लोक-परलोक के संघतिया

दुलारी देवी के सज्जन सिंह से बिआह भइला 40 बरीस  खुल के ना बोल पावत रहली आ ना उनुका से नजर मिला सकत रहली।

उनकर खड़ाऊँ के खटर खटर सुनऽते उनकर घूघ नाक तक आ जात रहे। सज्जन सिंह से ऊ कुछुओ बोलऽतो बतिआवत रहली कि ना कहल मुसकिले रहे।

सज्जन सिंह बड़ी दम-खम वाला जमींदार के पूत रहलन।जमींदरई त माई-बाप संगही ओरा-बिला गइल रहे बाकिर ओकर असर सज्जनसिंह पर अजुओ खूब रहे। दुआर पर हरदम आसामी आ अंगना में औरतन के खेत खरिहान से आइल सामान के बटोरे-सटोरे के काम जब होखे त सज्जन सिंह के अंगना में दसन औरत काज करे। ओहघरी दुलारी देवी के साज-बाज आ गहना के ऊ खूब खयाल राखत रहलन। कबो-कबो त चुड़िहारिन, मनीहारिन आ रंगरेज तीनों के खुदहीं बोला के दुलारी देवी खातिर खरीददारी करवावत रहलन। आ दुलारी देवी उ सब पहीर के खूब इतरास।

ओह घड़ी हमनी के छोट रहनी सन। उनुका के बड़की माई कहत रहनी ।उ लइकन सभ के खूब दुलारस बाकिर सज्जन बाऊजी के देखते हमनी के अकिल हेरा जात रहे आ कुछ गड़बड़ हो जात रहे।एहीसे उनका से डाँट पड़ जात रहे ।ओकरे कारण हमनी के उनका के देखिये के आपन रस्ता बदल देत रहनी सन। उनकर चारो बचवा हमनी के चारो भाई बहन के जोड़ापारी के रहलन सन आ खूब हमहन में दोस्ती भी रहे। अब इहो एगो सोचेवाला बात रहे कि सज्जन बाऊजी कब अपना घर में ढुकत रहले कोई बूझ ना सकल काहेकि रोजे चार बजे भोरे ऊ बहरवें दालान में बइठ के रामायण गावस। ई एक तरह से एलारम रहे घरैतिन के उठावे के। ओही घड़ी आजीयो लाठी ले के टुघरत उनका लगे जाके बइठ जास आ उहो राग में राग मिलावस। फेर दुनो माई बेटा सुख दुख बतिआवस। जब चाय के बरतन के खटर-पटर होखे लागे त दुनो माई बेटा फेर भीतर जास। माई अपना खटिया पर आ सज्जन बाऊजी भंसार में।

बड़की माई भोरहीं नहा-सुना के लाल चटक साड़ी आ मांगभरके सेनुर पहिर के सज सँवर के भंसार मे भोरे भोरे रोज चाय बनावस। ओह घड़ी बड़का बाऊजी ओहीजे जाके चाय पीयस। चाय पीयत बड़का बाऊजी एके गो बात बोलस- राम किरिपा से भोर क दरशन आ चाय दुनो बढिया भइल बा।बाकियो ठीके कटी।एतना कहते बड़की माई के दुनिया जगमगा जात रहे।मुँह के मुसुकी घूंघटा से देख सज्जनो बाऊजी मुसकिया के निकल जास। ई कुल सभे देखत रहे बाकिर बड़ के लेहाज से कुछ कहत ना रहे।

सावन के महीना में जब मेला लागे त सज्जन बाऊजी के पहिलहीं से टेकसी के साज-बाज शुरु हो जात रहे।  मनीहरिनियो जानत रहे कि सज्जन सिंह के एह घड़ी छीलल जा सकेला। दुआर पर चुड़ी के दउड़ा रख के बोले- मलिकार के गोर लागतानी। मलिकाइन के हथवा में पुरनके चुड़िया रही का? सज्जन बाऊजी कहस- ई कुल हमरा के का कहतारे। भीतर जो।जे पसन्द होखे बोल दे ले लेस बाकिर हई हरियरका बड़ा नीक लागता अंगुरी से इशारा करस।का हो महेश? महेशवो धीरे कहे- हँ मलिकार खूब सुन्नर बा गोर हाथ पर खूब नीक लागी।सज्जन  बाऊजी डेहुरी के ओट से झाँकत आपन बहुरिया के हाथ निहरलन आ मुसुकिया दिहले ।। सकुचात लजात बड़की माई ओनहीं से तनी चोन्हा करत कहली- एजी! एतनो पुरान नइखे। रहे दीहीं।

बाकिर चुड़ीहरिनिया के आपन दोकान चलावे खातिर तनी नेह के गुड्डीया के रसरी फँसावे के पड़ल। उहो कहे लागल- ए मलिकाइन मालिक के सै-सै बसंत होखे।सोहाग के सामान के ना ना कहे के चाहीं। सज्जन बाऊजी ओकर बात सुन के कहलन- अरे ले लऽ। अब ई खलिहा जाई थोड़हीं। आ तनी अर-अनाजो दे दीह। जो-जो भीतर जो। इहां मरदन के बीच तोर जरूरत नइखे। एतना सुनते ठहाका बाहर लागे त भीतर पइसत मनीहारिन के देख के अंगना के मेहरारू सभ बड़की माई से चुटकी लेवे के शुरु कइली सन त भीतरो ठहाका उठे लागल।

