आखर-आखर गीत’ के आवरण के ऑनलाइन लोकार्पण सम्पन्न भइल

भोजपुरी के लोकप्रिय रचनाकार जयशंकर प्रसाद द्विवेदी के  तीसरकी किताबि ‘आखर-आखर गीत’ के आवरण के ऑनलाइन लोकार्पण कई दिन पाछे ‘सर्व भाषा ट्रस्ट’ के आभासी मंच फेसबुक आउर यूट्यूब पर लाइव कइल गइल। कार्यक्रम के शुरूआत डा. रजनी रंजन के  सरस्वती वंदना से भइल । कार्यक्रम के अध्यक्षता सर्वभाषा ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री अशोक लव कइलें आ  मुख्य अतिथि सुभास पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अशोक श्रीवास्तव रहलें। कार्यक्रम का सफल आ प्रभावी संचालन डा. सुमन सिंह संपन्न कइली। मुख्य वक्ता का रूप में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रवक्ता डा. मुन्ना…

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हमार बिरना

जेई पर भइलन शहीद हज़ार बिरना छोड़िहैं वनके ना तनिको हमार बिरना॥   आगे बढ़ी जब चीन पाकिस्तान बिरना मरिहें छीन लिहें सबके परान बिरना । छोड़िहैं वनके ना तनिको हमार बिरना॥   जम्मू से लेके हमार कन्या कुमारी सिन्ध से लेके बंग्ला हमरी दुआरी एक भारत एक धरती हमार बिरना। छोड़िहैं वनके ना तनिको हमार बिरना॥   अलगै बा भाषा अलगै हमरी बा बोली प्यार से पगल हम सबही के टोली आँख लिहैं दुश्मन कै निकार बिरना। छोड़िहैं वनके ना तनिको हमार बिरना॥   गीता कुरान हमरै बसल परान…

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गिरगिट

सोझ हराई में साजिश के बुनत रहल बिखबेली जे, काहे दुन कुछ दिन ले भइया, बाँट रहल गुर भेली से। ढलल बयस तबहूँ ना जानसि अंतर मुरई गाजर के, रँहचट में सोना के सपना आन्हर काढ़सि काजर के। जेकर बगली फाटल रहुवे हाथे रखल अधेली से। जे बघरी में फेंकत रहुवे सँझहीं से कंकर पत्थल, अन्हियारे के मत्थे काने सबद पसारल अनकत्थल। आजु-काल्हु ना जाने काहे उलुटे बाँस बरेली से। जुर्जोधन के मत भरमइलसि ठकुरसुहतियन के टोली, जरल जुबाँ कइसे कस माने भनत फिरस माहुर बोली। गांधारी के आँखे झोंपा…

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मम्मा

आपन रीति आपन नीति आपन करम भुला गइलन। देखs घरवाँ रार मचावे शकुनि मम्मा आ गइलन॥2॥   सोचलन उहवाँ होई का,का करत होइहें ओहनी फाँका। देखलें जरत घीव क दियरी चउकठ लँघते बउरा गइलन॥ देखs घरवाँ रार मचावे शकुनि मम्मा आ गइलन॥2॥   बाबू-माई कबों न बुझलन भाईन के भाई न समुझलन बहिनो घरवाँ फाँड़ करावे दिन अछते हहुआ गइलन॥ देखs घरवाँ रार मचावे शकुनि मम्मा आ गइलन॥2॥   घर वालन के ठेलि भुइयाँ हित-मीत ला इनरा-कुइयाँ अपने नीमन खाट पकड़ि के लोटs खातिर अगरा गइलन॥ देखs घरवाँ रार मचावे…

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सम्पादन टीम

संरक्षक रामप्रकाश मिश्रा, अकोला उपाध्यक्ष महाराष्ट्र प्रदेश, भाजपा (उत्तर भारतीय मोर्चा) अशोक श्रीवास्तव (गाजियाबाद) अनामिका वर्मा (भोपाल) प्रकाशक आ सम्पादक जे. पी. द्विवेदी (गाजियाबाद) कार्यकारी सम्पादक डाॅ. सुमन सिंह (वाराणसी) साहित्य सम्पादक केशव मोहन पाण्डेय (दिल्ली) सहायक सम्पादक डाॅ. ऋचा सिंह (वाराणसी), सुनील सिन्हा (गाजियाबाद), डाॅ. रजनी रंजन (झारखंड) सरोज त्यागी (गाजियाबाद) सलाहकार सम्पादक मोहन द्विवेदी (गाजियाबाद), कुलदीप श्रीवास्तव (मुंबई) तकनीकी – एडिटिंग – कम्पोजिंग सोनू प्रजापति (गाजियाबाद) छाया चित्र सहयोग आशीष पी मिश्रा (मुंबई) प्रकाशन: सर्व भाषा ट्रस्ट, नई दिल्ली

