बोल बचवा – कुछो बोल

कुछ दिन से दादा जी बहुत याद आवत बाड़न। जब भी पुरान बात अतीत के सोचीला, ओकरा में दादा जी जरूर शामिल होखेलन। छुट्टी में जब भी शहर से दादा जी के पास जात रहनी, खूब बतकूचन होखे। हमरा से भर पेट तरह-तरह के बात पूछस। एके बतिया के घुरपेट के आगे बढ़ावत रहीं जा। गर्मी के छुट्टी एक महीना के होत रहे। दादा जी खाली बतिआवे में रहस, त दादी माँ के आपन अलग किस्सा रहत रहे। ऊ खाली खियावे बदे परेशान रहस। बबुआ ई खा ल, हऊ खा ल! दुधवा जरूर से पी लीह, तू जाऊन कह हम उहे बनाइब! आ दादा जी हमरा  के पकड़ खाली इहे पूछस-बबुआ आपन बात कह। स्कूल शहर के कौनो बात!

एक दिन हमार दोस्त संगतिया के साथ खेले के मूड भइल रहे कि बरामदे में दादा जी पकड़ लेलन – “आव बबुआ कुछो बतिआव, कुछो बोल!”

हम तुरन्त कहनी, “दादा जी, अब नया-नया बात कहाँ से ले आई! जेतना बात रहे ऊ त रऊआ के बता देनी। हमरा के छोड़ी, तनी बाहर से खेल आई। नया बात होखी त बताइब।”

दादा जी तुरन्त कहलन, “ऐ बबुआ। कुछो कह! अखोर-बखोर, झूठ-साँच, पुरनके बतिया में कुछ हेने-होने से फेंट-फांट के बोल… तू कौनो बात कहेल त हमरा सुन के बहुत अच्छा लागेला, बड़ा नीमन तरीका से तू कौनो बात कहेल। जब तू अपना शहर चल जईब तब तहार इहे सब बतिया हमरा याद पड़ेला अऊर हम खुश हो जाइला। हमरा ई बुढ़ापा में एकरा से बढ़कर खुशी अऊर कहाँ से मिली! आव बइठ हमरा पास, कुछो कह, जौन पहिले कह चुकल बाड़ ओकरे में तनी जोड़-घटाव कर दीहल कर…”

दादा जी के इ बात सुन के हम ठिठक गइनी। एक बुजुर्ग आदमी के केतना इच्छा होला कि ऊ अपना बच्चा, नाती-पोता के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बीता सके। दादा जी इ बात त जानते रहन कि हमार छुट्टी जल्दीये खत्म होखी अऊर हम अपना शहर चल जाइब। हमरा गइला के बाद उनकर मन केतना छटपटात होखी! तभी त कुछो अटर-पटर, आखोर-बखोर, झूठ-साँच, किस्सा-कहानी, अरकच-बथुआ हमरा मुँह से सुने के तैयार रहलन। बस्स इहे सोच की हमार पोता हमरा साथे ज्यादा से ज्यादा समय बीता सके…

इ घटना के दो दशक बीत गइल बा। दादा जी, दादी माँ दूनो आदमी अब इस दुनिया में नईखे लेकिन उनकर याद रोज पल-पल सतावेला। आज हम अपना शहर से बहुत दूर, सात समुन्दर पार विदेश के का कहीं कि विदेश की धरती छोड़ अपने धरती पर हमेशा विचरे ला। नौकरी-चाकरी, जीवनयापन का चक्कर बा, ना त आपन घर-दुआर केहू काहे छोड़ी!

काल रात सपना में दादा जी के देखनी। उनका के गोड़ छू के प्रणाम कइनी। अभी कुछ बोलती, उनकर हालचाल पुछती कि ओकरा पहिले दादा जी कह उठलन, “आव बबुआ। बहुत दिन के बाद भेंटाइल बाड़। कुछ कह, आखोर-बखोर, झूठ-साँच, अरकच-बथुआ, पुरनके बतिया में कुछ फेंट-फांट के बोल! तहार बोली सुनला केतना ढेर दिन हो गइल बा! बोल बचवा, कुछो बोल! तहार बोलिया बड़ी मीठ लागेला। उहे सुने खातिर तहरा पास अइनी हा। बोल बचवा-कुछो बोल!!”

हम कुछ जवाब देती ओकरा पहिले घबराहट में हमार नींद खुल गइल। दुबारा नींद ना पड़ल लेकिन उनका के याद करके बहुत देर रोवत रह गइनी…

 

माला वर्मा
हाजीनगर, उत्तर 24 परगना
पश्चिम बंगाल, 743135
मोबाइल : 9874115883

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