जहवाँ माई अँगने सुगना दुलारत सुघर भूमि भारत। तीन ओरियाँ सिंधु, एक ओर ह हिमालय कन-कन में राम, गाँव-गाँव में शिवालय उहवें के ऊंच भाल दुनियाँ निहारत सुघर भूमि भारत। मसजिद अजान, गुरुद्वारे गुरु बानी चर्च में बा प्रार्थना, बनता कहानी दुसुमन के दीठी पठावेला गारत सुघर भूमि भारत। भोरहीं से पवना के जहवाँ मलय राग उहवें भेंटाला कामिनी के बिरह आग सुघरई के कामदेव उहें उघारत सुघर भूमि भारत। गंगा जमुना नर्मदा अपने रवानी उर्वर भूमि खातिर खूब देलीं पानी अन्न उपजाई धरा सभे के…
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अगिन बरिसे
सावनों में दंवके सिवनवाँ अँगनवाँ मोरे, अगिन बरिसे। नीलहा अकसवा के बदरा रिगावे दिनवाँ में देहियाँ के लवरि जरावे सुसकेला खेतवा किसनवाँ अँगनवां ——– बिंयड़ा में धनवा क बियओ झुराइल पहिले जे रोपल,रोपलो मरुआइल बिरथा बा असवों रोपनवाँ अँगनवां————- कइसे कहीं अब हुंड़रा के धवरल रसते में गोजर बिच्छी के पँवरल फुँफकारे किरवा क फनवाँ अँगनवां ——– जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
Read Moreखेतिहर अजुवो जस के तस बा —-
‘खेती बाढ़S अपने करमे’, ‘आगे खेती आगे-आगे, पाछे खेती भागे जोगे’ जइसन कतने कहाउतन से भोजपुरिया लोक गह गह बाटे। बाक़िर कतों न कतों ई कुल्हि कहाउत कई गो बातिन के खुलासा करे क समरथ रखले बाड़ी स। पहिल बात ई कि भोजपुरिया समाज के अर्थव्यवस्था के रीढ़ खेती-किसानी आ पशुपालने रहल बा। कवनो दौर के भोजपुरी लोक साहित्य होखे भा भोजपुरी भाषा साहित्य संत आ कवि लोग खेती-बारी पर जनता के जगावे आ उनुका तकलीफ बतावे में कबों कोताही नइखे कइले। बाबा कबीर के समय से भोजपुरी कविताई में…
Read Moreकजरी
अबके बाँव न जाई सावन साँवरिया बदरिया भले कतिनो बरिसे। चाहे झिर झिर परिहें बूनी भीजे डहुंगी तर के चूनी सजना जाई उहवें देखि भरि नजरिया। बदरिया भले कतिनो बरिसे। चाहे कउंचे साँवर गोरी इचिको तके न हमरे ओरी अइबै ओढ़ावे बदै धानी चुनरिया। बदरिया भले कतिनो बरिसे। भउजी टुप टुप ताना मरिहें भलहीं कोसिस निफल करिहें अबके मिली उनुके सुनइबै कजरिया। बदरिया भले कतिनो बरिसे। भले कंठ रही अनबोलले रयनि बैरिन पट के खोलले अबके साजन गोरी भेटी अंकवरिया । बदरिया भले कतिनो बरिसे। …
Read Moreबात बनउवल
दुनियाँ में हम सबसे अउवल कविता हउवे बात बनउवल। गढ़ीं भले कवनों परिभाषा मंच ओर तिकवत भरि आशा गोल गिरोह भइया दद्दा साँझ खानि के पूरे अध्धा। कबों कबों त मूड़ फोरउवल। कविता हउवे….. कवि के कविता, कविता के कवि उनुके खाति कबों उपमा रवि अब त ज़ोर जोगाड़ू बाटै पग पूजी के चानी काटै। कबों कबों के गाल बजउवल। कविता हउवे….. कुछ के चक्कर भारी चक्कर ज्ञान कला के लूटत जमकर बोअल जोतल खेती अनके बेगर लाज खड़ा बा तनके कबों कबों के टांग खिंचउवल। कविता…
