जिनिगी के छंद में आनंद भरि आइल रामा,चइत महीनवा

अइसे साल के बारहो महीना के आपन महत्व होला बाकिर साल के अंतिम महीना फागुन आ पहिला महीना चइत के रंग – राग आ महातम अनोखा बा।इहे देखि कहल जाला कि साल में से ई दूगो महीना फागुन आ चइत के निकाल देल जाय त साल में कुछ बचबे ना करी। फागुन आ चइत ना रहित त लोक जीवन में रस रहबे ना करित। फागुन के होली, फगुआ आ चौताल आ चइत के चइता,चैती आ घाटों के गूंज से भक्ति आ भौतिक दूनों रस के संचार लोक में होला।

रस की अनुभूति के लोक जीवन में महता पर साहित्य दर्पण ३.२.३ में उद्धरित तथ्य बिचार जोग बा।

सत्त्वोद्रेकादखंड-स्वप्रकाशानंद-चिन्मयः

वेद्यान्तरस्पर्शशून्यो ब्रह्मास्वादसहोदरः । लोकोत्तरचमत्कारप्राणः कैश्चित्प्रमातृभिः स्वाकारवदभिन्नत्वे नायमास्वाद्यते रसः। (साहित्यदर्पण ३.२.३)

**’ कहे के माने रस के आविर्भाव सत्त्व गुण के उत्पन होखे के स्थिति में होला। सांसारिक राग-द्वेष से मुक्त चित्त की विशुद्धता, निर्बन्धता के स्थिति होला। ई आस्वाद इन्द्रिय उत्तेजना से भिन्न परिष्कृत-चित्त   ग्रहण करेला। रजोगुण आ तमोगुण के संस्पर्शों होला त रसानुभूति ना होला, काहे कि रस हृदय के मुक्तावस्था ह। दूसर बात रस आत्मतत्त्व के आस्वाद ह। तीसर बात रस पूर्ण आ अखण्ड ह। रस तन्मयी-भाव के स्थिति ह। रस स्वप्रकाशानन्द ह, चिन्मय ह, आनन्दमयी-चेतना ह। विषयानन्द से विलक्षण ह। अनिर्वचनीय आ अलौकिक ह। अलौकिक एह अर्थ में कि ऊ नित्य आ शाश्वत ह ‘।

रस ऊ आनंद के स्रोत है लोक जीवन में कि रस ना रही त मुक्ति ना मिली। मुक्ति खातिर भोजपुरिया लोक भक्ति आ कर्म के पथ जानेला। ज्ञान के बात ना बुझाय जल्दी से ओकरा। पेट भरल रहेला तब जाके कवनो चीज में रस आवेला। पेट भरे खातिर कर्म कइल जरूरी होला। भोजपुरिया समाज कर्म के महातम जानेला आ कर्म के पूजा समझेला। शिव आ राम एह समाज के इष्ट देव ह लोग।साल के अंत में अगजा के साथे दुख दरिदर के जारि अमीर – गरीब सभे फगुआ खेलि आपन खुशी के इजहार करत आधे राति खा नया बरिस के स्वागत करत चइता उठा सब इष्ट देव आ देवी लोग के गोहरावत आपन अनुनय – विनय सुना देला। अइसन लोक संस्कृति के उदेस लोक जीवन में रसे घोरल नू ह। भोजपुरिया समाज माटी के लाल ह आ चइत में रबी फसल खरिहाने आ जाला जे किसानी जीवन के कर्म फल ह। आपन कर्म फल के देखि केकरो मन में खुशी होला आ लोक में खुशी के इजहार नाचि आ गाइये के कइल जाला।                ** ‘जइसे स्वरलहरी  में राग ह ओसहीं नृत्य देहराग ह। अंग-प्रत्यंग आनन्द के लहर भर जाला। नृत्य आनन्द के देहगत छलकन ह ।   प्रेम के अतिशय राग। नृत्य आनन्द ह , ओकरा कवनो व्याख्या के जरूरत नइखे। सामान्य नर-नारी जीवन के अलभ्यलाभ  नृत्य में पा जाले ‘। चइत के झकोर संगे हवा, पानी, प्रकृति नाच उठले त बताईं मनई कइसे रोके अपना के नाचे – गावे से। चइत उम्मीद के महीना ह लोक में। अगहन के करार ना पूरा होखेला त चइते के आसरा रहेला किसान आ किसानीन दूनों के,  किसान के माथे करजा के त किसानीन के आपन झुलनी – लुगा – गहना के। फागुन में रंग बरसला त चूनर वाली भींजेली बाकिर चइत में रस के फुहार बरिसेला,आम के मंजर महकेला आ महुआ से मदन रस टपकेला तो मादकता अइसन छा जाला कि मय नर – नारी नाचे – गावे लागेला। आनंद छलकि बोलेला कि-

 

रस रसे रसे बरिसे चइतवा में

आम  मंजर  रस, महुआ  मदन  रस

हउवो में एगो रस,पनियो में एगो रस

राम  रस, देवी  रस, भक्ति भरल रस

नाचे  मोर  मनवा  चइतवा में।

 

मइया झुलेली झुलनवा नीमिया गंछिया ना

 

