कजरी

अबके बाँव न जाई

सावन साँवरिया

बदरिया भले कतिनो बरिसे।

 

चाहे झिर झिर परिहें बूनी

भीजे डहुंगी तर के चूनी

सजना जाई उहवें

देखि भरि नजरिया।

बदरिया भले कतिनो बरिसे।

 

चाहे कउंचे साँवर गोरी

इचिको तके न हमरे ओरी

अइबै ओढ़ावे बदै

धानी चुनरिया।

बदरिया भले कतिनो बरिसे।

 

भउजी टुप टुप ताना मरिहें

भलहीं कोसिस निफल करिहें

अबके मिली उनुके

सुनइबै कजरिया।

बदरिया भले कतिनो बरिसे।

 

भले कंठ रही अनबोलले

रयनि बैरिन पट के खोलले

अबके साजन गोरी

भेटी अंकवरिया ।

बदरिया भले कतिनो बरिसे।

 

अबके बाँव न जाई

सावन साँवरिया

बदरिया भले कतिनो बरिसे।

 

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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