अइसन गारी के गारी जनि जानी के बहाने लोक के बतकही

भोजपुरी भाषा के मधुरता आ मिठास से सभे सुपरिचित बाटे। भोजपुरिया लोक के विशिष्ट पहिचानो बाटे। कहल जाला कि  विविधता जहां के पहिचान आ परिभाषा होखे,अइसन लोक के बाति बरबस मन के मोह लेवेले। लोक जवन अपने संगे अपने संस्कृति के संवारत आ संइहारत आगु बढ़ेला। ओकर बढ़न्ति ओकरे जीवंतता के पहिचान होले।ओह पहिचान के जोगावे क श्रमसाध्य काम भोजपुरिया समाज के मेहरारू लोगन के कान्ही दर कान्ही चलत चलल आ रहल बा। अपने सुघरई आ मिठास के जोगवले सनकिरवा लेखा जुगजुगा रहल बा। भोजपुरिया समाज के समुझे आ जाने…

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आदत से लचार आ मानसिक बेमार

का जमाना आ गयो भाया,साँच के साँच कहे भा माने में नटई से ना त बोलS फूटता, आ ना त बुद्धिये संग-साथ देत देखात बा। ऐरा-गैरा,नथ्थू-खैरा सभे गियान बघारे में लाग गइल बा।गियान के सोता चहुंओर से फूट-फूट के बहि रहल बा।अजब-गज़ब गियान, न ओर ना छोर बस बहि रहल फ़फा-फ़फा के। मने कतों आ कुछो। लागता कि सगरे जहान के गियानी लोग मय गियान के संगे इहवें कवनों सुनामी में बहत-बिलात आ गइल बा आ ओह लोगन के गियानों में एह घरी सुनामी आ गइल बा। खाली गियाने तक…

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सामाजिक संबन्धन के सघनता से जनमल साहित्य के सिरिजना करेवाला साधक द्विवेदी जी

               लोक संस्कृति किताब में लिखल बात ना होखे, जिनिगी के ऊंच – खाल राह में अविरल बहत रहेला। अपना परिवेश खातिर बोलल – लिखल – दरद के अनुभव कइल लोक के बात कइल ह। सामाजिक संबन्धन के सघनता के गर्भ से लोकवार्ता के जन्म होला जे अपना में घर, परिवार, समाज, गांव, जनपद, राज्य आ देश समेटले रहेला। व्यष्टि के ना समष्टि के बात करेला। भोजपुरिया समाज ‘ मैं ‘ ना जाने।, हम जानेला, लोक जियला, , समष्टि बुझेला। भगवती प्रसाद द्विवेदी लोक…

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स्मृति में बसल गाँव के कहानी के बहाने लोक-संस्कृति आ जिनिगी के बयान

दो पल अतीत के ( मेरा भी एक गाँव है) हरेराम त्रिपाठी ‘ चेतन ‘ के हिन्दी में सद्य प्रकाशित पुस्तक जब हाथे आइल त ई जान के खुशी भइल कि एह संस्मरणात्मक कथेतर गद्य के माध्यम से एगो विद्वान भोजपुरिया आ उनुकर गाँव के नजदीक से समझे बूझे के मिली।दू दिन में किताब एक लगातार पढ़ गइला के बाद ई देखे के मिलल कि किताब भले ई हिन्दी में बा बाकिर पन्ना – पन्ना में भोजपुरी के सुगंध बिखरल बा।ई किताब अगर भोजपुरी में रहित त भोजपुरी साहित्य खातिर…

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दू बून लोर बा आ हम बानी

‘सजग शब्द के रंग’  हरेराम त्रिपाठी ‘चेतन’ के 94 गो कविता आ गीत-ग़ज़ल के संग्रह हs । एह संग्रह के पढ़त-गावत-गुनगुनावत हमनी के देख सकीला जा कि एकरा में जीवन, समाज, प्रकृति-संस्कृति के विविधवर्णी छवि के उरेहल गइल बा । चेतन जी के कविताई के अगर असली हुनर आ कमाल देखे के होखे तs एह कृति के ज़रूर पढ़े के चाहीं । सांच कहल जाय त ऊ एह कृति में आपन करेज काढ़ि के राखि देले बाड़न । उन्हुकर काव्य साधना आ सिद्धि के सबरंग के एह एगुड़े शाहकार कृति…

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‘आपन आरा’ के बहाने एगो खास दौर के शैक्षिक आ साहित्यिक पड़ताल:

घर परिवार से दूर, शहर के जिनगी में अपना के समायोजित करत कुछ बने के जद्दो-जेहाद आ ओह दौर में संपर्क में आइल साहित्यिक बिभूतियन के परिचय का संगे उनुका से ढेर कुछ सीखे-जाने के अरमान मन में जोगवले एगो युवा मन के दस्तावेज़ ह ‘आपन आरा’।’आपन आरा’ में लेखक अपने  जीवन के एगो महत्वपूर्ण कालखंड जेवन उ आरा कस्बा में विद्यार्थी जीवन के दौरान गुजरले बा — जुलाई १९७७ से जुलाई १९८७ के दौरान क खट-मीठ अनुभवन के बहुत बिस्तार से उकेरे क परयास कइले बाड़ें। ई समय लेखक…

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