कईसे के जिहं माई तोर ई ललनवाँ सूखि जाले धरती सगरौ सुखेला नयनवाँ कईसे के जिहं माई…….। सुबहा के घाम लागे जेठ के दुपहरी कउनो नखतवा देखालै नाहीं बदरी तपते त बीत गईल ई अषाढ़, सवनवाँ कईसे के जिहं माई……..। झुरा अकाल साल सालै परि जाला चईति अगहनी के बीज जरि जाला छोड़ि गाँव चिरई,चुनमुन उड़ि गइलन बनवाँ कईसे के जिहं माई…….। कईसे के होई आगे पूतन के पढ़ाई कईसे करब माई बेटी के विदाई कईदा तूँ माई मोर पूरा ई सपनवाँ कईसे के जिहं माई……..। बुधिया बीमार बनलि कपरा…
Read MoreDay: February 8, 2022
संतकवि कबीर के जनम आ मृत्यु के तिथि बिचार
उत्तर भारत के मध्यकालीन भक्ति आंदोलन के क्रांतिकारी संतकवि कबीर के जनम तिथि, जन्म स्थान, परिवार, भासा, मरन तिथि आदि के लेके बिद्वान लोग के एकमत नइखे। आ जदि कबीर अपने चाहे उनका समकालीन उनकर केहू भक्त नइखे लिखले त जनम तिथि, जनम स्थान, परिवार आ मरन तिथि के लेके ठोस सबूत जुटावल कठिन बा। अइसहूं पहिले सम्पन्न परिवार का लरिका के जनम पतरी ना बन पावत रहे। विरले केहू का घरे लरिका पैदा होखे त उपरोहित आके ओकर जनम पतरी बनावस। बहुत बूढ़ लोग के कहत सुनले बानी कि…
Read Moreसाइबर अपराध की आतंकी हमला ?
आजु काल्ह समाचार पत्र उठा के देखी त लगभग हर दिन साइबर ठगी से संबंधित मामला देखे अउर पढ़े के मिल जाई । जवना के आतंकी हमला भी मानल जा सकत बा । आज के अत्याधुनिक तकनीकी युग में लोग आपन जीवन के सरल बनावे खातिर कईगो उपकरण के प्रयोग करत बा लोग । दुनिया भर में लोग ऑनलाइन इंटरनेट के माध्यम से घर बईठल लोगन के निजी जानकारियन के चोरी करत बाड़न । जवना के साइबर अपराध कहल जाला। वैश्वीकरण एकमात्र अइसन कारण बा, जेकरा से दुनिया भर के लोग, एक दोसरा से…
Read Moreसाहित्यिक चोरी : समस्या आ समाधान
हाल ही में सोशल मीडिया प्लेटफार्म प एगो ममिला बहुत चरचा में रहे, जहंवा भोजपुरी के एगो साहित्यकार आ गीतकार प चंचरीक जी के लिखल प्रसिद्द गीत ‘चरखवा चालू रहे’ कॉपी कर के बहुत मामूली हेर-फेर के संगे एगो पत्रिका आ इन्टरनेट प आपन नांव से छपवावे के आरोप लागल. आरोप-प्रत्यारोप के लमहर दौर चलल, फेर बाद में उ साहित्यकार महोदय के वेबसाइट एडिट करवा के आपन नांव हटावे के परल. एह सब के बीच एगो जवन सबसे दुखद बात रहल उ ई कि कई गो भोजपुरिये समाज के लोग…
Read Moreसाहित्य अकादमी भाषा सम्मान-2021
साहित्य अकादमी भाषा सम्मान एगो भारतीय साहित्यिक पुरस्कार हवे,जवना के शुरुवात साहित्य अकादमी सन 1954 से कइलस। साहित्य अकादेमी एगो स्वसत्ताशासी संस्था हवे जवना पर सरकार के हस्तक्षेप नइखे। ई संस्था साहित्यकारन द्वारा साहित्य के बढ़न्ति खातिर बनावल गइल बा। साहित्य अकादमी मान्यता-प्राप्त 22 + 2 गो भाषा में हर बरीस पुरस्कार देवेले। उहवें भोजपुरी जइसन गैर-मान्यता प्राप्त भाषावन में उत्कृष्ट लेखन के प्रोत्साहित करे खाति लेखक लोगन के सन 1996 से सम्मानित करे के प्रयास शुरू कइलस। एकरा पाछे भोजपुरी के साहित्य अनुरागियन के बहुते लमहर संघर्ष आ प्रयास…
