खेती-बारी : बेद से लबेद तक

डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल

भारत एगो खेती-बारी करेवाला देश हटे। भारत का आबादी के एगो बड़हन हिस्सा आपन गुजारा खेती से करेला। एही से भारत में खेती-बारी के भोजन का देवता के दरजा दिहल जाला।

साँच त ई बा कि भारत में रामायण आ महाभारत का पहिलहीं से खेती के काम हो रहल बा। लोग खेत जोतत रहे आ ओहमें अनाज, सब्जी आदि के खेती करत रहे। कुछ लोग खेती का सङे-सङे गाइयो  पालत रहलन। देखल जाउ त आजुओ भारत के अधिकांश परब खेतिए बारी से जुड़ल बा।

संसार के पहिल ग्रंथ ऋग्वेद में भी खेती का काम के सम्मानजनक काम बतावल गइल बा।  एहमें लोगन के किसान बने खातिर प्रेरित कइल गइल बा-

अक्षैर्मा दीव्यः कृषिमित् कृषस्व वित्ते रमस्व बहुमन्यमानः।

(ऋग्वेद- 34-13) माने जुआ मत खेल, खेती कर अउर सम्मान का सङे धन पाव।

ऋग्वेद का पहिला मंडल में ई उल्लेख बा कि अश्विन देवता लोग राजा मनु के हर से खेत जोते सिखवले रहल। ऋग्वेद में एक जगह अपाला अपना पिता अत्रि से खेत का भरल-पूरल होखे खातिर प्रार्थना करत मिलतारी।

अथर्ववेद का एगो प्रसंग से जानकारी मिलता कि सबसे पहिले खेती-बारी के काम राजा पृथुवेण्य शुरू कइले। अथर्ववेद में त 6, 8 आ 12 गो बैल के हल में जोतला के बरनन मिलत बा। यजुर्वेद में क्रम से पाँच प्रकार का चावल के बरनन मिलता- महाब्राहि, कृष्णव्रीहि, शुक्लव्रीही, आशुधान्य अउर हायन। एह से स्पष्ट हो जाता कि वैदिको काल में धान के खेती होत रहे।

कृषि पाराशर में त खेती के महत्व  देखहीं लाएक बाटे-

कृषिर्धन्या कृषिर्मेध्या जन्तूनां जीवनं कृषिः । (कृषि पाराशर, श्लोक-7)

खेती सम्पत्ति आ मेधा प्रदान करेले आ खेतिए मानव जीवन के आधार बाटे।

जैन शास्त्र का अनुसार त श्रीराम से कई पीढ़ी पहिले भगवान ऋषभदेव खेती, शिल्प, असि (सैन्य शक्ति), मसि (मेहनत), वाणिज्य आ विद्या (शिक्षा) खातिर रोजी-रोटी के साधन के विशेष व्यवस्था कइले रहले। पहिले के लोग खाली प्रकृति पर निर्भर रहे। ई लोग फेंड़े के आपन भोजन अउर मए सुविधा के स्रोत मानत रहे। ऋषभदेव पहिल बेर खेती से अन्न आदि उपजावे सिखवले।

रामायण काल ​​में राजा जनक खेत जोतत खा सीता माई के जमीन से मिलल रही। एही तरे महाभारत में बलराम जी के हलधर कहल जाला। उहाँ का जहें रहीं, एगो हर हमेशा हथियार का रूप में उहाँ का कान्ह पर रहत रहे। एह तरह से स्पष्ट बा कि ओहू घरी खेती होखत रहे।

सिंधु घाटी के सभ्यता एगो स्थापित सभ्यता रहे। एह सभ्यता के लोग खेती के काम के साथे-साथे गोपालन आ अउरी कई तरह के धंधा भी करत रहे। सिंधु घाटी का खुदाई में मिलल बैल के आकृति वाला मूर्ति के भगवान ऋषभनाथ से जोरिके देखल जाला।

तुलसीदास जी त रामचरितमानस आदि अपना ग्रंथन में जगह-जगह पर खेती-बारी का सूत्रन के चरचा कइले बाड़न। सीता स्वयंवर वाला धनुषभंग प्रसंग में जब राम जानकी के बहुत विकल देखलन त ओह घरी खेतिए बारी के परतोख गोस्वामी जी के सही लागल-

का बरषा सब कृषी सुखानें। समय चुकें पुनि का पछितानें॥

अस जियँ जानि जानकी देखी। प्रभु पुलके लखि प्रीति बिसेषी।।

माने जब सब फसल सुखिए जाई त बरखा कवना काम के ? समय बितला का बाद पछतावा के का फायदा ?  मने मन एह बात के अनुभव करत राम जानकी का ओरि देखले आ उनका विशेष प्रेम के देखि के उनुकर रोंआ खाड़ हो गइल।

खल वंदना प्रकरण में तुलसीदास जी खेती-बारी क़े जवन परतोख देतनी, ऊ देखे लाएक बा-

खल लोगन के की विशेषता बतावत उहाँका ओला से फ़सल के होखेवाला नुकसान के चरचा करतानी-

