‘बस्तर डाइरी’ के कुछ पन्ना ….’लाल गलियारा’ से लवट के

बस्तर आपन प्राकृतिक खबसूरती के अलावे कला-संस्कृति के दुनिया में एगो खास जगह राखेला। हाल-हाल तक ई इलाका ‘नक्सली’ हिंसा के चपेट में रहे आ ‘लाल गलियारा’ के धुरी बनल रहे। हम रायपुर से रात के बस धर के भोरे बस्तर के मुख्यालय चहुंपनी। फजीरे फजीरे केनियों भटके के मन ना करत रहे तऽ बस स्टैंड के ऊपरी तल्ला पऽ बनल ‘यात्री निवास’ में रुके के इरादा भइल। रूम लियाइल आ जेबी नासता करे निकले के मन भइल तबले पता चलल कि हमनी भीरी ताला ना रहे। मनेजर से पुछनी तऽ कहले कि एहिज ताला लॉक के बेवस्था नईखे। ओहिजे एगो मेहरारू झाड़ू मारत रहली, उ कहली कि 16 साल से उ एहिजे काम करऽतारी बाकी चोरी के एको घटना नईखे भइल, बस बाहर जाये घरी आपन पइसा आ मोबाइल लेते जाई। ई हमरा खातिर बहुत अचरज के बात रहे।   जिला मुख्यालय जगदलपुर से तनिकी सा दूरी पऽ आसना नांव के जगह प बनल बा बस्तर अकादमी ऑफ डांस, आर्ट एंड लिटरेचर यानी छोट में जवन ‘बादल’ के नांव से चर्चित बा । संउसे बस्तर जदी रवुआ ना घूम सकेनी त एहिजा मय बस्तर संभाग के कला आउर साहित्य के एगो झलकी देखे के मिल सकेला। शांत, सुंदर आ हरियरी के बीचे बनल बादल अकादमी जाये के प्रेरणा हमरा प्रिय  मुन्ना कुमार पाण्डेय सर से मिलल जब हम आपन पीएचडी के  फील्ड विजिट में  जाये के तईयारी में रहीं। मुन्ना सर के जरिये बस्तर बैंड से चर्चित पद्मश्री अनूप पाण्डेय सर से बात भईल त उहों के इहे सुझाव दिहनी। त जाए के त रहले रहे आ खास बात ई हो गईल कि अनूप सर एगो रेफ़्रेन्स देले रहीं अकादमी के असिस्टेंट डायरेक्टर दीप्ति ओगरे जी से मिले के आउर दीप्ति जी छोट भाई सखा राजू उपाध्याय जी के सीनियर बाड़ी। राजू भाई के संगे ‘बादल’ के घुमाई के प्लान बनल। अकादमी के सेटिंग गज़ब के बा, ऐतना शांत जगह आ गेट प खलीहा एगो महिला गार्ड। गेट प लिखल रहे विजिट के प्रति व्यक्ति चार्ज २० रोपया बाकिर हमरा टिकट काउंटर जईसन कुछ केनियो ना लउकल। दीप्ति जी के फोन भईल उ गेट प आके रेसीव कईली आ हमनी के गेस्ट लॉन्ज में बईठनी जा। लगले पूरा अकादमी के स्टाफ, रिसर्चर लोग हमनी के घेर लिहले। आवे के मकसद जान के सभे बहुत खुस रहे। तनिकी सा देर बाद शिव नारायण पाण्डेय ‘कोलेया’ जी हमनी के बिचे आ के बहुत देर तक विस्तार से बस्तर के संस्कृति आ एहिजा के स्थानीय भाषा ‘हल्बी’ के बारे में बतऽवनी। अबहीं हमनी के बईठकी चलते रहे तब ले अकादमी के विजिट करे खातिर प्रसार भारती से जुड़ल छत्तीसगढ़ी गायक मो इक़बाल हुसैन आ उनकर टीम आ गईल। एक दूसरा से सभके परिचय के बाद हमनी के दीप्ति जी, प्रीतिलता जी के संगे अकादमी के पूरा चक्कर लगवनी जा। बादल अकादमी नया बनल बा। छत्तीसगढ़ बनला के बाद गते गते राज्य सरकार स्थानीय संस्कृति के बढ़ावा देवे खातिर राज्य के हर संभाग (कमिशनरी) में अइसन कुछ अकादमी खोले के योजना बना रहल बा। अकादमी के हर डेग पऽ बस्तर के कला – संस्कृति रचल बसल बा। अकादमी