गीत

मन सून-सून मनसून बिना। अबले ताले कमल खिलल ना तन लागेला खून बिना। एक तऽ अदिमी अइसे जरना हिया भरल अंगार ऊपर से सूरुज दहकावे हो के माथ सवार भाव बिना सूनी कविताई खत सूना मजमून बिना। नदी मात के छाती सूखल भूखे शिशु छपटाय पेड़ लता के बाँचल ठठरी कब जाने भहराय जोजन भर उड़ि गइली चिरई भहरइली जलबून बिना। बेना लिहले बइठल के ना? हँउकत हाथ पिराय तबहूँ टपटप चुवे पसेना गगरी भरि-भरि जाय बुढ़िया दादी अटपट बोले तन अँइठाइल नून बिना। उमख उड़ावे ईत्तर जइसन नींनि आँखि…

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बनउवा रूप तहरा

दहके पलास फूल जिया डहकावे हो। बनउवा रूप तहरा हमरा ना भावे हो॥   सोरहो सिंगार ओढ़ि ललखर चुनरिया गाँव नगर होत आइल सइयाँ दुअरिया गोरिया के नखरा जिया ललचावे हो। बनउवा रूप—–   घर अँगनइया में धप-धप अँजोरिया टटके सजल बाटे ललकी सेजरिया गजरा गुलाबी गोरी जिया बहकावे हो॥  बनउवा रूप—–   रूसियो के  फूलल नाहके कोहनाइल पजरा पहुँचि गोरी नियरा  ना आइल उपरल हिया में सूल जिया दहकावे हो॥ बनउवा रूप—–   जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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बरम बाबा

राउर महिमा रउरे जानी हम ना जानी मरम बाबा का का गाईं बरम बाबा॥   रउरे किरपा सोनरा के घर पसरल मजगर उजियारी पूजन अरचन करि करिके दीहलस कुलवा तारी।   जियत जिनगी करम करत मानि आपन धरम  बाबा। का का गाईं बरम बाबा॥   पहिले दिनवाँ कटत रहे जइसे तइसे,बाँची पतरा तहरे दीठि से पूरन भइल मुंसी से मालिक के जतरा   आँखि खुलल सनमान बढ़ल नइखे कवनों भरम बाबा। का का गाईं बरम बाबा॥   सरधा जेकर बा तहरा में किरपा ओपर बरसावेला ओकरे किरती के अँगना अँजोरिया…

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गीत

मुदित मगन मन देखे बलजोरी , खेलतारे राम राजा सिया संग होरी।   नगर अयोध्या झूमे झूमे त्रिभुवन हो , झूमे कैलाश शिव शक्ति के गन हो । राधा मगन कान्हा गोकुला के गोरी , खेलतारे राम राजा सिया संग होरी ।   ब्रह्मा जी झुमे लेके नारद के संग हो , विणा बजावे माई शारदा मगन हो । विष्णु मगन बनी लचकत छोरी , खेलतारे राम राजा सिया संग होरी ॥   उडे गुलाल बा रगांईल अंगे अंग हो , धरती रंगाईल बा रंगाईल गगन हो । साधु संयासी…

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कुल्हि हमरे चाही

हमही त बानी असली राही कुल्हि हमरे चाही।   हमही से उद्गम हमरे में संगम धमकी से करब हम उगाही कुल्हि हमरे चाही।   हमरे से भाषा हमरे से आशा छपि के देखाइब खरखाही कुल्हि हमरे चाही।   हमही चउमासा बुझीं न तमासा खम खम गिरिहें गवाही कुल्हि हमरे चाही।     जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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गीत

सुखि गइलें पोखरा आ जर गइलें टपरी , ए बदरी । कउना बात पे कोहाइ गइलू ए बदरी । देखा पेड़वा झुराई गइलें ए बदरी । बनरा के पेट पीठ एक भइलें घानी । कहा काहें होत बाटे राम मनमानी । गोरुअन के बेटवा क पेटवा ह खपरी , ए बदरी । कउना बात पे कोहाइ गइलू ए बदरी । देखा पेड़वा झुराई गइलें ए बदरी । संझवा बिहनवा में कमवा न सपरी । होते दुपहरिया भुजाई जालीं मछरी । नदिया में अगिया लगाई देलु जबरी , ए बदरी ।…

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मध दुपहरिया

सप सप चले ले लुअरिया हो सखि ! मध दुपहरिया। कइसे बचाईं जवरिया हो सखि ! मध दुपहरिया॥   एकहू बाग बगइचो ना बाचल नदी नार पोखर नइखे सवाचल बन्हओ क टुटल कमरिया हो। सखि ! मध दुपहरिया॥   हरियर बनवा सपन होई गइलें सहर आ गउवाँ प्रदूषित भइलें गरमी के बढ़ल कहरिया हो। सखि ! मध दुपहरिया॥   चिरई चुरमुन के असरा बिलाइल बिरवा के  सँगे कियरियो सुखाइल घरवो में डाहे लवरिया हो । सखि ! मध दुपहरिया॥     जयशंकर प्रसाद द्विवेदी 5/6/2022

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रूस युक्रेन युद्ध

धरती अकास सब जरे लगल शोला बरसावल बन्द करऽ रोकऽ बिनास कऽ महायुद्ध अब आगि लगावल बन्द करऽ। अंखियन से लोहू टपक रहल बिलखे मानवता जार-जार हरियर फुलवारी दहक रहल धधकत बा मौसम खुशगवार अबहूं से आल्हर तितलिन कऽ तूं पांख जरावल ‌ बन्द करऽ । बनला में जेके बरिस लगल हो गइल निमिष में राख-राख भटकेलन बेबस बदहवास बेघर हो-होके लाख-लाख अबहीं कुछ जिनगी बांचल बा तूं जहर बुझावल बन्द करऽ। निकली न युद्ध से शांति पाठ ना हल होई कवनो सवाल धरती परती अस हो जाई भटकी ज़िनगी…

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गीत

माई-बाबू से ना बढ़ि के देवता पितर हवें हो इहे हवें सोना चानी ऊ त पीतर हवें हो ! माई के अँचरा सरगवा के सुखवा बबुआ खातिर ऊ सहेली सभ दुखवा सभ तिरिथन से बढ़ि के पवित्तर हवें हो ! बाबूजी त सपनो में राखेलें आकाश में सुखवा जुटावे सभ भुखियो पियास में इहे देलें छत्तरछाया ऊ त भीतर हवें हो ! धरती से बढ़ि के ह माई के धीरज बाबूजी चाहेलें बबुआ बने हमार नीरज ईहे जिनिगी के दाता ईहे मित्तर हवें हो ! देवता ई अइसन कि कुछुओ…

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उतार गइल मुँहवा क पानी

करिया करम बीखि बानी उतार गइल मुँहवा क पानी॥   कतनों नचवला आपन पुतरिया लाजो न बाचल अपने दुअरिया नसला इजत खानदानी । उतार गइल मुँहवा क पानी॥   झुठिया भौकाल कतनों बनवला बदले में लाते मुक्का पवला मेटी न टाँका निसानी उतार गइल मुँहवा क पानी॥   साँच के बचवा साँचे जाना नीक आ नेवर अबो पहिचाना फेरु न लवटी जवानी उतार गइल मुँहवा क पानी॥   अब जे केहुके आँख देखइबा ओकरा सोझा खुदे सरमइबा कइसे के कटबा चानी उतार गइल मुँहवा क पानी॥ जयशंकर प्रसाद द्विवेदी 31/03/2022…

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