पर अकाजु लगि तनु परिहरहीं। जिमि हिम उपल कृषी दलि गरहीं।

माने जइसे ओला खेती के नाश कइके अपनहूँ नष्ट हो जाला, ओइसहीं खल लोग बिना कवनो कारने दोसरा के काम बिगारे खातिर आपन शरीर नष्ट कर लेले।

एही तरे रामचरितमानस का किष्किंधा कांड में उपमा का बहाने उपमेय का रूप में खेती-बारी का कुछ सूत्रन के सुंदरता पर एक नजर डालल जाउ-

महाबृष्टि चलि फूटि किआरीं। जिमि सुतंत्र भएँ बिगरहिं नारीं॥

कृषी निरावहिं चतुर किसाना। जिमि बुध तजहिं मोह मद माना॥

माने भारी बरखा का चलते खेत के कियारी टूटि गइल बाड़ी सन, ठीक ओसहीं जइसे मेहरारू स्वतंत्र भइला पर बिगरि जाले। चतुर किसान खेत में ओइसहीं खर-पतवार निकालतारे आ घास-फूस बीछतारे, जइसे विद्वान लोग मोह, मद आ सम्मान के त्यागि देला।

बरसाते का बरनन में उहाँका अन्न से सुशोभित धरती के भी चित्रण करतानी-

ससि संपन्न सोह महि कैसी। उपकारी के संपति जैसी॥

हरियर फसल से लहरात धरती अइसन सुन्नर लागतारी, जइसे  परोपकारी आदमी के धन सुन्नर लागेला।

घाघ-भड्डरी

लबेद माने लोक में खेती-बारी खातिर सभसे लोकप्रिय व्यक्तित्व घाघ-भड्डरी के लउकेला। घाघ एगो खेती के विशेषज्ञ आ व्यावहारिक आदमी का रूप में प्रतिष्ठित बाड़े। उनुकर एक-एक दोहा उत्तर भारत के किसानन का कंठ पर चंदन नियन मिलेला। बैल खरीदे के होखे भा खेत जोते के, बीया बोवे के होखे भा कटनी करे के, घाघ के कहावत जइसे सभके मार्गदर्शन करेले। घाघ का लोकोक्तियन के पइसार वाचिक रूप में जन-जन तक बाटे।

घाघ आ भड्डरी- दूनो जाना एके आदमी रहन कि अलग-अलग, एहमें बहुत मतभेद बाटे। कुछ लोगन के मान्यता बा कि भड्डरी घाघ के पत्नी रही, कुछ लोग भड्डरी के कृषि के पूर्वानुमान करेवाला एगो अलग आदमी मानेले बाकिर एतना तय बा कि दूनो जाना अत्यंत कुशल, बुद्धिमान, नीतिमान अउर भविष्य के ज्ञान रखेवाला रहन। घाघ जहाँ खेती, नीति अउर स्वास्थ्य से जुड़ल कहावत खातिर विख्यात बाड़न, ओहिजे भड्डरी के रचना बरखा, ज्योतिष अउर आचार-विचार से संबंधित बाड़ी  सन।

घाघ आ भड्डरी के खेती का ज्ञान के कुछ बानगी प्रस्तुत कइल जा रहल बा-

खेती

घाघ का अनुसार खेती सबसे बढ़िया पेशा हटे, बाकिर ऊ खेती, जवना में किसान परअसरा ना होके अपनहीं खेती करेला-

उत्तम खेती मध्यम बान, निकृष्ट चाकरी  भीख निदान।

खेती करै बनिज को धावै। ऐसा डूबै थाह न पावै।।

उत्तम खेती जो हर गहा।  मध्यम खेती जो सँग रहा।।

 

खाद

घाघ खाद के खेती खातिर बहुत जरूरी मानतारे-

खाद पड़े तो खेत।  नहीं तो कूड़ा रेत।।

गोबर राखी पाती सड़ै।  फिर खेती में दाना पड़ै।।

सन के डंठल खेत छिटावै।  तिनते लाभ चौगुनो पावै।।

गोबर, मैला, नीम की खली।  या से खेती दुनी फली।।

वही किसानों में है पूरा।  जो छोड़ै हड्डी का चूरा।।

 

जुताई

घाघ गहिराह जुताई के सबसे बढ़िया जोत बतावतारे-

छोड़ै खाद जोत गहराई।  फिर खेती का मजा दिखाई।।

 

बाँध

पैदावार का पुष्ट, बढ़िया आ बढ़ंती खातिर ऊ बाँध के जरूरी मानतारे-

सौ की जोत पचासै जोतै,  ऊँच के बाँधै बारी।

जो पचास का सौ न तुलै,  देव घाघ को गारी।।

 

घाघ एगो ज्योतिषी का रूप में

कृषि वैज्ञानिक कवि घाघ अपना कहाउत में बरियार अनुभव आ गहिर संवेदना का चलते एगो दूरदर्शी ज्योतिषी का रूप में भी लउकेले। घाघ का ओहू रूप के कुछ बानगी देखल जाउ-

