बाति कहीं कि ना कहीं बाति मन क कहीं मन से कहीं क़हत रहीं सुनवइया भेंटाई का? उमेद राखीं भेंटाइयो सकेला कुछ लोगन के भेंटाइलो बा कुछ लोग अबो ले जोहते बा, त बा सुनवइया मन से बा मन के बा जोगाड़ल बा बिचार करे के होखे त करीं के रोकले बा रोकल संभवे नइखे लोकतंत्र नु हवे। जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
Read MoreDay: April 2, 2023
महेंदर मिसिर उपन्यास के बहाने उहाँ के व्यक्तिव पर एगो विमर्श
आगु बढ़े से पहिले कुछ महेंदर मिसिर के बारे में जान लीहल जरूरी बुझाता – महेंद्र मिसिर के जनम 16 मार्च 1888, काहीं-मिश्रवालिया, सारण, बिहार आ उहाँ के निधन 26 अक्टूबर 1946 । उहाँ विद्यालयी शिक्षा ना हासिल होखला का बादो संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, फारसी, भोजपुरी , बांग्ला,अवधी, आ ब्रजभाषा के विशद गियान रहे। चबात रहीं। महेन्दर मिसिर के पत्नी के नाम परेखा देवी रहे। परेखा जी कुरूप रहली। त कादों एही का चलते गीत-संगीत में अपने मन के भाव उतरले बाड़ें महेन्दर मिसिर। महेंदर मिसिर के एकलौता बेटा…
Read Moreमसाने में
शिव भोले हो नाथ, शिव भोले हो नाथ चलि अवता दिल्ली मसाने में। अवता त देखता दिल्ली के हालत दिल्ली के हालत हो दिल्ली के हालत सभे जूटल दारू पचाने में । शिव भोले हो……. अवता त देखता नेतन के हालत नेतन के हालत हो नेतन के हालत सभे जूटल ई डी से जान बचाने में । शिव भोले हो……. अवता त देखता पपुआ के हालत पपुआ के हालत हो पपुआ के हालत देखS जूटल, देस क इजत भसाने में । शिव भोले हो……. अवता त…
Read Moreगीत
महुआ मन महँकावे, पपीहा गीत सुनावे, भौंरा रोजो आवे लागल अंगनवा में। कवन टोना कइलू अपना नयनवा से।। पुरुवा गावे लाचारी, चिहुके अमवा के बारी, बेरा बढ़-बढ़ के बोले, मन एने-ओने डोले, सिहरे सगरो सिवनवा शरमवा से।। अचके बढ़ जाला चाल, सपना सजेला बेहाल, सभे करे अब ठिठोली, कोइलर बोले ले कुबोली, हियरा हरषे ला जइसे फगुनवा में।। खाली चाहीं ना सिंगार, साथे चाहीं संस्कार, प्रेम पूजा के थाल, बाकी सब माया-जाल, लोग कहे चाहें कुछू जहनवा में।। – केशव मोहन पाण्डेय
Read Moreकईसन होला गाँव ?
हम त भूलाइये गइनी कईसन होला केहूँ गाँव जब से पसरल शहर में गड्ढा में गईलन सगरे गाँव न दिखेला पाकुड़ के पेड़ न चबूतरा, न खेत के मेड़ न बाहर लागल ईया के खाट न रौनक बचल मंगलवारी हाट न अब लईकन के कोई खेल बचपन ले गइल मोबाइल के रेल न गुल्ली, न डंडा, न पिट्ठों, न गोटी गाँव गईलन शहर में खोजत रोटी कईसे बाची बाग-बगीचा फुलवारी रखे के तनी सलीका हाय-हेलो में मरल त जाला गोड़ लागे के सब तौर-तरीक़ा कईसे न…
Read Moreअब कहाँ ऊ फगुआ-बसंत!