घर भर के लोग चुड़ी पहिर लेहलस। अंत में बड़की माई ओही चुड़ी पर हाथ धइली जवना के बड़का बाबूजी नीक कहले रहलन। चुड़ी पहिरावत मनीहारिन कहली- ए जी मलिकाइन! रउरा दुनो परानी के मन एके बा।इहे मलिकारो के पसन पड़ल ह।  ओह घड़ी बड़की माई के गाल लाल हो जात रहे उ बस कहस- आरे पेन्हाव हाली से।ढेरे काम पड़ल बा घर में।

शिवरात के दिन दुअरा पर भोरहीं चारे बजे टेकसी पोछाये लागत रहे तऽ भीतर में पकवान छनात रहे। सबसे पहिले लइकन सभ के तइयार करके आ आजियो के साड़ी पेन्हा के बाहर खटिया पर लइकन सभ के संघे बइठा देस आ तब बड़की माई छानन बीनन कइला के बाद खुदे तइयार होखस। बाऊजी ओह घड़ी देर होत देख के बोलस- ई औरत सभ ना सुधरिहें ! का जाने कवन तइयारी होत बा । ओह घड़ी लइकन पर नजर पड़ेतऽ सभ ओहीजे खटिया पर लुढकल बाड़े सन। ऊ खुदे भीतर जाके देखस तऽ बड़की माई के रुप देखके टकटकी लगा के देखस आ जब बड़की माई के नजर उनका पर पड़े त कहस कि जाये के बा कि ना? एतना बोलत मुख पर जे चमक आ आँख मे नेह लउके बड़की माई ओह से आउर सकुचा जास झट से उनका पीछे चल देत रहली।

बड़की माई आ सज्जन बाऊजी के ई नेह के डोरी कइसे बन्हल रहे कि बुझेवाला के खूबे परेम लउके आ ना बुझेवाला के ऊ लोग रसहीन लागे। समय अइसहीं बीतत रहे। बेटा-बेटी सभकर चाकरी आ बिआह हो गइल।ऊ लोग धीरे-धीरे शहर में ही बसे के जुगाड़ कर लेहलस। अब दुनो परानी रह गइलन। शरीर भी थाक ग्इल रहे। अब दुअरा आ अंगना में ऊ रौनको ना बचल रहे। सज्जन बाऊजी त ठीक रहलन बाकिर बड़की माई लइकन से दूर होते धीरे-धीरे झंवान हो गइली।अंत में खटिया ध लेहली। लइका सभ अपना लगे ले जाये के चाहत रहे लोग ताकि शहर में बढिया इलाज करा सके बाकिर बड़की माई ना जाये के तइयार भइली। फेर गँवही के एगो आदमी आ मेहरारु के घर जोगे खातिर रख के लइका लोग लवट गइले। ऊ दुनो मरद-मेहरारू खूब मन से सेवा करत रहलन। सज्जन बाऊजी भी बड़की माई के समझइले पर बड़की माई उनका के छोड़ के जाये ना तइयार रहली काहेकि ऊ जानत रही कि सज्जन बाऊजी ना जइहें। सज्जन बाऊजी से लइका लोग के उनका कड़क सोभाव के कारण पटरी ना बइठत रहे।एही से ऊ पहिलहीं एलान क देहले रहन- एही माटी में जनमल बानी, बड़ भइनी अब एही माटी में मिलब। कतहूँ हम ना जाएब।

बड़की माई खटिया पर बइठले सज्जन बाऊजी के पसन्द के भाजी काटस, उनकर कपड़ा चपेत के रखस, उनकर खाये-पीये के समय के धेयान राखस। सज्जन बाऊजी खाये आवस तऽ बड़की माई बेनिया डोला के जे तोष पावत रही ऊ उनका मुँह पर लक्षउकत रहे। एने

सज्जन बाऊजी भी बड़की माई के नहान धोवान खाये पीये के खूब खेयाल राखस। अब कय बार दुनो जन संघही खात रहे लोग। सज्जन बाऊजी बड़की माई के थरिया में ताकत वाला भोजन के खास खेयाल राखत रहन । बड़की माई के हाल देख के तऽ सज्जन बाऊजी के खटिया भी रात में भीतरिये लागॆ लागल। रात बिरात कबो सज्जन बाऊजी  बड़की माई के हँकार देस त कबो बड़की माई बाऊजी के। एह तरे दुनो लोग अपना मन के तोष पहुँचावत रहे। एक दिन सज्जन बाऊजी  दुपहरिया में खाये खातिर जगावे गइलन त बड़की माई जगबे ना कइली। फेर बेटा लोग लगे खबर गइलत उहो लोग आ पहुचल। अंतिम विदाई घड़ी सज्जन बाऊजी खुदहीं साड़ी आ चुड़ी कीन ले अइलन । निरभेद सुतल बड़की माई के खूब सजावल गइल। सज्जन बाऊजी एकटक निहार के उनका के फूल के माला पहिरवले। घाट पर मुख में आगुन देके जब ऊपर अइले त हाँफत रहलन। कहलन- तनी बइठे द लोग। बाकी लोग आगे बढऽ।  उनकर बड़ बेटा आ उनकर चाकर ओहिजे सज्जन बाऊजी  के लगे रुक गइलन आ बाकी लोग आगे बढल। दस मिनिट बइठला के बाद सज्जन बाऊजी  कहलन- हमरो जाये के पड़ी ना त उ ना जइहें। एतना कहते लुढक गइलन।

बड़ बेटा बाऊजी के पुकारते रह गइलन बाकिर उ त बड़की माई लगे चल गइले । ओही चिता पर एगो आऊर चिता जरल। एके साथे सराध आ बाकी किरिया करम भइल।

बड़की माई आ सज्जन बाऊजी के परेम अद्भुत रहल। बे कहले बिन देखवले दुगो मन के तार जे जुड़ल ऊ संगही अनंतलोक तक गइल।।

 

डॉ रजनी रंजन

झारखंड

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