मरछिया अपने त सात गो लइका के मार कै भइल रहै .. जनमते महतारी घुरा पर फेकवा दिहली ..कौदो दे कै किनली ..बड़ा टोटरम पर .मरछिया जिएल ..मरछिया धीरे-धीरे सेयान होखे लागल ..जवानी उफान मारत रहे ..”इजवानी केकरा कस में बा ..मरछिया एकदम गोर भभुका रहे रहे ..आओठ लाल-लाल ..नकिया सुग्गा के ठोर अइसन चोख ..अँखियांमें बुझाए काजर कईल बा ..केसिया टेढ़ टैढ़ घुंघराला बुझाए करिया घाटा ह..माने छाछाते देवी कै मूरत ..देह के उतार चढ़ाव गजब के .. चाल मस तानी ..चोटिया नागिन खनिया अँखिया बुझाए दारु पियले बिया…
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अन्हरिया में अंजोरिया
केतना दिन जमाना के बाद आज ए पेड़ा से सुरसती के जाए के मउका मिलल बा।बगईचा के झिहिर-झिहिर बेयार बड़ा सोहावन लागत रहे।बरियारी गडि़वान के रोकवाए के मन रहे।बाकिर अन्हार हो जाइत त बाटे ना बुझाईत।लइकाई के सगरी बात मन परे लागल।अमवारी के झुलुआ..भईंस के सवारी..पतहर झोंक के मछरी पकावल..डडे़र पर के दउराई..गड़ही में गरई मछरी के पकडा़ई..पुअरा के पूंज पर के चढ़ाई..फेन धब-धब गिराई.. लरिकाईं के एकह गो बात मन के छापे लागल।उहो का दिन रहे।मन के राजा रहनी सन। जइसही बैलगाड़ी सतरोहन भईया के दुआरी पर चहुंपल रोअना-…
Read Moreएक कप चाह
(हमार मूल fb पोस्ट के भोजपुरी रूपांतरण) —— ‘चाह’ जिनगी ह । ‘चाह’ एगो एहसास ह। ‘चाह’ विरह के तड़प ह । ‘ चाह’ मिलन के मिठास ह । आरा -बलिया -छपरा ह ‘चाह’ । ‘चाह’ भजपुर- रोहतास ह। ऋतु में वसंत आ माह मधुमास ह। तबे त सभका के पेय ई ख़ास ह। एही से केहू चाह के बारे में कहले बा- “तू पूनम हम अमावस, तू कुल्हड़ वाली ‘चाह’ हम बनारस” “अइसन ए गो ‘चाह’ सभका होखे नसीब ,कि हाथ मे होखे कप आ सामने महबूब” ‘चाह’…
Read Moreपगलो आजी
ओह दिने गाँव के प्राथमिक इस्कूल में कवनों बरात रुकल रहल।खूब चहल-पहल रहल।हमहन के घर के समनवे वाला खेत में तम्बू गड़ल रहल अउर बराती लोगन क खूब स्वागत -सत्कार होत रहल।लाउडस्पीकर पर ‘हाँथे में मेहँदी , माँगे सेनुर , बरबाद कजरवा हो गइल हो…।’ बजत रहल।ओहर समियाना में जेतने किसिम क गाना बजे एहर घर में आजी ओतने किसिम क गारी तजबीज के बाबा के आवभगत में लगल रहलीं।हम ओह समय कक्षा तीन में पढ़त रहलीं। न त गाना क महातम समझ में आवे न त गारी क।बस एतना…
Read Moreनिरमल गाँव
आज बुधना गाँव बड़ दिन लउटल बा। नयका कुरता पायजामा आ लाल गमछा ओढ के जइसहीं बस से उतरल, आपन भयाद लोग के देख के मुँह बिचकावत कहलस- ई का? हमनी के गँऊवा में सफाई अभियान ना चलऽता का? बोलते-बोलते आगे बढत रहे कि गोबरे पर गोर पर गईल ।हे भगवान! एहीसे त हम गँऊवा से भाग गईनी।माई बेराम ना रहित तऽ हम अइबो ना करऽतीं।चलऽ, पहिले गंगा जी चलऽ।नहा-धो के घरे जाइब। अबकी सब संघतिया के बुधना के वेबहार ठीक ना लागल।बाकिर बड़ दिन बाद संघतिया के अइला के…
