कउवा से कबेलवे चलाक

का जमाना आ गयो भाया , पहिले त अंडा चूजा के सीख देत रहे बाकि अब त बापे के सीख देवे लागल बिया । तकनीक के जमाना नु बा , केनियों आड़ा तिरछा देखि के धार फूटि रहल बिया । चाहे ओकरा से गाँव तबाह होखे भा देश । पानी के रेला त रेला ह , ओकरा के केकरो पहिचान नइखे । जब पानी के फुफुकारत धार चल देवेले त ओहमे बड़ बड़ पेड़ , पहाड़ , गाँव – गिराव सभे के अपने लय मे नाधि देले । मनई से लेके जीव – जंत तक तबाह हो जालें , बाकि गिद्धन के मउज हो जाला । महीनन के छुधा तिरपित करे के जोगाड़ हो जाला । इहे दुनिया ह , एक के दुख दोसरा ला सुख हो जाला ।

आज बिहनही  से मन बउवाइल ह , केकरा नीमन मानी आ केकरा के बाउर । सभे गिरोह बना नटई फार रहल बा । जवन बाप अपने बेतवा खाति आपन भविष्य दाँव पर लगा दहलेस , उहे बेतवा बाप के ककहरा पढ़ा रहल बा । जवने काम से बाजार के कमर टूट गइल ओकरा के गेमचेंजर बता रहल बा । सोझवा मनई के लूटे के रोज एगो नाया जोगाड़ जोड़ रहल बा । अबहिन ले लो अच्छा दिन जोहत बाड़े , अब केहु क़हत बा कि अर्थब्यवस्था मे सुधार आ रहल बा । बाकि राउर समाचार पत्र देखीं , जी डी पी गिर रहल बा । चुहानी के समान महँग हो गइल आ लोग कह रहल बा कि जी एस टी खुसिहाली लेके आई । अपने दिन से पुछे पराये दिल के हाल , किसान मरि रहल बाड़े , गरीब आउर गरीब भइल जात बाड़े , भूखे मरे के नउबत आ गइल बा । नेता लो अबो चुग्गा दाल रहल बा ।

असल मे हवाई लो के हाथ मे जमीन से जुड़ल काम जब आ जाला , अइसने कुछ देखे के मिलेला । अरे एक बेरी बजार मे आईं आ देखीं कि लो का क रहल बा , फेर बुझा जाई । 20 बटे 20 के वातानुकूलित कमरा मे बइठ के बकैती मति झारीं । बिकास –विकास सुनि सुनि के कान पाक गइल । विकास त लउकल बाकि नेतन आ उनके अपनन के दुवारे । पूरे क पूरा खानदान तिरपित । एगो जगहा आउर विकास लउकल , बाबा लोगन के दुवरे । ई कुल्हि देखि के तुलसी बाबा के चौपाई मन परि गइल –

कोउ नृप होय हमे का हानी , चेरी छोड़ कब होबे रानी ।

गरीबन ला ई बतिया पहिलहूँ  साँच रहे , अजुवों साँच बा । एकहु गो नीमन बात त देखात , कुल्हि गुड़ गोबर , एकही मे एक सउनात , सड़त – गलत , बहत – बिलात छिछिया रहल बा ।

कबों – कबों त ई लगेला कि चोरन के बस्ती मे खजाना रखाइल, चौकीदार ओही बस्ती के , राम भला करिहें । कवनो नदी मे एगो मंगर आ जाला , त लोग ओमे नहाइल छोड़ देला । इहाँ त मछरी लेखा मंगर बाड़े सन । हर बात ला जज़िया कर लगा लगा के सरकार आपन भलही खजाना भर के खुस होले बाकि 2019 अब ढेर दूर नइखे । अंकड़ के बोल के बिलाए मे ढेर देर ना लागेला । हमरा त बुझात बा –

 जब नाश मनुज पर छाता है , पहले विवेक मर जाता है ।

कहीं इहे त ना साँच होए जा रहल बा । विकास त भइया बिकसित के हो रहल बा । 1 बरीस मे उद्योगपतिन के धन दूना – तीना , 5 बरीस मे नेतन के धन 10 गुना आ जे 10 बरीस डाइबरी क रहल बा , उ आजों डाइबरे बा । कौशल विकास के टरेनिंग मने गोइठा मे घीव सोखावल , बन्हा उद्घाटन के पहिलही बहा गइल , देखीं जा विकास भा सत्यानाश । इहे कुल्हि सोचत रहनी ह कि एही मे लइकई मे सुनल एगो बात मन परि गइल ह ।  जब इया हमनी इस्कुले जाये के बेरा कहें कि ए बचवा बचि के जईहा । त हम बोल देही , ईया से कि हमरा के मालूम ह , रोज रोज एकही बात । तब खिसिया के ईया कहस – देखा न दुलहिन , अब त “कउवा से कबेलवे चलाक” हो गइल बाड़े सन ।

 

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

 

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