सजि गइल सगरो दोकान

सजि गइल सगरो दोकान, चुनाव नगिचाइल बा। लउकsता निमने समान, चुनाव नगिचाइल बा।   केहू बेचे सस्ता आ केहू देता घालू, केहू कहे दोसरा के सिरमिट में बालू, केहू के बिकाता खनदान, चुनाव नगिचाइल बा।   केहू बेचे लसगर, केहू बेचे मयगर, केहू बेचे तरिगर, केहू बेचे जदुगर, केहू बेचे धरम-इमान, चुनाव नगिचाइल बा।   केहू पासे धनबल, केहू पासे जनबल, केहू डेरवावे, केहू बोलsताटे अलबल, केहू बाटे बकता सेयान, चुनाव नगिचाइल बा।   दलदल छोट-बड़ तोड़-जोड़ मेल बा, नीति ना नीयते बा, बड़-बड़ खेल बा, अपने से अपने महान,…

Read More

करिखा पोतइलें

कुरसी के महूरत न भेंटइलें हो रामा, करिखा पोतइलें।   तब नाही बुझनी माई मोर बतिया कुरसी पठवनी दोसरा के सेतिहा बनलो भाग आगी जरी गइलें हो रामा, करिखा पोतइलें।   बोलिला दूसर बोला जाला दूसर सभही कहेला अब घूमी ना मूसर भदरा मोरे भागे घहरइलें हो रामा, करिखा पोतइलें।   सभका हुलासे दुअरो अगराइल हमरा एकहू न  लगन  भेंटाइल लोकतंतर के डंका पिटइलें हो रामा, करिखा पोतइलें।     जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

Read More

फागुन फाग मचावै

ओढ़ि बसंती चुनरिया गुजरिया फागुन फाग मचावै। गम गम गमके नगरिया गुजरिया फागुन फाग मचावै। ओढ़ि —–   फिकिर कहाँ फागुनी रंग के बनल बनावल अंग अंग के देखत झूमत डगरिया गुजरिया फागुन फाग मचावै। ओढ़ि —–   चढ़ल खुमार इहाँ अनंग के दरस परस आ साथ संग के मातल बहलीं बयरिया गुजरिया फागुन फाग मचावै। ओढ़ि —–   सहज सुनावत सभ ढंग के होरी में कब भइल तंग के बहके लागल नजरिया गुजरिया फागुन फाग मचावै। ओढ़ि —–   जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

Read More

मतदान त अधिकार हउवे

भइया जगला के हवे दरकार मतदान त अधिकार हउवै॥2॥   अफवाहन के दूर हटा के आपन बुद्दि विवेक जगा के तहरा वोटS बनाई सरकार , मतदान त अधिकार हउवै॥ 2॥  भइया…   छोड़ के सगरे काम चलS के लोकतंत्र के धाम चलS के जइते होखी परब गुलजार, मतदान त अधिकार हउवै॥ 2॥ भइया…   हित-मीत सबसे बतिया के आस-पड़ोस सभै गोलिया के देखिहा वोटवा न हो बैपार, मतदान त अधिकार हउवै॥ 2॥ भइया…   जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

Read More

राम मेरे

अब गूँज रहल तेरो नाम, राम मेरे गलियन में। राम मेरे गलियन में, हो राम मेरे गलियन में।। अब गूँज रहल तेरो नाम, राम मेरे गलियन में।।   बरीस पाँच सौ बीतल बहरा उहवाँ रहल दुसमन के पहरा अब नइखे कुछो गुमनाम, राम मेरे गलियन में। अब गूँज रहल तेरो नाम, राम मेरे गलियन में।।   आपन घर अपनन के रगरा बेगर बात में फानल झगरा भइल ओकरो काम-तमाम, राम मेरे गलियन में। अब गूँज रहल तेरो नाम, राम मेरे गलियन में।।   छंटल तम भइल उजियारा अजोधिया जी अब…

