कउवा से कबेलवे चलाक

का जमाना आ गयो भाया , पहिले त अंडा चूजा के सीख देत रहे बाकि अब त बापे के सीख देवे लागल बिया । तकनीक के जमाना नु बा , केनियों आड़ा तिरछा देखि के धार फूटि रहल बिया । चाहे ओकरा से गाँव तबाह होखे भा देश । पानी के रेला त रेला ह , ओकरा के केकरो पहिचान नइखे । जब पानी के फुफुकारत धार चल देवेले त ओहमे बड़ बड़ पेड़ , पहाड़ , गाँव – गिराव सभे के अपने लय मे नाधि देले । मनई से…

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मड़इया मोर झाँझर लागे

गरमी के तिखर किरिनिया मड़इया मोर झाँझर लागे ॥ दँवकेले पातर छन्हिया, मड़इया मोर झाँझर लागे ॥   खाँखर पतलो क खर ले , खरकि गइले सरल रसरिया क बान्हन सरकि गइले हरका से हिलि जाले थुन्हिया मड़इया मोर झाँझर लागे ॥ सावन – भदउवाँ क रतिया ओनइ परे सरवत छन्हिया के संगही नयन झरे बरे जब नाही चुल्हनिया मड़इया मोर झाँझर लागे ॥   जेठवा मे जइसे कि अगिया लवरि बरे लुहवा लहकि मोरा भितरा सुनुगि जरे अदहन बनि जाला पनिया मड़इया मोर झाँझर लागे ॥   रोपनी से…

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बैनीआहपीनाला

प्यार के रंग कइसन होला का ख़ूब गाढ़ लाल ओढ़हुल के फूल नियर   का ख़ूब गाढ़ पीयर सरसों के फूल नियर   का ख़ूब गाढ़ नीला अलसी के फूल नियर   का ख़ूब गाढ़ हरियर घास नियर   का ख़ूब गाढ़ कत्थई पाकल सेब नियर   का ख़ूब झक्क सफ़ेद चाँदनी नियर   आख़िर कइसन होला रंग प्यार के   का रंग प्यार के बैंगनी होला   आसमानी होला   नारंगी होला   का प्यार के रंग में शामिल नइखन स सब रंग दुनिया के   एकरा में शामिल…

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किशोर के कवित

१   नाक   नाक के सवाल रहे आपन ना खानदान के, कान पर गइनीं आँख अछइत, सब करम हो गइल नाक ना बाँचल।     २   जाल   आदमी आपन हाथे आपन पाँखि काटी आपन बीनल जाल में आज अझुराइल फँसल छटपटात बा, जाल बिछवले रहल हा दाना डलले रहल हा अनकरा खातिर, बाकिर ई का ! दाना के चक्कर में खुद के जाल में खुदे फँस गइल।   ३   मजहब   मजहब कौनो होखे ना सीखावे बँटवारा। हमनी का अपने के ना जानवर , फूल, पक्षियो…

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सपना रोज सजाई ले

भौतिकता में डूबल असलियत से उबल आधुनिकता में अझुराई ले आ अपना के खूब भरमाई ले सपना रोज सजाई ले। ज्ञानविहीन दिशाविहीन दुबिधा में अपने के समझ ना पाई ले सपना रोज सजाई ले। कामकाज भले ना होखे आमद-खर्च नफा-नुकसान अंगुरी पर निपटाई ले सपना रोज सजाई ले। लमहर-लमहर जम्हाई लेके विकास-ह्रास के खाका रोज बनाईले आ मेटाई ले सपना रोज सजाई ले। दुनिया के चकाचौंध में डूबी ले उतराई ले आ अपने से बतीआई ले सपना रोज सजाई ले। कबो छा जाई ले आकाशे में राकेश बन कबो जमीने…