जनम कानपुर में भइल बाकिर लइकायी के दिन गाँवें में बीतल। लमहर परिवार रहे। दूगो तीन गो फुआ लोग के ससुरा जाए खातिर दिन धरा त दू तीन जनी के बोलावे खातिर। त हम लइका लोग के ठीक ठाक फ़ौज रहे। घर में जेतना लोग बहरा नोकरी करत रहे ओकर परिवार ढेर घरहीं रहत रहे। पिताजी कानपुर आर्डिनेंस फैक्ट्ररी में नोकरी करत रहनीं आ हमनीं के गाँव में। ढेर दिन हो जा त मामा जी मम्मी के बिदा करा ले जायीं। तब साल दू साल मामा जी की घरे बीते।…
Read Moreकुँवर सिंह के आखिरी रात
26 अप्रैल 1858 के रात कुँवर सिंह के आखिरी रात रहे. तीन दिन पहिले 23 अप्रैल के 80 बरिस के एह घायल शेर के कटल हाथ पर कपड़ा बन्हाइल, ओकरा ऊपर से चमड़ा के पट्टा से ढ़ाल के बान्हल गइल, तिलक लगावल गइल. फेर त ई राजपूती तलवार अंगरेजन के गाजर-मूली के तरह काटल शुरू कइलस. ली ग्राण्ड के जान गइल आ बाकी बाँचल अंग्रेज सैनिक जान बचा के भगलन सन. जगदीशपुर आजाद हो गइल. यूनियन जैक के झंडा उतार के परमार वंश के भगवा पताका लहरावल गइल. लोग खुशी…
Read Moreनेपाली आजी के दुख !
चइत क घाम में साईकिल चलावत शिखा स्कूल से घरे चहुँपल त, पियास क मारे मुँह झुरा गइल रहे। तेज हवा रहे त बाकिर लूह लेखा गरम ना रहे, लेकिन हवा के बिपरीत साईकिल खिंचल एतना आसान न होखे। साईकिल दुआरी पर ठाड़ा करके जल्दी से घर मे घुसल त दुगो नया परानी के देख ठिठक गईल। तनी देर गौर से देखला क बाद ओकरा जोर के झटका लागल अरे बाप रे, ई त ‘नेपाली आजी’ हई। बाकिर ई सँगवा एगो मुस्टंडा बा, ई के ह? नेपाली आजी से कबो…
Read Moreमाटसाहेब
माट साहेब के आवे से पहिले लइका सब इस्कूल गेट पर भीड़ लगा देत रहलन। माट साहेब आवते हाथ में बाल्टी उठा लेस।उनका पीछे सब बच्चा सब सफाई में लाग जात रहले। तनिके देर में इस्कूल के काया कलप हो जात रहे। फेर सब लइकन के सथहीं बइठा के ककहरा, पहाड़ा, कविता आ खेल सब करवावस।लइकन के साथहीं खाना खाये बइठस। छुट्टी होते अपना फटफटिया पर छुटल छाटल लइकन के साथे भी ले जास। ई माट साहेब के गाँव के कुछ लइका,जवन कि ओही इस्कूल से पढ़ के काॅलेज पढत…
Read Moreआपन बात
अनघा भाव मन के उद्बबेगत बहुत कुछ कह जाला। उहे सब जब लेखनी में समा के कागज पर उतरेला तब सबकुछ नया नया लागेला। बीतल समय से बहुत सुन्दर चित्र मिलेला जवना में वर्तमान परिप्रेक्ष्य खुद हीं अपना के फिट पावेला आ ई मेल मन के खूबे भावेला।सुख, दुख,दया, अहम ,क्रोध आदि भाव साक्षात आपन प्रभाव डालेगा। अपना गुण के अनुकूल ई रिश्ता में खटास आ चाहे मिठास ले आवेला बाकिर रचना के मरम हमेशा आनंद में परिवर्तित हो के मिलेला। शिव सृष्टि के सिरजक हईं।उहाँ के मानुष आ प्रकृति …
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