आज हम बड़ा खूस बानी।पूछ काहे ????
हमरा गऊंआ में एगो बियाह बा।मलिकाइन कीहां…क दिन निमन से खईला भईल बा।अजुए राति ओही जा जाएम। पहिले से ना जाएम त ओहू जा बड़ा मारामारी बा।अधेसरा,नौलखिया,बटुलिया,सिकनरा..पहिलही से बोरा-झोरि ले के बईठल रहेले सन।सुने में आईल ह कि मछरी के भोज-भात बा।केतना मूड़ा पछिला बेर बिगाईल रहे।दू दिन मतारी बेटा खईनी सन।सरधवा त खईबे ना करेले।लागेले चिघरे-आई हो दादा!!कांट गड़ता।
काल दोकाने कार करे ना जाएम।तनिको कुछू गबडा़एला बड़ा मारेलन सेठऊ।बाकिर उपाए का बा।हमार बाबू त कहियने ओरा गईले।दारू-ताड़ी पीयत पीयत टीबी उपटा लेहले रहलन।माई गहना-बीखो बेंच-बेंच केतना ओझा-गुनी कईलस तबो लिलार के टिकुलिया ना बाचल।
भोजवा में क गो चीज लोग बीगेला.. पूड़ी,तकारी,जुठियावल इमिरती,मछरी। क दिन निरईठ अन खईले भईल बा।सगरी जवार गमकता।आजु भोरहीं से जीभ पनियाईल बा।रसवा त सारे बह जाला तबो दू दिन ले खानी सन।ओतनो खातिर सिपहिया के खईनी खियावे के परेला।बाकिर कवनो उपाए नईखे।
ओही से आज हम बड़ा खूस बानी।आजन-बाजन बाजता काले से।माई गईल बीया हरदी कूटे। पांच रोपेया नेछावरो मिली।
माई दिन-दिन भर गऊंआ में फटकल-चालल करेले।कबो-कबो खुद्दी-उद्दी ले आवेले।दू-चार दिन डभका के चल जाला।जहिया दोकनिया पर ना जानी तहिया अईंठा केकड़ा बिन ले आवेनी।कबो-कबो सिधरी, पोठिया भी भेंटा जाला।
जानतानी हमरा दोकनिया पर जाएके मन ना करेला।सेठऊ बड़ा लप्पड़ चलावेलन।कनबजा भड़का देवेलन।कए दिन ले कनिया बिसबिसात रहेला।कहियो कहियो त घरे लेले चल जालन।बरतन मजवावेलन,झाड़ू लगवावेलन। बड़ा बिपत बा।जानतानी हमरो मन करेला पढ़े जाईं,खूबे खेलीं,गाछी पर चढ़ीं।बाकिर का करीं हमरा भगिये में जूठ-कांठ लिखा गईल बा।
माई बड़ा हूक में रहेले।सरधवा के रहे रहे भूत उपट जाला।उखिन-बिखिन करे लागेले।माई कहेले ए मुंहझऊंसिन से के बियाह करी? एक दिन सहरिया से सेठऊ एगो आमदी लेके आईल रहलन।ऊ अमदिया कहत रहे-“ए बेटी का बियाह हम से करवा दो..बहुते पईसा देगा।”
मने माई त ठान देहलस-“हमरा ना धन जुरी त हम ए छऊडी़ के ईनार में बीग देब बाकिर तोहरा से त कहियो ना बियहेब अभगऊ।”हम त भकचका के ताकते रह गईनी।हमरा त बुझाईल कि माई बियाह करी..पईसा मिली.. कुछ दिन तनी हिक भर खाईल पियल जाईत।बाकिर बाद में मतारी बड़ा समझवलस।
हम आज बड़ा खूस बानी।दू दिन से दोकनिया पर नईंखी जात।भोजवा में से बड़ा चीज ले आईल बानी..पत्तल झार-झार के।ओमे एगो बड़का आमदी आईल रहे।कहत रहे-“का कचरा बीन रहा है.. स्कूल केओं नहीं जाता.. तुम केतना बसा रहा है..नहाता नहीं है रे…”
हम का कहें..”द ना सबुनिया किन के.. तबे नु नहाएगा। पहिले खाएं आकि नहाएं।”
ऊ आमदी बड़ा निमन रहे।हमरा के घरे बोलवलें।कहलें कि माई के संगे आव बिहान।
हम आजू बड़ा खूस बानी।पूछ काहे…अब हम स्कूल जाएम।माई के ओही स्कूलिया में भात बनाए के कार मिल गईल बा।आ सरधवो के पढ़े के सुविस्तो हो गईल बा।
साचों काका आजू हम बाड़ा खूस बानी।अब हम लखेरा ना बनेम।अब हम जूठ-कांठ ना बटोरेम।अब हमार देहियां ना बसाई।हमार बहिनियो के भूत अब ऊतर गईल बा।
आजू हम बाड़ा खूस बानी।
डॉ शिप्रा मिश्रा पांडेय