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जे देहलस उ पइलस का

घास क रोटी कोइ बतावै फिर कउनो राजा खइलस का हम कुरबानी काहे देहीं जे देहलस उ पइलस का।   महल बनउलस शिला तोड़ जे अपन नाम लिखइलस का कउनो कोने खोज बतावा उ अपनो कुटी बनइलस का।   सार गला संसार रचयिता जाना इहा कमइलस का मजदूर बोल जग हँसी उड़ावै कोइ हाँथ कपारे धइलस का।   चीर धरा जे अन्न उगावस आपन पीर सुनइलस का भात महीनका जे चभकै उ पूछा स्वेद बहइलस का।   चान छुए में बाउर जन बसुधा क साध पुरइलस का सूरज भेटै सबै…

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त्याग

फागुन के रात बा । आम के बउर के गमक लेके नवबसंत के मीठ-मीठ हवा बहsता। तालाब के किनारे एगो पुरान लीची के गाछ  के घन पतsइयन के बीच से रात-रात भर जागे वाला कवनों बेचैन पपीहा के  तान मुखर्जी के घर के एगो निद्राहीन शयन कक्ष में प्रवेश कर रहल बा । हेमंत तनी चंचल भाव से कब्बो आपन मेहरारू के माथा में बांन्हल जूड़ा के केश खोल के आपन अंगूरी में लपेटsता, कब्बों ओकर कडा के चूड़ी में भिड़ा के टन-टन आवाज करsता, आ कब्बो ओकर जुड़ा में लपेटाइल माला…

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कुकुरिया

भूँक कुकुरिया भूँक तोके राम भूँकावै भूँक नइहर खइली सासुर खइली खइली पास पड़ोस गिन-गिन देवता पित्तर खइली तवनों पर अफसोस आँख खोल के देख बउरही मचल हौ थूकम थूक।   के के नाही कुंआ झंकउली के के ना तरियउली भलमनुसन क रस्ता छूटल अइसन दाँत गड़उली सोच सोच के कारस्तानी उठै करेजे हूक।   जेकरे माथे बेइल फूलै ओकरे घर कुकरौंछी हाँडी बिछै हाड़ बरावै तुलसी तर मुँहझौंसी का देखीं मुँह बरै रोवाई जल्दी मुर्दा फूँक॥   कैलास गौतम 

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भोजपुरी में मानकीकरण के जरूरत … कतना व्यवहारिक ?

साहित्य के साँच आ संवेदनसील मानके सिरजना के राहि डेग बढ़ावल सुखकर होला। मने एगो अइसन प्रेरक तत्व जवना के प्राण तत्व मान के सृजन के समाज खाति एगो आइना का रूप में परोसला के सुघर दीठि आ संकल्पना का संगे सोझा ले आवे खाति प्रतिबद्धता के एगो मानक मानल जाला। अइसन सृजन अपना भीतरि ऐतिहासिकता के बिम्ब जोगावत आगु बढ़त देखला। अझुरहट आ बीपत का बीच साहित्य एगो नीमन व्यवस्था देस आ समाज का सोझा राखेला। अगर व्यवस्था एकरूपता का संगे सोझा आवेले त ओकरा के बूझल आ बूझलका…

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जमुऑंव के संत निराला बाबा

जमुऑंव गाँव (थाना- पीरो, जिला- भोजपुर) के लोग बहुते धारमिक  सोभाव के ह। जब से हम होस सम्हरले बानी तबे से देखतानी कि एह गाँव में पूजा-पाठ, हरकीरतन आ जग उग के आयोजन लगातार होत आ रहल बा। एह गाँव में साधुजी लोगन के बड़ा बढ़िऑं जमावड़ा भी होखत रहेला। मंदिर आ देवस्थानन से त गाँव भरल परल बा। कालीमाई, बड़की मठिया, छोटकी मठिया, संकरजी, जगसाला, सुरुज मंदिर, सतीदाई, बर्हम बाबा, उमेदी बाबा, गोरेया बाबा, पहाड़ी बाबा–। बात 1975 – 76 के आसपास के होई। बड़का पोखरा से पचीस-तीस डेग…

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