नीक लागे नाहीं सावन क महीनवां ना।
दिनवां धूप बरियार रतिया गरम बयार,
बिस्तर भींजे तर तर चुवेला पसीनवां ना।।नीक0—
नइखीं बदरा देखात लउके निर्मल आकाश,
चंदा केलि करे पसरी गगनवां ना।।नीक0–
बहे झोरि पुरवाई, रहिया धूर उधिराई,
पानी बिना सून खेत ख़रिहनवां ना।।नीक0–
आइल सावनी सोमार धूप बाटे बेशुमार,
ब्रत मा सुखल जाला पानी बिनु परनवाँ ना।।नीक0—
नाहीं कोइलर क शोर सपना दादुर पपिहा मोर,
ओरिया चुवल नाही कबहुँ अगनवां ना।।नीक0—
छाँह नइखे छतनार सूनी निमियाँ के डार,
कतहुँ परे नाहीं बाग में झुलनवां ना।।नीक0—
काशी कन कन में शंकर सूखा पडलें भयंकर,
बरखा बिनु कैसे होखीहें नहनवां ना।।नीक0—-
बेल धतुरा चढ़ाई चला शिव के मनाई,
“लाल” भींजे बदे तरसें ललनवां ना।।नीक0—-
- हीरालाल द्विवेदी ‘लाल’