आपन भाषा, आपन सम्मान

“अरे सुनतानी देर होता, जाइना स्टेशन, ना त गाड़ी आ जाई,” कमला देवी कहली।
“काहे हल्ला कइले बारू, जात त बानी, बुझाता की तहार बबुआ घर देखलही नईखन, गाड़ी से उतर जइहन त भूला जइहन,” रामेश्वर जी तंज कसलन।
“हम उ सब नइखी जानत, रउआ जाई जल्दी,” खिसिया के कमला देवी कहली।
“तहार बबुआ इंजीनियरिंग के पढ़ाई पढ़तारन, पचीस साल के हो गईल बारन अउर तू त ऐतना चिंता करतारू की जेगनी अभी गोदी में बारन,” रामेश्वर जी हंसते हुए कहले।
“अरे रउआ का जानेम माई के ममता, अब जाइ भी, बाद में हिसाब – किताब करेम। हर बात में जिरह करे लागेनी,” कमला देवी चिल्ला के कहली।
ह.. ह जा तानी, एतना कहके रामेश्वर जी रेलवे स्टेशन चल गईलन।
एने कमला देवी, उ सब पकवान बना के रख देले रहली जउन बबुआ के पसंद रहे। आ अब बाबु के बाट जोहे लगली। कुछ देर के बाद मोटरसाइकिल के आवाज सुनाई देहलस त कमला देवी दउड़ के दरवाजा पर गइली, आपन मोटरसाइकिल के आवाज पहचानत रहली। देखली त रामेश्वर जी के संगे मनुवा गाड़ी से उतरलस आ आके उनकर  गोड़ लगलस त कमला देवी ओकरा के बहुत आशीर्वाद देहली।
“मनुआ चल जल्दी से हाथ – गोड़ धो ले,  हम तोरा खातिर खाना निकालअ तानी।”, घर के अंदर घुसते ही कमला देवी कहली।
मनुआ हाथ – गोड़ धोके डाइनिंग टेबल पर बइठ गइल, तले कमला देवी थरिया में भात – दाल, सब्जी अउर आलू के बचका लेके अइली। खाना देखते मनुआ कहलस, “इ का माँ, हेतना तेल वाला सब्जी, आ भात , इ सब खइला से त मोटा जाएम, कुछू हेल्दी खाना बनावे के चाहतरल। अब तहरा लोगन के भी उमर हो गइल बा, हेतना तेल वाला खाना ना खाएं के चाही।”
“इ का रे मनुआ, ते त भात बड़ा चाव से खात रहले है, अउर इ आलू – गोबी के रसदार सब्जी तोरा त बहुत अच्छा लागत रहल ह, एही से हम इ सब बनइले रहनी हा कि ते खुश हो जइबे की ऐतना दिन के बाद तोर पसंद के खाना और माई के हाथ के बनावल खाना तोरा मिली त लेकिन ते त दोसरे राग अलापत बारिस। आ इ हेलदी खाना का होला रे।”, कमला देवी चउक के कहली।
“देख मां, पहिले के बात कुछू अउर रहे, अब हम इ सब ना खानी, हमरा खातिर दुनू टाइम रोटी बनइह अउर सब्जी में तेल एकदम कम डलिह। हेल्दी खाना मने, ‘बिना तेल – मसाला वाला खाना। समझलू। ‘”, मनुआ कहलस।
“छोटकी सुन तोर काम बा रोज हमरा खातिर एक प्लेट सलाद काट दिहे,” एतना कहके मनुआ आपन कमरा में चल गइल।
दिन के खाना – पीना करके सब कोई सुत गइल, सांझ के सबकोइ एक संगे चाय पिये बइठलस त मनुआ कहलस, माई अभी तक हमरा कमरा के पलंग ओहिगे बा, हम सोचले रहनी की नया पलंग खरीद लेहले होखब लोगीन, लेकिन उहे पुरान पलंग बा, तनी स्टैंडर्ड लिवाव लोगिन।
