अंगार पड़ गइल

का जमाना आ गयो भाया,आजु कल त सभे के सेस में बिसेस बने के लहोक उठ रहल बा। भलही औकात धेलो भर के ना होखे। सुने में आवता कि एगो नई-नई कवयित्री उपरियाइल बानी आ कुछ लोग का हिसाब से उ ढेर नामचीन हो गइल बानी । मुँह पर लेवरन पोत के मुसुकी मारल उहाँ के सोभाव में बाटे। कुछ लोग त उनुका एगो अउर सोभाव बतावेला। कबों रेघरिया के त कबों लोर ढरका के, कबों जात-धरम के पासा फेंक के एगो-दू गो कार्यक्रम में अतिथिओ बनि के जाये लगल बानी। कादों उहाँ के कवनों संस्था के अध्यक्षो बानी आ अपना संस्था में अपनही लेखा कुछ लोगन के बोला के कार्यक्रमों करा रहल बानी। कादों उहाँ के एकाध गो किताब आ 2-4 गो साझा संग्रहों प्रकाशित हो चुकल बा। कुछ लोग उनुका गिनती लमहर साहित्यकारों में करि रहल बा। उनुकर लिखलकी कवितन के अगर रउवा माने-मतलब भेंटा जाव, त हमरो के बताएम। तबो उहाँ के  अपना संस्था के फ्रेंचाइजी जगह-जगह खोल रहल बानी। कई लोगन से इहो क़हत भेंटा जानी कि फलना-फलना त हमरा मुसुकी पर पागल बा। कहते मातर कुछो करे खातिर तइयार हो जाला।

कई रोज पहिला एगो कार्यक्रम में उनुका से हमार भेंट हो गइल। ओह कार्यक्रम में उहाँ के विशिष्ट अतिथि का रूप में बोलावल गइल रहनी। दू-तीन दिन तक अपना फेसबुक पेज से खूब परचारों कइले रहनी। जवन कारड़ सोसल मीडिया पर चलत रहे, ओह में उनुका नाँव दूरे से चमक मारत रहे। नमस्ते-नुमस्ते का बाद उहाँ के हमरा से पूछलीं, राउर नाँव त लिस्ट में नइखे, रउवा कइसे इहवाँ आ गइनी ?

हम कहनी कि हमरा के फिलहाल एगो श्रोता बूझीं। अध्यक्ष आ संजोजक के आत्मीय नेवता पर आइल बानी। जहवाँ आत्मीयता होले, उहाँ कवनों कारड़-सारड़ में नाँव होखे के जरूरत ना होला। अतने सुनते उहाँ के चेहरा पर कई गो रंग आइल आ बिला गइल।

कार्यक्रम दू  सत्र के रहे। पहिलका सत्र  शुरू भइल। पहिलका सत्र में कुछ विद्वान प्रोफेसर लोग के मंच पर बोलावल गइल आ उहे लोग एगो महान समालोचक के बिसे में आपन-आपन संस्मरण सुनवलस। बीच-बीच में सम्मानों के क्रम चलत रहल।

पहिलका सत्र बितला का बाद दोसरा सत्र शुरू भइल। दोसरका सत्र काव्य संध्या के रहे। एह सत्र में कुछ नामचीन लोगन का संगे हमरो के मंच पर बोलावल आ अथान देहल गइल। बाक़िर ओह नामचीन कवयित्री के मंच पर अथान ना मिल पवलस। ई देखते उहाँ के बाई लेस दिहलस। आयोजक आ संचालक लोग से पहिले मंच पर अथान खातिर परयास कइली बाक़िर संभव ना हो पावल। तब उहाँ के झउहा के कहनी कि फेरु  मंच से ओह लोगन के हटा देवल जाय, जेकर नाँव लिस्ट में नइखे। कार्यक्रम के अध्यक्ष आ संचालक लो पहिले उहाँ के समझावे के परयास कइलस, बाक़िर उहाँ के ना समझलीं। तंग आ के ऊ लोग कहलस कि कुछ लोग के उपस्थितिए सम्मान के मानक होले। एह मंच पर एह घरी जतने लोग बा,सभे के प्रणम्य बूझीं। मंच से ना केहू उठावल जाई आ ना रउवा के उहाँ बइठावल जाई। मन होखे त कार्यक्रम में रहीं भा जाईं , राउर मरजी। ई सुनते उनुका मुँह देखे जोग बन गइल आ उहाँ के बइठ गइनी। मंच आ संचालक लोग उहाँ के ई हाल देखि के गवें-गवें मुस्कियात रहे। आजू त साँचो उनुका छाती पर लहकत अंगार पड़ गइल रहे काहें से कि उनुके मुसुकी बेअसर हो गइल रहे। हंस के सभा में उनुकर उपस्थिति उनुका के बकुला जस बुझाये लागल रहे।

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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