खेतिहर अजुवो जस के तस बा —-

‘खेती बाढ़S अपने करमे’, ‘आगे खेती आगे-आगे, पाछे खेती भागे जोगे’ जइसन कतने कहाउतन से भोजपुरिया लोक गह गह बाटे। बाक़िर कतों न कतों ई कुल्हि कहाउत कई गो बातिन के खुलासा करे क समरथ रखले बाड़ी स। पहिल बात ई कि भोजपुरिया समाज के अर्थव्यवस्था के रीढ़ खेती-किसानी आ पशुपालने रहल बा। कवनो दौर के भोजपुरी लोक साहित्य होखे भा भोजपुरी भाषा साहित्य संत आ कवि लोग खेती-बारी पर जनता के जगावे आ उनुका तकलीफ बतावे में कबों कोताही नइखे कइले। बाबा कबीर के समय से भोजपुरी कविताई में खेती किसानी के बात जवन शुरू भइल, उ स्वतन्त्रता के पहिलहूँ होत रहल बा, स्वतन्त्रता के बादो हो रहल बा। अउर त अउर एहु घरी ठसक का संगे हो रहल बा। एह देश के सभेले निरीह जीव किसाने नु ह,ओही के जिआवत, मुआवत आ बेंचत पहिलो के सरकार रहल आ एहू घरी के सरकार बा। जवना का चलते खेती-किसानी से एगो बहुत बड़ जनसंख्या अलग होके मजूरी कइल सवीकार क लेहलस भा अउर कवनो दोसर पेसा अख़्तियार क लेवे में आपन भलाई मान लेहलस। ई गलतो नइखे। खेती-किसानी सामूहिक श्रम के सभेले लमहर उदाहरण हवे। गाँव-गिराव में खेतिहर मजूर मिलते नइखे आ जवन लोग हइयो बा, कइल नइखे चाहत। कारण सोझा बा-मुफ़तखोरी।खेती-किसानी आजु अपना संगे चुनौतियन के अंबार बटोर चुकल बा। आजु के नवहा लोगन के खेती किसानी में कवनो संभावनो नइखे देखात। अजुवो खेती सुखार आ दहार के भेंट चढ़ रहल बा। पशु पालन से लगाव कम भइला के कारण रासायनिक खाद आ कीटनासक दवाइयन के बोलबाला हो चुकल बा। जमीन के उर्वरा लगातार घट रहल बा। किसानन के उपज के उचित मूल्यो नइखे मिल पावत। किसान दिनो-दिन अउर गरीब भइल जा रहल बा।अजुवो सरकार किसान के बाति सुने के तइयार नइखे। एही से एह देस में किसानन के आत्महत्या के खबर आम बात बन चुकल बाटे।

गाँवन से नवहा सहर का ओर पलायन कर चुकल बा। सहर में कामो बा आ पइसो मिल रहल बा। साक्षरता बढ़ला का चलते नौकरी के पाछे युवा भाग रहल बा। खेती में सबकुछ कइला का बादो ओकर मूल्य के निर्धारन सरकार के लगे बा। जबकि कवनो अउर धंधा में अइसन नइखे।एही का चलते किसान आंदोलन आपन सकल अख़्तियार कइलस। किसान सड़क पर आइल, तमाम कष्ट उठवलस आ सरकार किसानन पर मुकदमो  लाद देलस। एम एस पी के बाति पर अजुवो सरकार गोलमोल जबाब दे रहल बा।खेती में ख़रच बहुत बढ़ चुकल बा, उहें प्राप्ति ढाक के तीन गो पतई।

भोजपुरी साहित्य सरिता के खेती किसानी विशेषांक बहुत कुछ समेटे क परयास कइले बा। खेती-किसानी अइसन बिसे बा जवना के एकाध अंक में समेटल मोसकिल बा। बाकि एकरा के कुछ त समेटे क परयास मानल जा सकेला। पाठक लोगन के लगे कुछ त समृद्ध सामग्री चहुंपी, ई हमार बिसवास बा। हमरा एह बिसवास के रउरा सभे के नेह छोह जरूर भेंटाई। एही कामना के संगे, एगो साँच उकेरत  —–!!

कब ले रोई, कहाँ ले गाई

कब ओकर किस्मत फरिआई

जब ले ओकर पेट जरत हौ

अन्नदाता का कहल सोहाई ?

कब ले ओकर मास बेंच के

ओही के मुअवावल जाई

हेरत बानी एकर उत्तर

झूठिया आस धरावल जाई

जागीं जागीं ए सरकार

एह दुख पर रउरे बस बा॥ खेतिहर—

 

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

संपादक

भोजपुरी साहित्य सरिता

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