Read Moreएगो पौराणिक उपन्यास ‘तारक’
सद्य प्रकाशित आदरणीय अग्रज ‘मार्कन्डेय शारदेय’ जी के पौराणिक उपन्यास सर्वभाषा प्रकाशन से भोजपुरी साहित्य जगत के सोझा आइल ह। ई कृति शारदेय जी के जीवंत लेखनी से प्रत्याभूत त बड़ले बा, संगही उहाँ के एह कृति के भोजपुरी के पुरोधा पाण्डेय कपिल जी के समर्पित कइले बानी। जब कवनों पौराणिक कथा कहानी के उपन्यास विधा में पिरोवल जाला, त उ सोभाविक विस्तार लेत कबों यथार्थ के धरातल आ कबों काल्पनिक धरातल पर समभाव से आगु बढ़त देखाला। एह घरी के हिन्दू समाज के सभेले कमजोर नस मने ‘अपने…
Read Moreपूरबी
पियवा के सुधिया सतावे भरि रतिया साँवर गोरिया रे। तलफत सेजरिया पर जाय। सेही सेजरिया सपनवाँ ना भावे साँवर गोरिया रे। सोचि सोचि बतिया लोराय। कवने कारन पिया छोड़लें बेगनवाँ साँवर गोरिया रे। क़िसमत के कोसी पछताय। जेपी के कहना बा ठाना ठनगनवाँ साँवर गोरिया रे। आपन पियवा लेहु न बोलाय। जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
Read Moreगुलबिया हो
ना हमरा से नेह छोह ना रउरा से प्यार बा। फेरु गुलबिया हो, केकरा लग्गे सरकार बा। बुद्धू बकसवा में बइठ टर्राने केकरा खातिर पूछेलें फलाने केकरा साथ संगत के उनुका दरकार बा। गुलबिया हो…… केकरे ओठवा के नमी झुराइल बाति के सुनगुन से के बउराइल केहो छान-पगहा लिहले करत गोहार बा । गुलबिया हो…… अचके में आजु मार पड़ल अइसे करके भितरघउवा सुसुकीं कइसे अइसन दरद जवन कहलो बेकार बा। गुलबिया हो…… जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
Read Moreईयाद आवे गउवाँ
शहर सपना अस, ईयाद आवे गउवाँ खेत, खरिहान अउर पीपर के छउवाँ ईयाद आवे गउवाँ॥ संगही ईयाद आवे, ईया के बतिया लइकन संगे खेललकी होला पतिया अचके मचल जाला जाये के पउवाँ। ईयाद आवे गउवाँ॥ शहर सपना अस, ईयाद आवे गउवाँ॥ संगही ईयाद आवे होरहा भुजलका खेतन के डांड़े भागत बेर गिरलका संझा खानि ओरहन धरि धरि नउवाँ। ईयाद आवे गउवाँ॥ शहर सपना अस, ईयाद आवे गउवाँ॥ संगही ईयाद आवे ऊख के तोड़लका पकड़इला पर उखिए उखिए पिटलका ठेहुना क दरद सरकि के गिरल खउवाँ। ईयाद आवे…
Read Moreहम नगर निगम बोलतानी
रात क मुरगा दिनही दारू लड़ी चुनाव अब मेहरारू काम धाम करिहें ना कल्लू मुँह का देखत हउवा मल्लू। जनता खातिर गंदा पानी हम नगर निगम बोलतानी। साफ सफाई हवा हवाई चिक्कन होखब चाप मलाई के के खाई, का का खाई इहो बतिया हम बतलाईं। जनता के भरमाई घानी हम नगर निगम बोलतानी। सड़क चलीं झुलुआ झूलीं दरद मानी भीतरें घूलीं गली मोहल्ला अंधा कूप दिन में खूबै सेंकी धूप जनता के सुनाईं कहानी हम नगर निगम बोलतानी। अब वादा पर वादा बाटै कुछ दिन जनता के…
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