बंगड़ गुरु के पड़ोस में एक जाना क बियाह रहल। लाउडस्पीकर पुरजोर लाउड रहल। सबेरहीं से एक्के गनवा कई बेर बजावल जात रहल, ’लड़की ब्यूटीफूल कर गयी चुल्ल…।’ सुनत -सुनत कपार दुखा गईल त बंगड़ खुनुस से फफात- उधियात पड़ोसी के घर में धावा बोललन।
’केकर काल आ गयल ह कि हेतना जोर -जोर से लउडस्पीकर बजावत ह …आंय ?’ क्रोधन बंगड़ काँपत रहलन।
’’सादी-बियाह क घर ह त गाना -बजाना ना होई का ?…तोहरे भाग में त इकुल सुख देखे के लिखले ना ह। दुआरे तिलकहरू चढ़बे ना करीहन त का करबा, एहितरे न दोसरे के कार-परोजन में लुत्ती लगयिबा …देखा ,बंगड़ ! कल से चल जा इँहा से नाही त ठीक ना होई।’’ जवने लइकवा क बियाह रहल ओकर बड़की माई क्रोधन कटकटात बंगड़ क आकी-बाकी पूरा करे लगलीं।
’’अरे बड़की माई तू त बेमतलबे खुनुसाये लगेलू। हम का कहत हईं कि गाना- बजाना नत होखे।हम त बस ई कहलीं ह कि हेतना जोर से एक्के गनवा बजावे क का मतलब ह …आंय ?।’’
’अरे जब कुल लइका -लइकी इहे कुल गनवा पसन करीहन त केहू का करी।केहू क बस बा आजकल के लइका -लइकी के ओप्पर ?’ बड़की माई कुछ नरम पडलीं।
’उहे बतिया हमहूँ करत रहलीं ह बड़की माई..आजकाल क लइका एतना चुल्ली हो गईल हउवन कि का बतावल जाय..गनवो ससुर अइसने बनत ह आजकाल,बतावा भला इहो कवनो गाना हकृ।’ बंगड़ अबहीं बड़की माई के समझावे -बुझावे में लगल रहलन कि दूसर गाना बजे लगल- ’’कर दे मुश्किल जीना, इश्क कमीनाकृ। बड़की माई के समने ई गाना सुनत बंगड़ अइसे लजाये लगलन जइसे ’’इश्क कमीना’’ गावत अपनहीं पकड़ा गयल होखन। अबहीं बड़की माई बंगड़ के लाजन मूड़ी गोतले क मतलब बूझे क कोसिस करे में लगल रहलीं कि फिरो गाना बजल..’’ हमका पीनी है ,पीनी है,हमका पीनी है।’’ गाना सुनके बंगड़ बड़की माई के समने सोकता गइलन।उनके बुझाते ना रहल कि ऊ का बोलं कि बड़किये माई खुनुस के मारे चिचियाये लगलीं – ’’अरे हरे निस्तनिया ,मरले बाड़ा स कि नरक मचउले बाड़ा स।ई कुल का गाना बजावत हउवा स रे… कह देत हईं। अबहियें ना बंद कइला कुल त, हई लऊडपीकरवा के मुँहवा में कोइला ठूँस देब।’’ बड़की मायी जेतने खुनसायें लइका कुल ओतने उनके समने नाच-गाय के उनके कऊँचावें। सिट्टू सबके ले ढ़ेर उधमी रहलन,बंगड़ के ओरी इसारा कइके कहलन-’’ ए अम्मा! हई जवन बंगड़ भइया हउवन न बस तोहरहीं समने सरीफ बने लं बाकिर एक ले बढ़ के एक लहकटई करे लं। परसों एगो बरात में नागिन डांस करत जात रहलन। का हो बंगड़ भइया ,कहा कि झूठ कहत हईं ?’’ सिट्टू क झूठ क सफेदी अबहीं साँच बनले चाहत रहल कि बड़की माई बंगड़ के गारी-फक्कड़ देवे लगलीं। बंगड़ जेतना बड़की माई के क्रोध से ना डेरायं ओतना सिट्टू के झूठ से थरथरात रहलन। आपन इज्जत अपने हाथ में ,के तर्ज पर ऊ उँहा से टसकलहीं में भलाई समझलन अउर उठ के चले लगलन कि तबले सिट्टू उनके छेंक लिहलन- ’’का भइया , एतना हड़बड़ी में कंहवा जात हउवा…तोहरे बिना कवन राज -काज रुकल ह।आवा -आवा तोहके एगो अउरी गाना सुनायीं।’’ सिट्टू गुटखा क पाकिट खूबे इस्टाइल में खोलत बंगड़ के खूब दुलार से गलबहियाँ करे क कोसिस में रहलन कि बंगड़ उमिर अउर अनुभव में बड़ जनावे क कोसिस में उनकर हाथ झटक दिहलन- ’’ तुमको का लगता कि हम तुम्हारी तरह लफंगा -लहकट हैं।ससुर हमको अपने नियन चिरकुट समझे हो। हम का एतना छिछोरे हैं कि तुम्हारे संग बइठ के इस्क कमीना गाएँगे… आंय।कह दे रहे हैं तुमसे उमिर में छह -सात साल बड़े हैं.. आदर -सम्मान नत देना है , नत दो ।बाकिर ई कुल चुड़ुुकई करोगे तो हमसे बुरा कोई नहीं होगा समझे न…।’’ बंगड़ भुजा लहरा-लहरा के,क्रोधन किटकिटात रहलन बाकिर सिट्टू के अलमस्त तबियत पर कवनो असर ना भईल।ऊ अपनहीं धुन में रहलन- ’’अरे बंगड़ भइया ,काहें परसुराम जी नियन क्रोधन फरसा भांजत हउवा भाय। एगो गाना सुना,कहत हईं ई गाना सुन के तबियत हरियर ना हो गईल त भोले बाबा क कसम हरियरी खायल आज से बंद।’’
