आपन बात

साहित्य अपना में समाज का संगे सभे के हित समाहित राखेला आ हरमेसा बढ़न्ति का ओर गति बनवले राखे के उपक्रम विद्वान साहित्यकार लोग करत रहेलें। अइसने कुछ साहित्य जगत के मान्यतो ह। बाकि हर बेर ई सही ना होखे। कई बेर एकरा से उलट होत लउकेला। जान-बूझ के भा इरखा बस कवनो नीमन चीजु के अनदेखी कइल, उहो अइसन लोगन द्वारा जेकरा के हद तक मानक मानल जात होखे, ढेर बाउर लागेला। अइसन भइलका मन के गहिराह टीस दे जाला। कई बेर उ टीस मन के उचाट क देवेले। मन के उचाट होखला के मतलब गति के मंद पड़ल मानल जाला। एकर असर हाली ओरात नाही। कतों ना कतों मन के कोने-अँतरे अटकल रहेला। बाकि संगही एगो अउर स्थिति जिनगी के लेके होले। काहें से कि जिनगी के चलती के नाँव कहल गइल बा। जिनगी बा त गति देर सबेर अइबे करी, रहतो बनाई आ ओपर आगु बढ़बो करी। मन टीस के भुलइबो करी आ फेरु उछाह का संगे अपना उधातम में लागियो जाई। पछिला कुछ समय अइसने अझुराइल बातिन के बीचे से होके गुजरल ह। एकरा चलते गति बना के राखे में सफलता ना मिल पवलस। भाषा के नेह मनई के अपना से दूर ना होखे देवेले, एही से फेरु डगर धरे के परयास हो रहल बा।

‘विषकुंभम, पयो मुखम्’ वाली स्थिति मने मीठ बोलवा वाला हाल सभे के बेहाल क देवेला। कुछ नीमन करे के परयास धरासाही हो जाला आ उछाह मरि जाला। एकरा से बेहतर त ई बात होखत कि सोझे केहु पल्ला झार लेत। आस दे के सांस घोंटल ढेर बाउर होला। हो सकेला कि इहे एह समाज के रीत होखे। समाज में होखला के मतलब समाज के जीयल, समाज के संगे जीयल आ ओहमें होखे वाला उंच-नीच से दू-चार होखल एगो सोझ प्रक्रिया ह। एकरा से होके कबों ना कबों  सभे के गुजरे के पड़ेला, त भोजपुरी साहित्य सरिता कइसे बाच जाई।हमनियों के एह प्रक्रिया से गुजरनी सन आ ढेर कुछ समुझे-बूझे के भेंटइबो कइल। समुझ के दायरा बढ़ल आ आगु के रहता अंजोर भइल।

भोजपुरी साहित्य सरिता सम्पादन टीम एह अंक के संगे न्याय त ना क पावले बा बाकि हतास नइखे। उमेद बा कि अगिला अंक अपना पुरनका वैभव का संगे रउवा सभे के सोझा परोसे में हमनी के सफल होखब जा। अइसन कुछ बिसवास हमनी के रउवा सभे के नेह-छोह से भेंटाला। उमेद बा कि रउवा सभे आपन नेह बनवले राखब।

उछाह भरल बिसवास आ शुभकामना के संगे-

  •            जयशंकर प्रसाद द्विवेदी         

संपादक

भोजपुरी साहित्य सरिता

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