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लोरी गीत

जाईं हम लोभाय हो, बबुअवा के मुसुकी पर। केई पुचकारे, केई अंगे लगावेले अंगे लगावेले, अंगे लगावेले 2 केकरा अँचरवा नीचे,2 जालें लुकाय हो बबुअवा के मुसुकी पर। जाईं हम लोभाय हो, बबुअवा के मुसुकी पर।   माई पुचकारे, बाबू अंगे लगावेले अंगे लगावेले, अंगे लगावेले 2 दादी के अँचरवा नीचे,2 जालें लुकाय हो बबुअवा के मुसुकी पर। जाईं हम लोभाय हो, बबुअवा के मुसुकी पर।   केई किलकावे, केई लहकि बोलावेले लहकि बोलावेले, लहकि बोलावेले 2 केकरा सुरतिया देखि,2 जालें अघाय हो बबुअवा के मुसुकी पर। जाईं हम लोभाय…

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भोजपुरी गीत के भाव-भंगिमा

कविता के बारे में साहित्य शास्त्र के आचार्य लोगन के कहनाम बा कि कविता शब्द-अर्थ के आपुसी तनाव, संगति आ सुघराई से भरल अभिव्यक्ति हऽ। कवि अपना संवेदना आ अनुभव के अपना कल्पना-शक्ति से भाषा का जरिये कविता के रूप देला। कवनो भाषा आ ओकरा काव्य-रूपन के एगो परंपरा होला। भोजपुरी लोक में ‘गीत’ सर्वाधिक प्रचलित आ पुरान काव्य-रूप हऽ। जेंतरे हर काव्य-रूप (फार्म) के आपन-आपन रचना-विधान, सीमा आ अनुशासन होला, ‘गीतो’ के बा। दरअसल गीत एगो भाव भरल सांकेतिक काव्य-रूप हऽ, जवना में लय, गेयता आ संगीतात्मकता कलात्मक रूप…

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मुफ़लिसी में चमकल नगीना-हीरा प्रसाद ठाकुर

साहित्य के अखाड़ा मे कुछ अइसनो  कवि आ लेखक पहलवान पैदा भइलें,जे ‘स्वांतः सुखाय’ खातिर आपण कलाम दउरावत रहलें आ अपना कृतिअन के प्रकाशन आर्थिक लाभ के दृष्टि से ना बलुक सेवा भावना से करत रहि गइलें आ उ ग्लोबल हो गइलें।ओइसनें हिन्दी आ भोजपुरी के सुपरिचित गीतकार कविवर ‘हीरा प्रसाद ठाकुर’ जी रहनीं। उहाँ के भोजपुरी साहित्य के मुख्यधारा से एकदमे अलग-थलग। पाटी-पउवा से कोसहन फरका। पत्र-पत्रिकन से कवनों मतलब ना। सोरहो आना स्वतंत्र। नदी के बहाव लेखा उन्मुक्त रहिके आपण लेखनी गोदनी। ‘माटी के आवाज’ नामक कविता संग्रह…

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महापण्डित राहुल सांकृत्यायन

ई दुनिया बड़ बे; बहुत बड़ औरी एतहत बड़हन दुनिया में जाने केतने लोग बाड़ें औरी जाने केतने लोग पहिलहूँ ए दुनिया में रहल बाड़ें लेकिन कुछ नाँव लोगन के मन में ए तरे घुस जाला कि ओकरा खाती समय के केवनो मतलब ना रह जाला। औरी ओह हाल में बकत आपन हाथ-गोड़ तुरि के बइठ जाला। चुपचाप। अइसन लोगन क नाँव औरी काम एक पीढी से दूसरकी पीढी ले बिना केवनो हील-हौल पहुँच जाला। कुछ अइसने लोगन में एगो नाम बा महापण्डित राहुल सांकृत्यायन जी कऽ जिनकर साहित्य में…

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