’’ई हरियरी का होला बे ?’’ बंगड़ के बड़की अंखियन में बिस्मय क चिनगी चटके लगल रहल।
’आंय.. बम भोले के नगरी में रहके हरियरी ना जनला, जा ए भइया तोहरे बनारसी भइले प लानत ह।’ सिट्टू एतना कहके थपोरी पीट -पीट के हंसे लगलन अउर बंगड़ क्रोध के मारे लहराये लगल रहलन। सिट्टू के मामला ढ़ेर संगीन नजर आवे लगल त ऊ बंगड़ भइया के मनावे खातिर सुर छेडलन -’’प्यार के माँ की ,प्यार के माँ की…।’’ अबहीं एतने कढ़वलहीं रहलन कि बंगड़ दुई चटकन चटाक-चटाक सिट्टू के गाल पर ताबड़तोड़ धय दिहलन। सिट्टू क कुल हंसी -मजाक भुलाय गईल। क्रोध आ खुनस से लाल- डबडबाईल आँख कइले चिचिअइलन- काहें मरला ह ..ई तोहार सहूर हमके तनिको ना ठीक लगे ला कह देत हईं …अपने त एतना बंगड़ई कइला कि नामे बंगड़ पड़ गईल। अउर हमहन क तनीमनी हँसी-मजाक का क देत हईं जा एकदम जान लेवे प उतारू हो जात हउवा…।’’
’ससुर गाना के नाम प गारी दोगे तो अइसहीं लात खाओगे …जानते नहीं हो हमरा नाम भी अइसहीं बंगड़ नहीं पड़ा है। तोहरे ले बेसी बकवाद करते थे हम बाकिर ई तो कब्बो नहीं किये कि गाना के जगह गारी दें। उहो प्यार जइसे पबित्र भाव को माँ की गाली ..बताओ एक लोके का गाना बनाये हो तुमहुँ..।’ बंगड़ जब अतिशय क्रोध में रहेलन त खड़ी बोली बोले लगेलन)
’’अरे काहें गाना बनावे..अउर आप पूरा गाना सुने हैं कि हमको मारने धउरे हैं ?’’
’पूरा गाना त अउरो फुहर होगा …हम काहें सुने ?’
’’आगे गाना में प्यार के माँ की ,प्यार के माँ की पूजा करनी है… है।’’
’’अरे… त ससुर पहिले काहें नहीं बताये ?’’ बंगड़ खुस हो गईल रहलन।अउर एह खुसी में सिट्टू के गुटखा क आधा दर्जन पाकिट खरीद के थमा दिहलन। सिट्टू कुछ देर पहिले क मार-डाँट भुला के बंगड़ भइया क गुन गावे लगलन।
’’एहि बात प एगो गाना सुना बंगड़ भइया तोहरे लायक …।’’डेराते -डेरात बाकी हुलास भर के सिट्टू फिर गाना सुनावे के इच्छा से लबरेज रहलन।
’’चल सुनाव बाकिर लइकी बुटीफुल्ल ,कर गईल चुल्ल नत सुनइहे।’’ एना पारी बंगड़ गुरु के रुख में नरमी रहल।
’काहें ..साँचो तोहके ना पसन आवेला ?’ सिट्टू सरारत से आँख मारत पुछलन।
’नाही यार ऊ बात ना ह ?’ बंगड़ लजाये लगल रहलन।
’त का ह ,बातावा…तोहके चाची क किरिया ह।’ सिट्टू क जिज्ञासा चरम पर रहल।
’अरे ई कुल का नान्ह लइकन नियन किरिया खिआवे लगले रे…आंय।’ बंगड़ सिट्टू के लड़कपन क लिहाड़ी लेत कहलन।
’त बतावा न भइया ..?’ सिट्टू मनावन करे लगलन।
’ ऊ बात ई रहल कि ई गनवा हमरे दिमाग अउर जुबान प एतना चढ़ गइल रहल कि, जवने तनी नीक -नोहर लइकी देखा जायं ओकरे समने अपने आप मुंह से निकल आवे।साँचो कहत हईं भाय सिट्टू , हम अबहियों ले ना समझ पइलीं कि अचानक हमके का हो जाय। जब्बे कवनो लइकी देखाय हम इहे गनवा गावे लगींकृ।’ बंगड़ क बात अबहीं खतम ना भईल क सिट्टू चहक के बंगड़ के अंकवार में भर लिहलन।
’ तू त एहू मामले में हमार जोड़ीदार निकलला गुरु…का बात बंगड़ भइया। फिर आगे का भयल ,कवनो पटलीं ?’
’ससुर पटे क बात करत हउवा,एह एक गाना के चलते हम एतना बेर पिटइलीं कि आजो ई गाना सुन के हमार रोवां-रोवां कलपे लगेला।’ बंगड़ गुरु अबहीं रोवां -रोवां क दुःख बतावे -सुहरावे में लगल रहलन कि सदिया वाला घरवा में फिरो से लाउडस्पीकरवा चिचियाये लगल… लड़की ब्यूटीफुल कर गयी चुल्ल।
—— डॉ. सुमन सिंह—–