Read Moreगुलरी क फूल
ढेर चहकत रहने कि रामराज आई , हर ओरी खुसिए लहराई । आपन राज होखी , धरम करम के बढ़न्ती होई , सभे चैन से कमाई-खाई । केहू कहीं ना जहर खाई भा फंसरी लगाके मुई । केहू कबों भूखले पेट सुतत ना भेंटाई । कुल्हि हाथन के काम मिली , सड़की के किनारे फुटपाथो पर केहू सुतल ना भेंटाई , मने कि सभके मुंडी पर छाजन । दुवरे मचिया पर बइठल सोचत – सोचत कब आँख लाग गइल ,पते ना चलल । “कहाँ बानी जी” के करकस आवाज आइल…
Read Moreमति मारीं हमके
ओई दिन माई घर की पिछुवाड़े बइठि के मउसी से बार झरवावत रहे। तवलेकहिं बाबूजी आ गइने अउर माई से पूछने की का हो अबहिन तइयार ना भइलू का? केतना टाइम लगावतारू? माई कहलसि, “बस हो गइल, रउआँ चलिं हम आवतानी।” खैर हम समझि ना पवनी की कहाँ जाए के बाति होता। हम लगनी सोंचे की बिहाने-बिहाने बाबूजी माई के लिया के कहाँ जाए के तइयारी करताने। अरे इ का तवलेकहिं हमरा बुझाइल की मउसी त सुसुक-सुसुक के रोवतिया। हम तनि उदास हो गइनी काहें की हमरा लागल की मउसी…
Read Moreअवघड़ आउर एगो रात
रहल होई १९८६-१९८७ के साल , जब हमारा के एगो अइसन घटना से दु –चार होखे के परल , जवना के बारे बतावल चाहे सुनवला भर से कूल्हि रोयाँ भर भरा उठेला । मन आउर दिमाग दुनों अचकचा जाला । आँखी के समने सलीमा के रील मातिन कुल्हि चीजु घुम जाला । इहों बुझे मे कि सांचहुं अइसन कुछो भइल रहे , कि खाली एगो कवनों सपना भर रहे । दिमाग पर ज़ोर डाले के परेला । लेकिन उ घटना खाली सपने रहत नु त आजु ले हमरा के ना…
Read Moreगयल गाँव जहाँ गोंड़ महाजन
का कहीं महाराज , समय के चकरी अइसन घूमरी लीहले बा कि बड़ बड़ जाने मे मुड़ी पिरा रहल बा । जेहर देखी ओहरे लोग आपन आपन मुड़ी झारत कुछहु उलटी क रहल बा । उल्टी करत बेरा न त ओकरे जगह के धियान रहत बा , न समय के धियान रहत बा । एतना लमहर ढंग से आत्ममुग्धता के शिकार भइल बा कि पूछीं मति । ‘अहं ब्रह्मास्मि’ के जाप मे जुटल फेसबुकिया बीर बहादुर लो अपने आगा केहू के कुछहू बुझबे ना करे, फेर चाहे समने केहू होखो…
Read Moreगीत
हमरा पर बाबू जी रहम रउरा करीं गइया बछरुआ नीयर दान जन करीं काहे करतानी बाबा सभे लोग के नकल मत करीं हमके नइहरवा से बेदखल अँखिया में बेटिया के लोर जन भरी गइया बछरुआ……………………… धक धक करेला हमरो करेजवा का जाने कइसन मिली ससुरवा सोंचत अँखियाँ से लोर मोरे झरी गइया बछरुआ………………….. हम हूँ बनब राउर बुढ़उती के लाठी आपना करेजवा के जन करीं काठी बतिया पर हमरा विश्वास तनी करीं गइया बछरुआ……………………….. पढ़ लिखी के हमहूँ नाव राउर करब फेर हम करब जवन रउरा…
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