में स्टूडियो आ वर्कशॉप अबहीं बन रहल बा, काम लागल रहे। एगो पुस्तकालय बा जहवा हिंदी साहित्य आ स्थानीय संस्कृति प कुछ किताब रहे। डिजिटल रीडिंग खातिर कम्प्यूटर लागल रहे। देख के अनघा खुशी भईल कि आपन शहर आरा के चर्चित साहित्यिक पत्रिका ‘जनपथ’ के कई गो अंक लाइब्रेरी में रखल रहे। कैंपस में मड़ई जईसन कई गो वर्कशॉप बनल बा जवन हर विधा के अनुसार अलगा अलगा बा। एगो ओपन एयर थिएटर आ एगो जनजातीय संस्कृति के स्टाइल में बनल सभागार बा। बस्तर के दशहरा बहुते खास होखेला ओकरा खातिर अलग से वर्कशॉप रहे। बहरी के मैदान में कई गो खबसूरत फूलन के अलावे बस्तर के संस्कृति के प्रतीक देवझूला, गोंडी समाधि, मेटल आर्ट, बस्तरी पेंटिंग के मॉडल जगहा जगहा लागल बा। अकादमी के हर देवाल प बस्तरी आ गोंडी पेंटिंग बनल बा ई बतावे के जरूरत नईखे। घुमत फिरत कब लंच के समय हो गईल पते ना चलल। हमनी के फेर से अकादमी के स्टाफ आ रिसर्चर लोगन के संगे बईठकी जमल। पहिले त हमरा से भोजपुरी पेंटिंग के बारे में पूछल गईल, हम बतवनी त सभे अचरज में रहे कि भोजपुरी आ छत्तीसगढ़ी पेंटिंग में कई गो एलीमेंट समान बा। होखो काहे ना, भोजपुरी आ छत्तीसगढ़ी भाषा संस्कृति में जब बहुते समानता बा। पेंटिंग पऽ बतकही के बाद लोकगीतन प बात चले लागल। संजोग से ओहिजा ४ गो भाषा के गवैया लोग रहे त महफिल जमहीं के नु बा। इक़बाल जी छत्तीसगढ़ी में, आपन राजू भाई भोजपुरी में आ अकादमी के रिसर्चर अमलेश जी हल्बी आ गोंडी में गीत सुना के माहौल में ऊर्जा भर देलन। गीतन के रिकॉर्डिंग बा कालह हम पोस्ट करब। अब चले के समय रहे तब प्रीतिलता जी हमनी से कहनी कि अकादमी के विकास खातिर २० रोपया शुल्क बा, एकर कोई काउंटर नईखे बाकिर रवुआ जवन आ जईसे चाहीं जोगदान दे सकीला। हमरा लाइब्रेरी में हिंदी से हल्बी स्पीकिंग कोर्स के किताब लउकल रहे त हम किने के इच्छा कईनी। पता चलल १५ दिन आ तीन महीना के ऑफलाइन कोर्स चलेला अब उ त हमरा से संभव ना रहे त हम किताब किन लेनी। एह किताब के कोलेया जी तईयार कईले बानी त उहें के हाथ से हम किताब लेनी। चलत समय एह बात प सहमति भईल कि आवे वाला समय में भोजपुरी संस्कृति से जुड़ल लोगन के संगे वर्कशॉप होई। हम एह अकादमी के विजिट आ हमार मदद खातिर असिस्टेंट डायरेक्टर दीप्ति जी, आकाशवाणी के कलाकार प्रीतिलता जी, हल्बी – गोंडी के विद्वान आ घूम घूम के लोकसाहित्य जुटावे वाला अमलेश जी, हल्बी प शब्दकोष बनावे के काम में लागल योगेश जी के अलावे अनूप पाण्डेय सर आ राजू भाई के आभारी बानी। अंत में अकादमी से बहुत कुछ उपहार में मिलल बाकिर सबसे बड़का उपहार रहे हमरा कुछ अइसन लोगन से सम्पर्क बनल जे भाषा संस्कृति के अलावे स्थानीय विकास खातिर लगातार जमीन प मेहनत कर रहल बा। हमरा बहुत कुछ सीखे के आ आपन माईभासा-संस्कृति के संरक्षण में कवना तरीका से सार्थक काम कईल जायेला एकर प्रेरणा मिलल। सीखे के त हमनी के राज्य सरकार के चाहीं छत्तीसगढ़ से बाकिर सुशासन के नांव प त…खैर।

