तीन गो कविता

कारगर हथियार
कोर्ट – कचहरी
कानून
थाना – पंचायत
कर्मकांड के आडम्बर
धर्म
आजुओ बनल बा
आमजन के
तबाही के
कारगर हथियार
सबसे बिगड़ल रूप में
साम्प्रदायिकता
साम्प्रदायिक तानाशाह के दरवाजे
बइठ आपन चमकत रूप
निरख रहल बिया
कारगर हथियारन के बल बढ़ल
आपन सौंदर्य के।
छलवा
विकास जमीनी स्तर पर कम
कागज पर
चुनावी दंगल में
अधिका लउकत बा
बाजारवाद, भूमंडलीकरण
उदारीकरण के पेट से उपजल विकास
के देन ह
दलित, स्त्री, आदिवासी
आ पर्यावरण समस्या
विकास के गोड़ तऽ
कुचलल जा रहल बा
गरीब, दलित
मजदूर, किसान
आदिवासी आ नारी
गाँव, जंगल आ पहाड़
उधिया रहल बा
विकास के आन्ही में
लोक खातिर विकास
एगो छलवा।
ऊ एगो स्त्री हऽ
आजु के नारी
कहाँ उबरली स आजुले
झूठ मर्यादा आ पितृसत्ता
के चक्रव्यूह से
आजु के नारी
कहाँ दे पवली स आजुले
आपन भावना के
आपन इच्छा के
फरे – फूले खातिर खुला आकाश
आजु के नारी
काहे ढो रहल बाड़ी स आजुले
थोपल पुरुषवादी सोच के
जे ना देखल चाहेला स्त्री के स्वतंत्रता
ना चाहे मेहरारू के
ओकरा इच्छानुसार जिये देवे के
आजु के नारी
काहे पहचानल जात बिया
लैंगिकता के आधार पर
काहे पुरुष नइखे निकल पावत
ओकरा देह से बाहर
कारण कुछ अउर ना
ओकरा देह में योनि बा
आजु के नारी
काहे मौन धइले बिया सब सममझियो के
काहे कठपुतरी बनि नाच रहल बिया
परिवार, समाज आ बाजार बीच
ऊ समझत बिया आपन अस्तित्व
बढ़िया से
कि ऊ एगो स्त्री हऽ।
  • कनक किशोर

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