अइसे साल के बारहो महीना के आपन महत्व होला बाकिर साल के अंतिम महीना फागुन आ पहिला महीना चइत के रंग – राग आ महातम अनोखा बा।इहे देखि कहल जाला कि साल में से ई दूगो महीना फागुन आ चइत के निकाल देल जाय त साल में कुछ बचबे ना करी। फागुन आ चइत ना रहित त लोक जीवन में रस रहबे ना करित। फागुन के होली, फगुआ आ चौताल आ चइत के चइता,चैती आ घाटों के गूंज से भक्ति आ भौतिक दूनों रस के संचार लोक में होला। रस…
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तीन गो कविता
१ कारगर हथियार कोर्ट – कचहरी कानून थाना – पंचायत कर्मकांड के आडम्बर धर्म आजुओ बनल बा आमजन के तबाही के कारगर हथियार सबसे बिगड़ल रूप में साम्प्रदायिकता साम्प्रदायिक तानाशाह के दरवाजे बइठ आपन चमकत रूप निरख रहल बिया कारगर हथियारन के बल बढ़ल आपन सौंदर्य के। २ छलवा विकास जमीनी स्तर पर कम कागज पर चुनावी दंगल में अधिका लउकत बा बाजारवाद, भूमंडलीकरण उदारीकरण के पेट से उपजल विकास के देन ह दलित, स्त्री, आदिवासी आ पर्यावरण समस्या विकास के गोड़ तऽ कुचलल जा रहल बा गरीब, दलित मजदूर,…
Read Moreगाछि ना बिरिछ आ सुझेला हरियरी
पहिले चलीं जा गाँव घूम आईंजा।खेत – बधार के छोड़ीं महाराज घरे – दुआरे, आरे – पगारे, नदी – नाला के किनारे, मंदिर के अंगनइया, ताल – तलैया – नहर के पीड़ प,सड़कि के दूनों ओरि, कहे के माने जेने नजर दउराईं गाछि – बिरिछ, बाग – बगइचा लउकत रहे गँउवा में, धान- गेहूं- बूंट- खेसारी से भरल हरियर खेतन के त छोडीं। हरियरी के माने ई होला।गाँव से सटलको टोला ना लउकत रहे बगइचन के कारण।गँउवा आजुवो ओहिजे बा बाकिर गाछि – बिरिछ – बगइचा गायब। रसोइयो में साग…
Read Moreसामाजिक संबन्धन के सघनता से जनमल साहित्य के सिरिजना करेवाला साधक द्विवेदी जी
लोक संस्कृति किताब में लिखल बात ना होखे, जिनिगी के ऊंच – खाल राह में अविरल बहत रहेला। अपना परिवेश खातिर बोलल – लिखल – दरद के अनुभव कइल लोक के बात कइल ह। सामाजिक संबन्धन के सघनता के गर्भ से लोकवार्ता के जन्म होला जे अपना में घर, परिवार, समाज, गांव, जनपद, राज्य आ देश समेटले रहेला। व्यष्टि के ना समष्टि के बात करेला। भोजपुरिया समाज ‘ मैं ‘ ना जाने।, हम जानेला, लोक जियला, , समष्टि बुझेला। भगवती प्रसाद द्विवेदी लोक…
Read Moreस्मृति में बसल गाँव के कहानी के बहाने लोक-संस्कृति आ जिनिगी के बयान
दो पल अतीत के ( मेरा भी एक गाँव है) हरेराम त्रिपाठी ‘ चेतन ‘ के हिन्दी में सद्य प्रकाशित पुस्तक जब हाथे आइल त ई जान के खुशी भइल कि एह संस्मरणात्मक कथेतर गद्य के माध्यम से एगो विद्वान भोजपुरिया आ उनुकर गाँव के नजदीक से समझे बूझे के मिली।दू दिन में किताब एक लगातार पढ़ गइला के बाद ई देखे के मिलल कि किताब भले ई हिन्दी में बा बाकिर पन्ना – पन्ना में भोजपुरी के सुगंध बिखरल बा।ई किताब अगर भोजपुरी में रहित त भोजपुरी साहित्य खातिर…