तपै मृगशिरा जोय तो बरखा पूरन होय।

जो मृगशिरा नक्षत्र में गर्मी खूब परी त बूझीं कि ओह साल बरखा खूब निम्न होई।

 

आदि न बरसे आदरा,  हस्त न बरसे निदान।

कहै घाघ सुनु घाघिनी, भये किसान-पिसान।।
आर्द्रा नक्षत्र का शुरुआत में आ हस्त नक्षत्र का अंत में जो बरखा ना होखे त अइसना में किसान पिसाके आटा हो जाला माने बरबाद हो जाला।

 

आसाढ़ी पूनो दिना, गाज बीज बरसन्त।

नासै लक्षण काल का, आनंद माने संत।।

आषाढ़ महीना का पूर्णिमा के जो आसमान में बादल गरजी, बिजुरी चमकी अउर बरखा हो जाई त अकाल खतम हो जाई आ सज्जन लोग खुश हो जइहें।

 

उत्तर चमकै बीजली, पूरब बहै जु बाव।

घाघ कहै सुनु घाघिनी, बरधा भीतर लाव।।

जो उत्तर में बिजली गिरे आ पुरुब से हवा चलत होखे त बैल के घर के भीतर बान्ह लेबे के चाहीं, काहेंकि जल्दिए बरखा होखी।

 

उलटे गिरगिट ऊँचे चढ़ै। बरखा होई भूइँ जल बुड़ै।।

माने जो गिरगिट फेंड़ पर उल्टा चढ़ जाई त बरखा एतना हो जाई कि धरती पर खाली पानिए पानी  लउकी।

 

चमके पच्छिम उत्तर कोर। तब जान्यो पानी है जोर।।

जब पच्छिम आ उत्तर कोना पर बिजली चमके तब ई बूझे के चाहीं कि बरखा तेज होई।

 

चैत मास दसमी खड़ा, जो कहुँ कोरा जाइ।

चौमासे भर बादला, भलीभाँति बरसाइ।।

जो चैत का अँजोर के दशमी पर आसमान में बादल ना होखे त मानल जाए के चाहीं कि एह साल चौदहवाँ महीना में नीमन बरखा होई।

 

जब बरखा चित्रा में होय। सगरी खेती जावै खोय।।

चित्रा नक्षत्र में बरखा बाँहइला पर पूरा फसल नष्ट हो जाला।

 

माघ में बादर लाल घिरै। तब जान्यो साँचो पथरा परै।।

जो माघ महीना में लाल रंग के बादल लउकी त बनउरी (ओला) जरूर गिरी।

 

रोहनी बरसे मृग तपे,  कुछ दिन आर्द्रा जाय।

कहे घाघ सुनु घाघिनी,  स्वान भात नहिं खाय।।

जो रोहिनी नक्षत्र में बरखा होखे, मृगशिरा खूब तपे आ अदरा के कुछ दिन बाद बरखा होखे त उपज एतना नीमन होई कि कुकुरो भात खाके उबिया जाई।

 

सावन केरे प्रथम दिन, उवत न ‍दीखै भान।

चार महीना बरसै पानी, याको है परमान।।

जो सावन का अन्हरिया में परिवा के आसमान बादल से भरल होखे आ सबेरे सूरज के दरसन ना होखे त निश्चय मानीं कि जरूर चार  महीना तक भारी बरखा होई।

 

चढ़ते बरसे आदरा उतरत बरसे हस्त।
बीचे बरसे जो मघा चैन करे गिरहत्थ।।
जो आर्द्रा नक्षत्र शुरू में, हस्त नक्षत्र अंत में आ मघा नक्षत्र बीच में बरसे त गृहस्थ के आनंदे आनंद रही।

 

सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।

परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।

जो पूरा रोहिणी तपे, मूल भी पूरा तपे आ जेठ के परिवा भी तपे तब सातों प्रकार के अन्न पैदा होई।

 

 

शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।

तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।

जो शुक्रवार के बादल शनिवार तक छवले रहे त ऊ बादल बिना बरिसले ना जाई।

 

भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय।

ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय।।

जो भादो अँजोर का छठ के अनुराधा नक्षत्र मिले त ऊबड़ो खाबड़ जमीन में ओह दिन बीया डलला से  बहुत पैदावार होई।

 

सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय।

घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय।।

जो पूस का अमवसा के सोमवार, शुक्रवार भा बृहस्पतिवार पड़े त घर घर बधाई बाजी, केहूँ दुखी ना लउकी।

 

सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय।

महँग नाज अरु स्वल्प जल, बिरला बिलसै कोय।।

जो सावन का अन्हार में दशमी तिथि के रोहिणी होखे तो समझ लेबे के चाहीं कि अनाज महङा होई, बरखा बहुत कम होई, अउर लोग  साइते सुखी होइहें।

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संपर्क :

  • डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल

पिपरा सरकारी स्कूल के निकट, देवनगर,

पोल नं. 28, शाहपुर-पिपरा रोड,

पो. – मनोहरपुर कछुआरा

पटना – 800030

ई मेल : rmishravimal@gmail.com

 

 

 

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