Read Moreभउजी
हमरा पूरा जवार में एके गो भउजी रहली । बिजे भउजी। गाँव में भउजी , चाची, दादी ई सबलोगन के उनकरा ‘भतार’ के नाम से ही बोलावल जाला। आ सब नाम के साथे ‘वा’ आ चाहे ‘ईया’ लगा के बोलला से अपना निअन जनावेलन लोग। भईया हमरा सब गोतिया के बड़ बेटा हउअन। गाँव में बड़ लोग उनका के बिजइया आ छोट लोग बिजे भईया आ बिजे चाचा कहेलन। बिजे भईया सगरी जवार के छोट लइकन के देखनहार रहलन। उहे सभ लइकन के पढाई लिखाई आ चाहे अउरो कवनो बात होय…
Read Moreकरतब वाली मुनिया
“का बताई बाबुजी, हमरा खातिर त रउरे लोग भगवान बानी, जे हमर करतब देखी के कुछ पइसा दे देत बानी लो, हम नईखी जानत की अल्लाह के ह ss अउरी राम के हs, हमरा खातिर त ई दर्शक लोग ही राम अउरी अल्लाह हवे लोग”, करतब वाली कहलिन। थोड़ा सास लइके उ फिर कहली,”जब हमरा ,मुनिया के,अउरी ओकरा छोट भाई के, बाबुजी के भुख लागेला त हमनी के हाथ मेहनत खातिर उठे लागेला, निगाह बाजार के कोना तलासेला कि, जहवा करतब दिखाई जा अउरी दर्शक के भीड़ लागे, पइसा ज्यादा…
Read Moreहरिहरी काकी
भोरे भोरे फोन घरघड़ाइल त हरिहरी चाची कसमसात पलंग से उठ के ओकरे तरफ झटक के बड़बड़ात चलली- कवना के भोरे भोरे आग लागल बा।आजकाल ई फोनवो आदमी के जान पर बनहुक नियन गोली दागता।आरे आवतानी रे।तनी थिर हो रे बाबा।तोरा नियन हमरा में जान थोड़े भरल बा, जे हमहु घनघना के पहुंच जाइब। उमिर भइल। कहत कहत झटकले फोन उठवली- परनाम अम्मा! हम मनहरन। का भइल एतना भोरे भोरे तान कसले बाड़ऽ। आरे अम्मा! जरूरी बा।अबहीयें बम्बई जाये खातिर टरेन धरे के बा।एही से फोन कइनीहऽ। का भइल हो?…
Read Moreबड़ा बेआबरू भइनी ऐ गोरिया तोहरे खातिर
छठ के चार दिन पहिले इंदरासना के विदा करा के उनकरा भैया ले अइले, मय लइकिन के हुजूम रामचनर काका के घर में भीड़वाड़ कइ देली सन, केहू उनकर हाल पूछत बा, केहू मीठा पानी ले आवता त छोटकी भउजी परात में पानी भर के उनकर गोड़ धोवे लगली त केहू ससुरा से आइल छोरा छापी, खुरमी लड्डू टिकरी रामचरन काकी से पूछ पूछ के जगहा प सरिहावे लागल। अजब रिवाज होला गांव गिरान के , कवनो भेद ना कि के केकरा घरे कब जाइ कब ना जाइ कवनो टाइम…
Read Moreबड़की माई
ए बबुआ काल्ह जवन बाजारी से चीनी ले आइल रहस नु ओहमें हतना कम बा , बड़की माई तपेसर के हाथ में एगो झिटिका पकड़ा के कहली । बड़की माई त का सोचतारू हम चिनिया खा गइल बानी , अरे ना रे मटिलागाना बनिया नु डंडी मरले बा जाके ओकरा से देखइहे आगे से बरोबर दीही। आ फिर ओसहीं हो जाई त का करबु । ना नु होई ओकरा से लेबे से पहिले इयाद दिला दिहे कि पिछला बेर कम देले रह एह बेर ठीक से जोखिह । फिर दोसरा…
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