आइल चइत उतपतिया हो रामा!

चइत के उतपाती महीना मस्ती के आलम लेले आ धमकल बा। कली-फूल के खिलावे के बहाना से बसंत अपना जोबन के गमक फइलावत चलल जा रहल बा। आम के मोजर में टिकोढ़ा लागि गइल बा आ सउंसे अमराई में टप-टप मधुरस टपकि रहल बा। कोइलरि के कुहू-कुहू के कूक माहौल में एगो अनूठा मोहक रस घोरत बा। अइसना मदमस्त महीना में जदी मन के सपनन के सजीला राजकुमार परदेस के रोटी कमाए चलि गइल होखे, त बिरहिन हमजोली के वेदना पराकाष्ठा पर जा पहुंचेले। अंगइठी लेत रस से भरल देह,…

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बिरहिनि के बेजोड़ भावाभिव्यक्ति हवे चैता

चइत महीना चढ़ते चारु ओर तनी चटक रंग लउके लागेला। एह तरे कहल जाव त चइता परेम के पराकाष्ठा के प्रस्तुति हऽ। परेम में मिलन, बिछुड़न, टीस, खीस के प्रस्तुति ह। जिनगी के अनोखा पल के अनोखा भावन के अभिव्यक्ति के प्रस्तुति ह। बिहार आ उत्तर-प्रदेश में चइत महीना में गावे वाला गीतन के चइता, चइती चाहे चइतावर कहल जाला। चइता में मुख्य रूप से चइत माह के वर्णन त रहबे करेला, ई शृंगार रस में वियोग के अधिकता वाला लोकगीत हवे। गायिकी में चइता के ‘दीपचंदी’ चाहे ‘रागताल’ में गावल जाला। कई जने एहके ‘सितारवानी’ चाहें ‘जलद त्रिताल’ में गावेले। भले आधुनिकता के डिजिटल लाइट में चइता के चमक मद्धिम हो गइल बा, बाकिर आजुओ भोजपुर, औरंगाबाद, बक्सर, रोहतास, गया, छपरा, सिवान, देवरिया, कुशीनगर, गोरखपुर…

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जिनिगी के छंद में आनंद भरि आइल रामा,चइत महीनवा

अइसे साल के बारहो महीना के आपन महत्व होला बाकिर साल के अंतिम महीना फागुन आ पहिला महीना चइत के रंग – राग आ महातम अनोखा बा।इहे देखि कहल जाला कि साल में से ई दूगो महीना फागुन आ चइत के निकाल देल जाय त साल में कुछ बचबे ना करी। फागुन आ चइत ना रहित त लोक जीवन में रस रहबे ना करित। फागुन के होली, फगुआ आ चौताल आ चइत के चइता,चैती आ घाटों के गूंज से भक्ति आ भौतिक दूनों रस के संचार लोक में होला। रस…

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मसान- राग

आगे बाबूजी लगनीं पीछे हम छोटका भाई सबसे आगे जोर-जोर से घड़ीघंट बजावत चिल्लात चलत रहुए- “राम नाम सत है ।” राधामोहन के हाथ में छोटकी टाँगी रहुए कहत रहुअन- “चाचाजी जी एक सव एकवाँ नम्मर पर बानीं सएकड़ा त फागुये राय पर लाग गइल रहे हमार ।” बड़ गजब मनई हउवन राधामोहन ठाकुरो! गाँव के कवनों जाति छोट-बड़ सबका में मसाने दउड़ जालें बोखारो रहेला तबो कवनों बहाना ना बनावस केहू किहाँ मउवत सुनिहें झट दउड़ जइहें । परदूमन भाई बोललें- “अच्छा चलीं नरब चाचा राधामोहन जी बाड़ें त…

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