मैना

कबले रहबू परल अलोंता बेर भइल अब छोड़ऽ खोंता सोझां तोहरा आसमान बा देखऽ आंखि उघारऽ मैना अब त पांखि पसारऽ मैना ! कबों सांझि कबहूं दुपहरिया कबों राति डेरवावे अचके खरकि जाय पतई त सुतबित सांस न आवे बहुत ‌दिना अन्हियारा जियलू ना जाने केतना दुख सहलू सूरुज ठाढ़ दुवारे तोहरा बढ़िके नजर उतारऽ मैना ! केहू भोरावे दाना देके केहू जाल बिछावे केहू पांव में मुनरी डाले बेड़ी केहू लगावे पिंजरा के तूं नियति न मानऽ अबहूं अपना के पहिचानऽ गरे परल सोने क हंसुली ओके तोरि निकारऽ…

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गीत

बेसुरा कुछ लोग,लय क चासनी लेके खड़ा बा शब्द के फींचे सुखावे अरगनी लेके खड़ा बा/ रेलगाड़ी के सफर में दूर से सीवान देखे आंखि पर ऐना चढ़ा के झिरखिरी से चान देखे दिनकेउजियारे दिया भर चांदनी लेके खड़ा बा/ ककहरा भर पाठ पढ़िके रोज भासा ज्ञान बांटे राह जे चीन्हें न जाने राह क पहिचान बांटे आंखि ना दीदा ,समय क तरजनी लेके खड़ा बा/ पांव के नीचे न माटी माथ पर आकास ढोवे समय के रुख पर चले जे बहत गंगा ‌हाथ धोवे ऊ भगीरथ क कठिन तप…

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रूस युक्रेन युद्ध

धरती अकास सब जरे लगल शोला बरसावल बन्द करऽ रोकऽ बिनास कऽ महायुद्ध अब आगि लगावल बन्द करऽ। अंखियन से लोहू टपक रहल बिलखे मानवता जार-जार हरियर फुलवारी दहक रहल धधकत बा मौसम खुशगवार अबहूं से आल्हर तितलिन कऽ तूं पांख जरावल ‌ बन्द करऽ । बनला में जेके बरिस लगल हो गइल निमिष में राख-राख भटकेलन बेबस बदहवास बेघर हो-होके लाख-लाख अबहीं कुछ जिनगी बांचल बा तूं जहर बुझावल बन्द करऽ। निकली न युद्ध से शांति पाठ ना हल होई कवनो सवाल धरती परती अस हो जाई भटकी ज़िनगी…

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