्विवेदी बाबू! रउआं परदेसी हईं नू? जरूर देश भा सूबा के राजधानी में राउर दउलतखाना होई। बइठीं हमरा एह टुटही खटिया पर भा ओह मचान पर। कहीं, हम अपने के का सेवा करीं?–हम भला राउर का खातिरदारी कऽ सकेलीं साहेब! पहिले हाथ-मुंह धोईं आ लीहीं हई गुर के भेली,साथ में एक लोटा इनार के शीतल जल। जे हमरा दुआर-दरवाजा प आवेला, बस हम इहे सभका खातिर लेके हाथ जोड़िके हाजिर रहेलीं। हं,अब रउआं इतमीनान से बतिआईं। रउरा देह पर हई उज्जर धप्-धप् खादी के लिबास। कान्ह…
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भाषा-साहित्य-संस्कृति के मोती: मोती बीए
नब्बे-पार मोती बीए लमहर बेमारी से जूझत आखिरकार 18 जनवरी, 2009 के सदेह एह लोक से मुकुती पा लेले रहनीं। किशोरे उमिर (1934) से संग-साथ देबे वाली जीवन संगिनी लछिमी सरूपा लक्ष्मी देवी पहिलहीं 1987 में साथ छोड़ि देले रहली। बांचि गइल रहे उन्हुका इयाद में बनावल ‘लक्ष्मी निवास’, जहंवां हिन्दी, भोजपुरी, अंगरेजी, उर्दू के एह समरथी आ कबो सभसे अधिका शोहरत पावेवाला कवि के पहिले आंखि आउर कान जवाब दे दिहलन स,फेरु अकेलहीं तिल-तिल टूटत,बिलखत-कलपत शरीर से आतमा निकलि गइल,संसा टंगा गइल। 1 अगस्त, 1919 का दिने उत्तर प्रदेश…
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