चैता आ चुनाव

गज़ब हाल बा भाई! एक त चइत चहचहाइल बाटे आ मन,मनई,मेहरारू संजोग वियोग के चकरी में चकरघिन्नी भइल बाड़ें, ओही में ई चुनाव के घोषणा, मने धधकत आगि में घीव डला गइल। दूनों ओर जी हजूरी के तड़का, अब उ नीमन लागे भा बाउर। जिये के दूनों के पड़ी, मन से भा बेमन से। जब लोग बाग खेती-किसानी से दूरी बनावे लागल बा, त ओहमें ई राँड रोवने नु कहाई कि अब ढोलक के थाप आ झाल के झंकार सुनात नइखे। खेती-गिरहस्थी से थाकल लोगन खातिर फगुआ आ चइता टानिक…

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चइता गीतन पर एगो दीठी

चइता, चैता भा चैती पुरवी उत्तर प्रदेश, बिहार आ झारखंड में चइत महीना में गावल जाये वाली एगो लोकगीत भा लोक शैली हवे। चइत महीना के हिन्दू पंचांग (कैलेंडर) से हिंदू लोग पहिल महीना मानल गइल ह अउर फागुन के अंतिम महीना। भगवान राम के जनम चइत महीना में भइल रहे। कहल त इहाँ ले जाला कि चइता गावे के चलन त्रेता जुग से चालू हो गइल रहल,काहें से कि चैती भा चैता  में ‘हो रामा’ के  टेक का संगे गावे के चलन बाटे। एह में राम जन्म, राम सीता…

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बिलारी के भागे क सिकहर

का जमाना आ गयो भाया,अजबे खुसुर-फुसुर ससर ससर के कान के भीरी आ रहल बा आ कान बा कि अपना के बचावत फिरत बा। एह घरी के खुसुर-फुसुर सुनला पर ओठ चुपे ना रह पावेलन स। ढेर थोर उकेरही लागेलन स। एह घरी के ई उकेरलका कब गर के फांस बन जाई, एह पर एह घरी कुछो कहल मोसकिल बा। रउवा सभे जानते होखब कि इहवाँ जेकर जेकर कतरनी ढेर चलत रहल ह, सभे एह घरी मौन बरती हो गइल बा। अब काहें, ई बाति हमरा से मति पूछीं, खुदही…

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तीन गो कविता

१ कारगर हथियार कोर्ट – कचहरी कानून थाना – पंचायत कर्मकांड के आडम्बर धर्म आजुओ बनल बा आमजन के तबाही के कारगर हथियार सबसे बिगड़ल रूप में साम्प्रदायिकता साम्प्रदायिक तानाशाह के दरवाजे बइठ आपन चमकत रूप निरख रहल बिया कारगर हथियारन के बल बढ़ल आपन सौंदर्य के। २ छलवा विकास जमीनी स्तर पर कम कागज पर चुनावी दंगल में अधिका लउकत बा बाजारवाद, भूमंडलीकरण उदारीकरण के पेट से उपजल विकास के देन ह दलित, स्त्री, आदिवासी आ पर्यावरण समस्या विकास के गोड़ तऽ कुचलल जा रहल बा गरीब, दलित मजदूर,…

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