हंसि हंसि क
बहार उतान भईल,
अगराई के फाग
जब फागुन में नाचल ।
फगुआ के
जब आगुआन भईल,
अबीर-गुलाल
आपना सुघर भाग पे नाचल।
बबुआ-बुचिया के
जब रंग रंगीन भईल ,
फिचकारी के संग
उछल- कुद के नाचल ।
बुढा-जवान के
भेद सभ भुल गईल ,
फागुन फगुआ के
जब मधुर तान पर नाचल।
आपन-आन के
सब ध्यान गईल ,
जब बैर तेज के
सब केहु गले मीली नाचल।
- उमेश कुमार राय
ग्रा0+पो0- जमुआँव ,
जिला- भोजपुर (बिहार )