ग़ज़ल

आ गइल बा प्रेम के दिन, दिल भइल कचनार अब,

फेर जनि आपन नजरिया, नैन कर तू चार अब।

खेत में सरसों फुलाइल, रंग हरदी के लगल,

लाज से धरती लजाइल, हो गइल बा प्यार अब।

प्रीत-चुनरी ओढ़ के जे, डूब गइली प्यार में,

गीत मस्ती के पवनवा, देत बा उपहार अब।

आम के मोजर सुगंधी, दे गइल चहुँ ओर में,

कूक कोयल के सुनींजा, बाग में गुंजार अब।

राग सगरो ‘गूँज’ गइले, नेह के अनुराग के,

छा गइल देखीं गुलाबी, फाग के झंकार अब।

 

गीता चौबे गूँज

राँची झारखंड

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