भोजपुरी साहित्कारन के कुछ कटगरी

हम ई पहिलहीं स्वीकार कर लेत बानीं कि हमरा कुछ ना बुझाला, एह से हम जवन कहबि ओकर कवनो माने-मतलब मत निकालब स। ई त बस आजु एकदमे कुछ बुझात ना रहुए त कुछ बुझाए खातिर कुछ बूझ कह देत बानीं, बाकिर हमरा निअर आदमी से ई आशा मत करब कि हमरा कबो कुछ बुझाई। भोजपुरी में(अउरियो जगे कम-बेसी इहे होत होई। ओइसे अउरी जगह वाली बात हम अंदाजने कहलीं हँ, आपन अनुभव कुछ खास नइखे।) एह घरी तीन तरह के रचनाकार पावल जा रहल बाड़े– तप्ततन अइँठल:एह कटगरी के…

Read More