‘आमचो बस्तर’ के अंतिम पड़ाव ‘बस्तर कैफ़े’

बादल अकादमी के बाद बस्तर में दुसरका पड़ाव जेकर जिकीर कईल जरूरी बा उ ह दलपत सागर झील आ ओकर अरार प बनल आइकॉनिक बस्तर कैफ़े। अकादमी से बहरी आ के बस्तर छोड़े के पहिले कुछ आउर घूमे के प्लान रहे। दीप्ति जी आ आउर लोग के सलाह प मां दंतेश्वरी मंदिर, बस्तर पैलेस आ कलागुड़ी के देने डेग बढ़ल। कुछ कारन से दंतेश्वरी मंदिर आ पैलेस बंद रहे त तनिकी सा अफसोसो भईल। मंदिर के ठीक सोझा कलागूड़ी बा ओहिजा बस्तरी क्राफ्ट, हैंडलूम, शिल्पकार लोग के काम करत देख सकीला आ यादगार सामान किन सकीला। ओकरा बगल में बहुत सुंदर नगर पालिक निगम के सरकारी पुस्तकालय बा आ ओकरा प महात्मा गाँधी के आगमन के बारे में लिखल बा देखे से लागल कि १९३३ में गाँधी जी इहां आईल रहीं ऐही से बापू की कुटिया लिखल रहे। छत्तीसगढ़ में जेने जेने देखनी हमरा सरकारी इस्कूल, कॉलेज आ पुस्तकालय के इस्थिति बहुत बढ़िया लउकल। खैर, ई कुल्हि के बादो बहुत समय बांचल रहे काहे से कि बिलासपुर के बस रात में रहे। लॉज प आ के अबहीं निन आवहीं वाला रहे कि दीप्ति जी के फोन राजू भाई भीरी आईल कि हमनी के बस्तर कैफ़े चहूँपी जा। बस्तर कैफ़े जगदलपुर शहर के बिचे बनल दलपत सागर झील के अरार प बा। दलपत सागर झील लगभग ४०० साल पहिले काकतीय वंश के राजा दलपत देव के बनावल ह जेकर मकसद रहे पानी के स्टोरेज। ई झील छत्तीसगढ़ के बड़का तालाबन में आपन जगह रखेला। झील के बिचे टापू प शिव मंदिर बा। झील के चारो ओर मरीन ड्राइव जईसन बहुत मनमोहक टहले के जगह, फूल पत्ती बा। एगो ओपन एयर थिएटर बा। आ कहल जायेला कि दलपत सागर के सनसेट बहुत खबसूरत होखेला। हमनी के जाये ले अन्हार भईल आवत रहे बाकिर रंग बिरंग के लाइट में नहाईल झील आ बिच में बनल ‘आमचो बस्तर’ फोटो पॉइंट के त कवनो जवाबे ना रहे। बात बस्तर कैफ़े के हो जाये त कैफ़े में दीप्ति जी हमनी के राह अगोरत रही। बस्तर कैफ़े सरकारी कैफ़े ह जेकरा हर डेग प बस्तरी संस्कृति आ आर्टवर्क ठीक ओईसहीं बा जइसे बादल अकादमी में रहे। ई कैफ़े जरूर ह बाकिर अपना आप में एगो आउर कला संस्थान से इचीको कम ना रहे। धन धन हो छत्तीसगढ़ सरकार। दीप्ति जी हमार मुलाक़ात शकील रिज़वी भाई से करवनी। शकील भाई जबरजस्त सोशल वर्कर हई, इहाँ के कांकेर वैली नेशनल पार्क में रहे वाला जनजाति लोगन के विकास के काम में लागल बानी। एकर अलावे कमाल के फोटोग्राफर बानी। रवुआ लोग खातिर विसेस सूचना बा कि इहाँ के बस्तर ट्राइबल होम स्टे नांव से ट्राइबल रिसोर्ट जइसन प्रोजेक्ट शुरु कईले बानी जहाँव बहुत कम दर प रवुआ २ से ३ दिन रुक के बस्तरी जनजातीय संस्कृति के तीज तेओहार, नाच गान, खान