तेल पिला के राखीं लाठी
सभ देखी तेल के धार ।
हम मुखिया के पटीदार।
जीत क पगरी हमरा माथे
रक्षक बनि डोलीं हम साथे
हूँ-टू होखे कतौ कबों जे
सुधरि के उपरे हमरा पाथे।
हम बड़का हईं जुझार।
हम मुखिया के पटीदार।
बरिस पाँच जे गुन गन गावै
बदले मोट मलाई पावै
सोझा रखि आपन अपनापा
आँखि मुनी के मान बढ़ावै।
बस उहवें दिखे बहार।
हम मुखिया के पटीदार।
कलेक्टर के पी ए लेखा
बनल भौकाल जहाँ क देखा
गली मोहल्ले जय-जयकार
माथ दिखे ना कउनों रेखा।
झंखै सभ रूप निहार ।
हम मुखिया के पटीदार।
मिलत हमै सम्बोधन असली
मुखिया जी बइठे धरि पसली
जलवा के झंझावत सगरों
सभेले उपर चमके नकली ।
सभ ओकरे पर निसार ।
हम मुखिया के पटीदार।
- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी