सवाल अपना जगे
खड़ा रहेला
खड़ा रही
जे भागेला
सवाल से
सवाल ओकर पीछा
परछाईं जस करेला
काहे कि सवाल
आपने उपराजन होला
सामने बस ठाढ़ करेला
कबो केहू त कबो केहू।
[2]
सवाल से भागे वाला के
ना बुझाला कि ऊ
जिनिगी से भाग रहल बा
आ ढो रहल बा लाश
बस अपने जिनिगी के।
[3]
सवाल दोसरा के
पूछे के मौके ना मिले
जब कवनों आदिमी
अपना बारे में
अपने से पूछ लेला सवाल ।
[4]
सवाल कबो ना मरे
ऊ पीछा करत
जीयल मुहाल कर देला
सवाल से कतरात
मनई कबो चैन से ना रहे
बाकिर सवाल से कतरात
केहू- केहू का आदत बनि जाला
कवनों पागल लेखाँ
अपना कतरइनी का दुनिये में रमल
शुतुरमुर्ग बनल जीये के।
बाकिर सवाल शुतुरमुर्गो
के जिनिगी पर भारी पड़ेला
सवाल तब ले ना मरे
जब ले ओकरा साफ हियरा से
सही-सही जबाब ना मिल जाव।
[5]
सवाल पूछेवाला जानेला
कि ऊ बेचैनी आ बिखियाहट के
मोल ले रहल बा
बाकिर तबो ऊ सोचेला कि
बिना सवाल के
जड़ जमीन में
सपना ना बोआ सके
एह से हर तरे के खतरा उठाइयो के
सवाल पूछल ना छोड़े।
[6]
बहुत आसान होला
सवाले से सवालन के मारल
बाकिर ई भरम होला
सवाल कबो ना मरेला
ऊ सपना बोइये के चैन पावेला।
[7]
सपना के सौदागर
लोभ-लाभ परोस के
ओकरा मउअत के उत्सव
मनावे के चाहेला
बाकिर सपना आ सवाल
कबो ना मरे
पूछवैया आ रोपनिहार
बदल जालें!
-सुनील कुमार पाठक
पटना