पकवान के झलक ले सकीला। त अगिला बेर जब बस्तर जाईं त इहाँ के होम स्टे रिसोर्ट के आनंद जरूर लिहीं। बस्तर कैफ़े में कॉफ़ी आ पकोड़ा के ऑर्डर भईल। हम पकोड़ा के संगे शकील भाई से बहुत देर ले बस्तर संभाग में जनजातीय जिनगी, एहिजा के सामाजिक मुद्दा, शिक्षा, स्वास्थ्य, सरकारी जोजना सब प बात कईनी। दीप्ति जी आ शकील भाई के बारे में एगो आउर बात पता चलल कि ई लोग समय निकाल के २०० परिवार के छोट लईकन के पोषण खातिर उपाय करेनी जा माने कुछ पोषण युक्त अन्न उपलब्ध करावल जायेला । ई बहुत प्रशंसा आ प्रेरणा के बात बा। बात करत करत शकील भाई के याद परल कि हमनी के घुमहूं के बा। बस्तर कैफ़े मुनिसिपेलिटी के एगो बहुत पुरान पंप हाउस के जमीन प बनल बा। देखे से बुझायिल कि पंप के जरिये एहि झील से शहर में पानी सप्लाई होखत होई। पुरान स्ट्रक्चर से कवनो छेड़ छाड़ ना रहे। पंप हाउस के पंप रूम त छोड़ी ओकरा में जामल पिपर के पेड़ के जस के तस छोडल बा। इहे ना ओकरा के गोंडी पेंटिंग कर के आउर सवारल बा। हर देवार आ फाटक प पेंटिंग भा मेटल आर्ट रहे। बस्तर कैफ़े में एगो आर्टिस्ट लोग खातिर स्टूडियो बनल रहे। एगो आपन राज्य आ जिला बा अब देखीं ना भोजपुरे जिला के बात। एगो गाँव बा सटल बहियारा, ओहिजो अइसने ब्रिटिश राज के पंप हाउस बा जेकरा से शहर में सोन से पिये के पानी सप्लाई होखत रहे। पंप हाउस के बगले में कुंवर सिंह से जुड़ल लाइट हाउस आउर ढेर कुछ बा। गाँव वाला के बिरोध, रोड जाम के बादो शहर के कूड़ा पंप हाउस में डंप होखता। सुननी हं कि बीजेपी के पूर्व सांसद बहियारा निवासी आर के सिन्हा मानवाधिकार आयोग में केस कईले बाड़े। हमरा देखे से अपना हियाँ बस्तर कैफ़े जईसन जगह बने एकर सद बुद्धि कब होई पता ना। खैर घूमे में हमनियों के समय के पता ना चलल। अगिला ठिकाना खातिर बैग पैक कर के बस धरे के रहे। बाकिर बस्तर हरमेसा याद रही। चले घरी दीप्ति जी आ शकील भाई के प्रेम राह रोकत रहे, मन बहुत भावुक रहे। अइसे त जब से छत्तीसगढ़ बानी हमरा हर जगहा बहुते प्रेम मिलल, ओतना जेतना कि हम उम्मीद ना कईले रहीं। हर जगहा एगो नाया परिवार बनत गईल। तबो बस्तर याद आई, बहुत याद आई। शकील भाई, दीप्ति जी से एह वादा के साथ कि जल्दिये लौटब हमनी के बिदा लिहनि जा। बस्तर आवे से पहिले एगो अलगा ढंग के इमेज रहे जवन मीडिया के आ सरकारी तंत्र के सेट कईल नैरेटिव ह। बस्तर बहुत अलगा बा एहिजा के इनरावती नदी में प्रेम बहेला बस प्रेम।

 

  • रवि प्रकाश सूरज
    सदस्य, मैथिली-भोजपुरी अकादमी, दिल्ली

शोधार्थी, भोजपुरी विभाग, वीर कुँवर सिंह विवि
संपर्क- 9891087357

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