मनुआ के बात सुनके रामेश्वर जी समझ गइलन कि बबुआ के शहर के हवा लाग गइल बा, जहां आपन रहन – सहन नीचे स्तर के बबुआ के लागे लागल बा। रामेश्वर जी सोचलन की इ सोच के मनुआ के अंदर से निकाले के पड़ी ना त इ हमेशा हीन भावना से ग्रस्त रही और ऐकर बढंति ना होई। तबे केवाड़ खटखटईला के आवाज अइलस। केवाड़ी खोलला पर रमेश रहूएं। रमेशवा, मनुआ के बचपन के दोस्त ह, ओकरा पता चलल की मनुआ शहर से आइल बा त ओकरा से मिले चलल आइल।
रामेश्वर जी, मनुआ के आवाज लगइलन, “मनुआ देख रमेशवा तोहरा से भेंट करे आइल बा। ”
मनुआ अपना कमरा से अइलस और रमेशवा के देख के कहलस, हाय रमेश हाउ आर यू?
“हम त ठीक बानी, तहरा का हो गइल बा? जे हमरा संगे इंग्लिश छाटे लगलअ। भोजपुरी में बोल।”, रमेशवा कहलस।
“यार, ते बाहर रहके भी गंवारे रह गइले।”, मनुआ कहलस।
“यार तोरा अइसन लागता, जहां के जइसन भाषा उंहा ओहीगनी बोलेनी,  एकरा मतलब इ थोड़ी बा की हमरा हिंदी अउर इंग्लिश बोले ना आवेला। लेकिन आपन भाषा में बोलल -बतियावल के एगो अलगे मजा बा, सुकून बा। ते ना समझबे काहे की तोहरा आपन जगह से प्रेम नइखे।”, रमेशवा कहलस।
रमेशवा कुछ देर बइठल अउरी चाय पी के चल गइलस। ओकरा गइला के बाद मनुआ कहे लागल, “देखतानी पापा आ क्लास में फेल आवे आ ऐतना डिलिंग देके चल गइलस।”
“बबुआ लेकिन रमेशवा, जओनो बात कहलस एकदम सही कहलस ह। आपन भासा, आपन बोली के कभी हीन भावना से ना देखेके चाही।”
पापा एगो बात बताई की भोजपुरी भासा में का हमनी के आपन कैरियर बना सकतानी सन?
“बेटा, इ बोल – चाल के भाषा ह, क्षेत्रीय भासा ह। एगो बात बताव कि अगर तू कलेक्टर बनके एइजा अइबअ, चाहे कउनो अउरी जिला में नियुक्ति पा लेहब, त का तू गरीब लोग, अनपढ़ लोग से इंग्लिश आ हिंदी में बतीयइब त उ तहार बात समझी? ना नू! ओकरा से तहरा उ क्षेत्र के भासा में ही बतियावे के पड़ी तब जाकर उ सब लोग तहरा से जुड़ाव महसूस करी। तहरा सामने आपन समस्या रखी।”, रामेश्वर जी समझइलन।
मनुआ, बाबूजी के बात सुनके गंभीर हो गइल, आ कहलस,” बाबूजी हमरा के माफ कर दी, हम राउर बात समझ गइनी। बाहर रहके, हमार बुद्धि भ्रष्ट हो गइल रहल ह। अब हम समझ गइनी कि काहे बंगाली, बंगला और गुजराती, गुजराती में बतियावे लनसन। हमनी के ही बाहर आपन भासा में बतियावे से कतरानी सन सायद इ हमनी के सोच के कारण एंग भइल बा कि अगर स्टैडर बनके के बा त हिंदी ना त इंग्लिश ही बोले के चाही। लेकिन आज हम समझ गइनी की स्टैडर बढ़ावे के खातिर आपन भासा से जुड़ल रहे के चाही। काहे की हमनी के भासा ही हमनी के असली पहचान ह।”
मनुआ के बात सुनके रामेश्वर जी के दिल के बोझ हल्का हो गइल। आ उ ओकरा के बहुत आशीर्वाद देहलन।

 

 

प्रगति त्रिपाठी

सिवान ( बिहार)

ईमेल आईडी – kumaripragati1988@gmail.com

 

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