Read Moreसामाजिक आ राजनीतिक विद्रूपता के खिलाफ के स्वर: गोरख के गीत
गोरख यानी गोरख पाण्डेय।हँ, उहे गोरख पाण्डेय जेकर गीत ‘ समाजवाद बबुआ, धीरे – धीरे आई ‘ आ ‘ नक्सलबाड़ी के तुफनवा जमनवा बदली ‘ गाँव के गली से दिल्ली के गलियारा तक अस्सी के दसक में गूंजत रहे। उहे गोरख पाण्डेय के गीतन पर हम इहाँ बात कइल चाहतानी। गोरख पाण्डेय के जीवन काल में उनुकर रचल गीत संग्रह’ भोजपुरी के नौ गीत ‘ प्रकासित भइल रहे।एकरा अलावा जहाँ – तहाँ उहाँ के भोजपुरी रचना छपल रहे। श्री जीतेन्द्र वर्मा ‘ गोरख पाण्डेय के भोजपुरी गीत ‘ नाम से…
Read Moreचन्द्रेश्वर के ‘हमार गाँव’: हमरो गाँव
भोजपुरिया माटी उहो गंगा के किनार के पलल बढ़ल हिन्दी के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.चन्द्रेश्वर के भोजपुरी के कथेतर गद्य ‘हमार गाँव’ पढ़ के लागल कि रोजी- रोटी के तलाश में शौक भा मजबूरी में भले गाँव छूट जाला ,देह से भले दूर चल जाला बाकिर मन में गाँव मुए ना,मन से ऊ गाँवे के रहेला। माटी से जुड़ल साहित्यकार चाहे भा ना चाहे ओकर साहित्य गाँव, माटी आ खेत के सौंध महक से सनाईल रहेला। एगो विशेष बात ‘हमार गाँव’ में चन्द्रेश्वर जी खाली गाँव -घर , टोला- परोसा,खेत –…
Read Moreवेलेंटाइन
उठ ना अब ले सुतल बाड़ू। जाड़ा पाला में का तंग कइले बानी ।बेर बिहान होखे ना दीं। सुरसतिया के माई जल्दी उठ आज हमार वेलेंटाइन ना बनबूं। रउवो आपन उमीर ना देखीं ।एह उमर में कबो रेखा तो कबो हेमा मालिनी के शौख जाग जाता।ई वेलेंटाइन कवन भूतनी के नाम ह ? कवनो नया हिरोइन पर नजर पड़ल ह का ?काल सुरसतियो कह तहे कि माई काल एक सौ रूपिया दिहे वेलेंटाइन दिन ह। आज कल के लइकन कहियो माई दिवस, कहियो बाप दिवस मनावते बाड़न सं बाकिर एह…
Read Moreभोजपुरी साहित्य : प्रकाशन अउर विपणन एगो गंभीर समस्या
भोजपुरी साहित्य के माध्यम लोक भाषा ह,जे समाज के देन ह।राजाश्रय के आभाव मे भी अपना भाषायी संस्कृति अउर लोक जुड़ाव के आधार पर साहित्य के क्षेत्र मे दमदार उपस्थिति दर्ज कर रहल बा।आज के ऐह आर्थिक अउर डीजीटल युगो मे प्रकाशन अउर विपणन के अभाव मे भोजपुरी साहित्यकार घर के आटा गील कके आपन रचना समाज के आगा परोस साहित्य भंडार भर रहल बाड़न।ई सही बा कि कैलिग्राफी भारत के देन ना ह। ई त श्रुति अउर स्मृति के देश रहल हा।आपन याद के लेखनी मे बदलला पर अदभुत…
Read Moreकिशोर के कवित
१ नाक नाक के सवाल रहे आपन ना खानदान के, कान पर गइनीं आँख अछइत, सब करम हो गइल नाक ना बाँचल। २ जाल आदमी आपन हाथे आपन पाँखि काटी आपन बीनल जाल में आज अझुराइल फँसल छटपटात बा, जाल बिछवले रहल हा दाना डलले रहल हा अनकरा खातिर, बाकिर ई का ! दाना के चक्कर में खुद के जाल में खुदे फँस गइल। ३ मजहब मजहब कौनो होखे ना सीखावे बँटवारा। हमनी का अपने के ना जानवर , फूल, पक्षियो…
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