गरमी के तिखर किरिनिया
मड़इया मोर झाँझर लागे ॥
दँवकेले पातर छन्हिया,
मड़इया मोर झाँझर लागे ॥
खाँखर पतलो क खर ले , खरकि गइले
सरल रसरिया क बान्हन सरकि गइले
हरका से हिलि जाले थुन्हिया
मड़इया मोर झाँझर लागे ॥
सावन – भदउवाँ क रतिया ओनइ परे
सरवत छन्हिया के संगही नयन झरे
बरे जब नाही चुल्हनिया
मड़इया मोर झाँझर लागे ॥
जेठवा मे जइसे कि अगिया लवरि बरे
लुहवा लहकि मोरा भितरा सुनुगि जरे
अदहन बनि जाला पनिया
मड़इया मोर झाँझर लागे ॥
रोपनी से सोहनी ले कटिया-ओसवनी
नन्हका के बाबू के जोहनी-बोलवनी
अइते त छइते पलनियाँ
मड़इया मोर झाँझर लागे ॥
दँवकेले पातर छन्हिया,
मड़इया मोर झाँझर लागे ॥
- डॉ अशोक द्विवेदी