बिलारी के भागे क सिकहर

का जमाना आ गयो भाया,अजबे खुसुर-फुसुर ससर ससर के कान के भीरी आ रहल बा आ कान बा कि अपना के बचावत फिरत बा। एह घरी के खुसुर-फुसुर सुनला पर ओठ चुपे ना रह पावेलन स। ढेर थोर उकेरही लागेलन स। एह घरी के ई उकेरलका कब गर के फांस बन जाई, एह पर एह घरी कुछो कहल मोसकिल बा। रउवा सभे जानते होखब कि इहवाँ जेकर जेकर कतरनी ढेर चलत रहल ह, सभे एह घरी मौन बरती हो गइल बा। अब काहें, ई बाति हमरा से मति पूछीं, खुदही बूझीं।मलिकार के लगे ढेर अस्त्र शस्त्र बा, कब केकरा पर कवना के परयोग हो जाई आ जेकरा पर होखी ओहके बुझइबो ना करी कि अइसन काहें भइल बा। अब ई जवन कुछ बा तवन सभे के सोझा बा। कतरनी भलही बन्न हो गइल होखे बाक़िर लेखनी त चल रहल बानी सन। अब हमरा से मति पुछेम कि लोग पढ़त काहें नइखे । लोग पढ़त रहत त साहित्य 20 रूपिया किलो के भाव से ना नु बिचात। तबो लेखनी ह कि अनथकले चलत चल जा रहल बा।

एह बेरा चुनावी डंका बाजल बा बाक़िर भगदड़ नइखे लउकत। डार डार फाने वाली प्रजाति थाकल बुझाता। कुछ लोग त जगह के कमी के ठीकरा फोड़ रहल बा। सभे मुँह उठा के मलिकारे के निहारे में लागल बा आ मलिकार दुनिया में सभेले बड़की पाटी क सभेले बड़का मुखौटा का संगे ‘अहम् ब्रह्मास्मि’ के जाप कर रहल बाड़े। जाप करे वाला मनई आँख मून के जाप करेला। सोझा से केहू आओ भा जाओ भा भकोलवा पाथर मारि के सिकहर तूर दे, मलिकार अपना धियान में मगन त मगन।भकोलवन के प्रजाति के घुसपैठ सगरों रहबे करेला । फेर मलिकारे के पाटी कइसे बाचल होखी। इहे हाल नवकी, पुरनकी सगरे पाटी के बा।

सब जनला का बादो कि का हाल होखे वाला बा, तबो पुरनकी में ढेर जुत्तम पैजार चलत बा। इहवाँ ‘एक अनार जाने कतने बेमार’ बस एह खातिर बा लोग कि नम्मर बढ़ जाव। अइसना में सोचीं कि मलिकार के इहाँ क का हाल होखी। जहाँ टिकसवा जीत के गारंटी मान लीहल गइल होखे। अइसहूँ  एह घरी ‘मेरा परिवार, मेरी गारंटी’ के राग खूबे बज रहल बा। मलिकार त एह घरी ओहू के मजबूरी बन चुकल बाड़ें, जे उनुका के पानी पी पी के कोसत रहेला। भुंवरी काकी के बेटहना मने मनराखन पांड़े के हाल त पूछहीं लायक नइखे। मनराखन पांड़े के नवका नवका खोज करे में मजा मिल रहल बा। ओप्पर से चइत के महीना, अपना संगे प्रेम-बिरह के पोटरी लेके ढोलक पर थाप दे रहल बा, तबो मनराखन पलायन के पीर में घेराइल बाड़ें।

हम रउवा लोगन के भकोल बिरादरी के चहुंप बतावत बतावत कहीं आउरे चहुंप गइनी। दिल्ली के नियरा के एगो जगहा से मलिकार के पाटी सात बेर जीतल बा। इहाँ के लोग चार बेर से बाहरी बाहरी के मउर बान्हत रहल ह। एना पारी भकोलवन के किरपा से ममिला भितरी वाला बन गइल। तबो इहाँ के लोग अब कुछ अउर खुसुर-फुसुर करि रहल बा। मने ई भितरी मनजोग नइखे लागत। लोग बाग भितरी वाला के करतूत के चिट्ठी बाँचे लागल बा। पाटी वाला लोग मोटा भाई के सोटा के डरे मन ममोस के पाछे-पाछे डोल रहल बा। ढेर लोग लंगड़ी मारे के फेरा में लाग गइल बा। हाल के हाल त ई बा कि ‘याने कि’ के संगे कचहरी जाये के पड़ल आ मलिकार के सड़क पर उतरे के परि गइल। अब त बिलारी के भागे से सिकहर त टूट चुकल बा, ओकरा लैनू भेंटाई कि ना, राम जाने। रउवा देखत रहीं भा हमरा संगे चली चइता के थाप आ अलाप सुने —!

चइता के साध न पुरइहें  हो रामा,

आइल चुनउवा।

कतनन के मुँह मुरझइहें हो रामा,

आइल चुनउवा॥

 

 

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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