गाँव आ गोधन पूजा

असों सुजोग से देवारी पर हम गाँवे बानी। त ढेर कुछ भुलल–बिसरल मन परल।ओही में से एगो गोवर्धन पूजो बा। देवारी के एक दिन बाद भोजपुरिया समाज में गोवर्धन पूजा जवना के गोधना कहल जाला, बड़ सरधा का संगे मनावल जाला। आजु के गाँवन से सामुहिकता त बिला रहल बा, बाक़िर अबो ढेर कुछ बाचल बा। पहिले एक टोला में एगो गोधन बाबा बनावल जात रहलें आ पूजात रहलें। मय टोला के लइकी, मेहरारू लो जुटत रहे आ अपना-अपना भाई लोग सरापत रहे।अब कई जगह गोधन बने लागल बाड़न बाक़िर पूजन के विधि-बिधान उहे बा। गोधन में कुटला आ सरपला के बड़ा महातिम होला। अइसे त इ परब भाई बहिन के बीच के बा बाकिर भोजपुरिया लो हरमेसा समाज के ले के चलेला।  रउवा सभे के भोजपुरी लोकगीतन में प्रकृति, पर्यावरण, देश आ समाज भरपूर भेंटाई। समय-समय पर हर बाति के आपन महातिम होला, ना त गारी देहला आ सरपला खातिर रार होखे के भरपूर संभावना रहेला। गोधन पर हमरा गाँव के गवाए वाली कुछ प्रचलित गीतन के बानगी देखल जाव-

 

सरापे खातिर इहो एगो गीत बा, जवना में मय गाँव के समेटल गइल बा-

 

गोधन अइले पाहुन हे, गोधन के बइठे के जगहो ना देसु।

मारहु जेठ पूत बभना के हो , गोधन के बइठे के जगहो ना देसु।

मारहु जेठ पूत कयथा के हो , गोधन के बइठे के जगहो ना देसु।

मारहु जेठ पूत सोनरा  के हो , गोधन के बइठे के जगहो ना देसु।

मारहु जेठ पूत लोहरा के हो , गोधन के बइठे के जगहो ना देसु।

मारहु जेठ पूत कोइरियन  के हो , गोधन के बइठे के जगहो ना देसु।

 

भा कतों-कतों इहो गावे के चलन बा-

 

कारी लउर छितकाबर हो, शत्रु मारेलन हियरा फार

से लउर लीहलें कवन राम हो, शत्रु मारेलन हियरा फार

से लउर मारेलें कवन राम हो, उनके बरम बाबा के बल

से लउर मारेलें कवन राम हो, उनके हनुमत के बल।

(बारी बारी से घर परिवार के बड़ लोगन के नाँव लेत गीत के आगु बढ़ावत गावल जाला । )

भाई-बहिन के नाव बदल के ई गीत सगरों गावल जाले-

 

कवन भइया चलले अहेरिया,

कवन बहिनी देली असीस हो ना ।

जियसु रे मोर भइया ,

मोरा भऊजी के बढे सिर सेनुर हो ना ।

जेपी भइया चलले अहेरिया,

प्रियंका बहिनी देली असीस हो ना ।

जियसु रे मोर भइया

मोर भऊजी के बढे सिर सेनुर हो ना ।

    लोक में कहाउत ह कि एगो राजा के बेटी जेकर बिआह हो गइल रहे , अपना ससुरा से आवत रहली , ओह राजा के बेटा के बिआह रहे , जब ससुरा से बेटी आवत रहली त लोग काना-फुसी करत रहे कि बेटी कतना नीमन खुश बा‌डी, बेटा के नजर लागी, जम ले के जइहें, अउर जने का का । बहिन अपना भाई के बचावे खातिर , ओजुगे से सांप बिछी भा हर ओह चीझु के अपना फांड़ में राखत चलली जवना से उनुका भाई के खतरा होइत आ उ राजमहल चहुंपली । यम अइले, बाकिर बहिन भाई के प्यार के सोझा हार गइले ।

अइसने लोक कंठ में रचल बसल कई गो कहनी सुनल-सुनावल जाला । फेर सरापल जाला ओकरा बाद बहिन लोग अपना भाई लोग के आशीष देली। फेर गोधन बाबा के कूट के सभ लोग अपना-अपना घर चल जाला।बहिन लोग जबले गोधन कूट ना लेला लोग, तबले बरत में रहेलीं।

(एह लेख के कुछ अंश फेसबुक से साभार लीहल गइल बा। )

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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