भोजपुरिया समाज में नवमी के पुजाई के बड़ा महातम बा। अइसे साल में चार गो नवरात्र बाकिर हमनी किहां चैत्र नवरात्र के पुजाई बड़ी धूमधाम से मनावल जाला । लोक मान्यता बा कि नवमी के माई अपना भक्तन के घरे जाली।चइत नवमी से भगवान रामो के खास संबंध बा।चइत शुक्ल पख के नवमी के भगवान राम जन्म लेले रहन।तबे से ई  पर्व रामनवमी के नाम से जानल जाला ।माने माई आ भगवान राम के पूजा चइते में होला।राम भक्त हनुमानो के महबीरी झंडा ओहि नवमी के दिन आँगन में बदलल जाला।

भगवान राम  के जन्म चइत में भइल रहे त एह से कहल जाला कि चइता गायन के शुरआत त्रेतायुग में भइल रहे आ चइता में ‘ हो रामा ‘ भा ‘ ए रामा ‘ के टेक लगा के गावल जाला।राम जन्म, राम सीता के होली आ उन्हिन लोगिन के बिआह से संबन्धित चइता खूब गावल जाला। अइसे चइता के विषय- वस्तु काफी व्यापक बा। चइता में भक्ति, सिंगार, प्रकृति, गृहस्थ जीवन के हर रंग देखे के मिलेला आ ई उत्तरप्रदेश आ बिहार के प्रचलित लोक गायन ह।

राम जन्म से संबंधित एगो चइता –

जाग गइले कौशल्या के भाग हो रामा ।
अवध नगरिया।।
माता कौशल्या लेत बलइया
धन राजा दशरथ के भाग हो रामा।
अवध नगरिया ।।
घर-घर बाजत लला के बधइया।
शोभा वरन ना जाए हो रामा
चैत राम नवमिया।।

राम – सिया बिआह संबंधित एगो चइता –

विराजत राम सिय साथे हो रामा
अवध नगरिया।
माता कौशल्या  तिलक लगावे
सुमित्रा के हाथ सोहे पनवा हो रामा
अवध नगरिया ।।
चलऽ सखी चलऽ दरसन करि आवे
मिले आनंद अपार हो रामा
राजा दशरथ दुअरिया।।

 

शक्तिरूपा देवी माई संबंधित चइता –

रामऽ बाजेला बाजनवाँ, दू गोला मैदनवां ए रामा।

सिंह चढ़ी, माई आके देदऽ दरसनवां ए रामा।।

माई आके!

बनारस के संगीत घराना चइता/ चैती के एगो उपशास्त्रीय गायन के रूप में विकसित कर के ओकरा के नया रूप देले बा। उपशास्त्रीय गायन के ठुमरी आ चैती भावाभिव्यक्ति के मामला में काफी समानता पावल जाला।

 

पिया पिया रटतऽ पियर भइले देहिया हो रामा

सिंगार के भावना मनुष्य में स्वाभाविक रूप से  पावल जाला एही से सिंगार गायन के चलन रहल बा समाज में। बसंत में काम चरमोत्कर्ष पर रहेला। प्रकृति खुद दुल्हन जस सज जाले आ ओह प पुरवइया बयार के मादकता आगि में घीव के काम करेला।चइत में वियोग ना सहन होखे, प्रेम में मदमस्त मन पिया के इयाद में अइसन डूबल रहेला कि प्रिय भा प्रियतमा के वियोग में देह के पियरी धर लेला तब नू चइत के उत्पाती महीना के संज्ञा देल गइल बा।

एक सिंगारिक चइता देखीं –

एहि ठइयां नथिया हेरा गइल रामा कहवाँ हम ढूंढ़ी।
अंगना में ढूंढनी अटरियांं पे ढूंढनी 
ढूंढत-ढूंढत बउराय गइलीं रामा कहवाँ हम ढूंढी।
तिरछी नजरिया से संइया जी से पुछनी 
सेजिया पे नथिया हम पाइ गइली रामा, अब नाही ढूंढूंं।


एगो दूसर सिंगारिक चइता –

झुलनी में लागल नजरिया हो रामा 
अब ना पहिरबऽ ।
झुलनी पहिर हम गइनी बज़रिआ
लोगवा नजरिआ लगावे हो रामा

ब ना पहिरबऽ।।

 

डॉ सुनील कुमार पाठक कहले कि ‘ लोकगीतन के जेतना ले विभेद बा ओ में चैता ले जादा मधुरता, सरसता, कोमलता आ भावप्रणवता कवनो दोसर शैली में ना मिली ‘। चइत के गंध परिवेश से आवला। हमरा त स्मृतियन में बसल बा। स्मृतियन में गूंजे लागेला चइता के बोल। चइत मास बोले ले कोयलिया हो रामा. पिया के अंगनवा। चइत के ई उल्लास गूंजत रहेला भीतरे।  चइता, चैती और घाटों  के गायन चहुंओर हवा में घुल-मिल के गूंजेला चइत में। चइत मासे, चिद् – चेतना में गति आइल हो रामा, चइत मासे- चइता के बोल भक्ति में डूबल लोक मानस के हाल बतावेला।चइत में भक्ति आ सिंगार में डूबल लोक के देखि, चइत के भक्ति आ सिंगार के समरसता के बहत बयार के देखि कहल जा सकेला कि रस आ आनंद में डूबल मनई के मन के अध्यात्मिक आ भौतिक उड़ान के कवनो सीमा में बान्हल ना जा सके चइत मास में। मेहर के आंचर के छोर, आँखिन के लोर आ चइत के झकोर देखि पिया के देर – सबेर जागिये जइहें, चलीं जा हमनी के राम लल्ला आ देवी माई के गोहराई के मनाईं जा।

कनक किशोर

चलभाष -9102246536

प्रसंग-**श्री राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी के आलेख से

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