Read More

गीत

सजि रहे तोरण द्वार, राम मोरे आई रहे आई रहे , मुसकाई रहे, कि सजि रहे तोरण द्वार, राम मोरे आई रहे।   कटल तम के अन्हियारी रतिया सभके हिय उनही के बतिया। दुअरे लागल कतार, राम मोरे आई रहे। कि सजि रहे तोरण द्वार, राम मोरे आई रहे।   ई बनवास कई सदियन के बा इतिहास नेकी बदियन के। अब गावहुँ मंगलचार राम मोरे आई रहे। कि सजि रहे तोरण द्वार, राम मोरे आई रहे।   दियरी जराई साजो दुअरिया मह मह महकत सगरी कियरिया। चहुंदिसि जय -जयकार, राम…

Read More

गीत

अबकी नवरतिया मइया करतु एगो जुगतिया हो मइया मोरी करतु एगो जुगतिया कि छोड़ि हो देतु ना, अपने बब्बर सेरवा के मइया, छोड़ि हो देतु ना।   छोड़तु त भले करतु आपन बब्बर सेरवा हो मइया मोरी आपन बब्बर सेरवा बाक़िर छोड़तु ओकरा ना, जयचंदवन के पिछवा मइया छोड़तु ओकरा ना। गद्दरवन के पिछवा मइया छोड़तु ओकरा ना।   छोड़तु त भले करतु आपन बब्बर सेरवा हो मइया मोरी आपन बब्बर सेरवा बाक़िर छोड़तु ओकरा ना, मंहगइया के पिछवा मइया छोड़तु ओकरा ना। बेरोजगरिया के पिछवा मइया छोड़तु ओकरा ना।…

Read More

सुघर भूमि भारत

जहवाँ माई अँगने सुगना दुलारत सुघर भूमि भारत।   तीन ओरियाँ सिंधु, एक ओर ह हिमालय कन-कन में राम, गाँव-गाँव में शिवालय उहवें के ऊंच भाल दुनियाँ निहारत सुघर भूमि भारत।   मसजिद अजान, गुरुद्वारे गुरु बानी चर्च में बा प्रार्थना, बनता कहानी दुसुमन के दीठी पठावेला गारत सुघर भूमि भारत।   भोरहीं से पवना के जहवाँ मलय राग उहवें भेंटाला कामिनी के बिरह आग सुघरई के कामदेव उहें उघारत सुघर भूमि भारत।   गंगा जमुना नर्मदा अपने रवानी उर्वर भूमि खातिर खूब देलीं पानी अन्न उपजाई धरा सभे के…

Read More

अगिन बरिसे

सावनों में दंवके सिवनवाँ अँगनवाँ मोरे, अगिन बरिसे। नीलहा अकसवा के बदरा रिगावे दिनवाँ में देहियाँ के लवरि जरावे सुसकेला खेतवा किसनवाँ अँगनवां ——– बिंयड़ा में धनवा क बियओ झुराइल पहिले जे रोपल,रोपलो मरुआइल बिरथा बा असवों रोपनवाँ अँगनवां————- कइसे कहीं अब हुंड़रा के धवरल रसते में गोजर बिच्छी के पँवरल फुँफकारे किरवा क फनवाँ अँगनवां ——–   जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

Read More

गीत

झऊँसत बा देंहि सगरो झऊँसत बा मनवाँ करीं त का करीं। जरे धरती असमनवाँ सजनवा का करीं ।। गुम सुम भइल नाहीं बहेला पवनवाँ। छितरी प छितरी छूटे उग बुग मनवाँ।। बेनिया डोलावत चुनुकल हाथे के कङनवाँ सजनवा का करीं ।। दिनवाँ कटेला कइसो कटे नाहीं रतिया। अन्हारे धुन्हारे होला बहुते ससतिया।। छतवा तवेला अउसे घरवा अङनवाँ सजनवा का करीं।। धान के बेहन सूखल, खेत ना जोताइल। होला धूरिबावग लोग बाटे अगुताइल।। परल छितराह बहुते मिलें नाहीं जनवाँ सजनवा का करीं।। माया शर्मा, पंचदेवरी, गोपालगंज (बिहार)

Read More