खेलगीत के तर्ज प

‘तीन तलक्का’ नवगीत ओम धीरज जी के भोजपुरी गीत-संग्रह ‘रेता पड़ल हिया में’ में संकलित बा। ओम जी हिंदी आ भोजपुरी में गीत लेखन में सक्रिय बाड़न।

ऊ उत्तर प्रदेश शासन के वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी रहलें। सेवामुक्त होके बनारस में रह रहल बाड़न।

बचपन के खेलगीत ‘ओक्का बोक्का तीन तड़ोका’ के तर्ज प रचल एह गीत में ऊ का कहल चाहत बाड़न, बूझे के जरूरत बा। ध्यान देवे के बात बा कि एह में तीन गो खेलगीत बा। शुरू में ‘ओक्का-बोक्का’ बा आ आखिर में ‘अक्कड- बक्कड़’। बीच में दोसर खेलगीत बा। ऊ ह राजा रानी आवेलें, पोखरा खोनावेलें। कहे के मतलब कि तीन तीन गो गीत के लेके एगो गीत रचल गइल बा।

खेलगीत के राजा-रानी अब नइखन आवे वाला। उनकर समय बीत गइल। बीतल समय के राग अलापल कहां ले ठीक बा! ओम जी कहत बाड़न कि ‘कब तक खेलब खेल!’ बात बहुत इशारा-इशारा में कहल गइल बा। बात बा कि जेकर खरिहान सबसे खाल में होला, ओकरा जादे झंखे के परेला। हलुको बूनी पानी में मय उपराजल कमाई बोथा जाए के खतरा होला। खाल खरिहान खास अर्थ में आइल बा। एह में किसान के सामाजिक आर्थिक हैसियत के बोध बा। केहू के छुट्टा सांढ अस विचरे के आजादी बा आ केहू के नाक में नथेल बा। के छुट्टा बा आ के हजार हजार दबाव में बा, कहे के जरूरत नइखे।

खेल में ‘अक्कड़ -बक्कड़ बंबे बोल’ गावल जात रहे। गीतकार ‘अक्कड़ बक्कड़’ छोड़ सीधे ‘बंबे बोल’ प आवे के बात करत बा। गीत के शुरू के आधा छोड़ आखिर के आधा गावे के बात करत बा। काहे कि सब उलट-पुलट गइल बा। सब केवाड़ी बंद होत जा रहल बा। निकसे के कुलि राह बंद,जियल मोहाल। कवि एह मुश्किल स्थिति में खिड़की खोले के संकेत करत बा।

विजेंद्र अनिल , सुरेश कांटक आ हरीन्द्र हिमकर भी खेलगीत के तर्ज प कुछ गीत लिखले बाड़न। ई गीत देखल जाए:

तीन तलक्का

ओक्का बोक्का

तीन तलक्का

कब तक खेलबा खेल!

सुना पंच क बात खलीफा

मत डांटा खरभान,

उहैं झंखी जेकर बाटे

धुर खाले खरिहान

लइया लाची

चन्नन काठी

कब तक पेरबा तेल!

अब ना अइहैं राजा रानी

पोखर नाहिं खोदइहैं

नाहीं ओकरी आरी पासी

इमली पेड़ लगइहैं

कब तक फेंकबा

राम क डंडा

लेके हाथ गुलेल!

अक्कड़ बक्कड़ छोड़ तमाशा

सीधे बंबे बोल

बंद केवाड़ी सोलह आना

तब्बो खिड़की खोल

केहु के छुट्टा सांढ बनइबा

केहु के नाथ नकेल!

कब तक खेलबा खेल!

 

-डॉ  बलभद्र

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